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________________ अध्याय २२ , पुराण-साहित्य का उद्गम एवं विकास हमने इस ग्रन्थ के प्रथम खण्ड में पुराणों पर एक संक्षिप्त अध्याय लिख दिया है। वहाँ यह दिख लाया गया है कि किस प्रकार तैत्तिरीय आरण्यक, छान्दोग्य एवं बृहदारण्यक उपनिषदों ने इतिहास एवं पुराण (कभी-कभी सामूहिक रूप से 'इतिहासपुराणम्' और कभी-कभी 'इतिहासः पुराणम्' कहा गया है) का उल्लेख किया है और किस प्रकार विद्यमान पुराण ईसा की छठी शती के पूर्व के हैं। यह भी प्रदर्शित किया गया है कि परम्परा से प्रमुख पुराणों की संख्या १८ रही है और मत्स्य, विष्णु, वायु एवं भविष्य नामक पुराणों में धर्मशास्त्र विषयक बहुत-सी बातें कही गयी हैं। गरुड़-पुराण एवं अग्निपुराण में ऐसे.सैकड़ों पद्य हैं जो याज्ञवल्क्यस्मृति के समान ही हैं, सभी पुराणों के विस्तार में अत्यधिक अन्तर भी है, बहुत-से पुराणों ने स्वयं लघ कृतियों का उल्लेख किया है जो उपपुराण के नाम से विख्यात हैं। पुराण तीन दलों में विभक्त हैं, यथा-सात्त्विक, राजस एवं तामस (जैसा कि गरुड १२२२३।१७-२०, एवं पय ६।२६३।८१-८४ में किया गया है)। हमने पुराणों के उन अध्यायों की ओर भी संकेत कर दिया है जहाँ धर्मशास्त्रीय बातें, यथा--आचार, आह्निक, दान, राजधर्म, श्राद्ध, तीर्थ आदि वर्णित हैं। इस विभाग में हम ईसा की आरम्भिक शतियों में पुराणों के प्रभाव से उत्पन्न उन कतिपय भावनाओं, आदशों एवं प्रयोगों का उल्लेख करेंगे जो समय-समय पर प्राचीन भारतीय जनता पर अपना प्रभाव एवं परिवर्तन छोड़ते गये हैं। आगे की बातों पर प्रकाश डालने के पूर्व कुछ आरम्भिक बातें कह देना आवश्यक है। साहित्य-वर्ग में पुराणों का उल्लेख उस काल से बहुत पहले हुआ है, जिसकी ओर हमने पहले संकेत किया है (देखिए, इस ग्रन्थ का प्रथम खण्ड)। अथर्ववेद (१११७।२४) ने पुराण को एक वचन में लिखा है : 'ऋक् एवं साम के पद्य, छन्द, पुराण यजु के नियमों के साथ यज्ञिय भोजन के शेष अंश से उदित हुए, (जैसे कि) देव लोग, जो स्वर्ग में रहते हैं। उसने अपना स्थान परिवर्तित किया और बृहत् दिशा की ओर चला गया; और इतिहास एवं पुराण, गाथाएँ, वीरों की प्रशंसा में कहे गये पद्यों (नाराशंसी) ने उसी प्रकार अनुसरण किया।' शतपथब्राह्मण (११।५।६।८) ने भी 'इतिहास १. मत्स्य (५३॥१८-१९), अग्नि (२७२१४-५) एवं नारद (११९२।२६) ने वायु को अठारह महापुराणों में परिगणित किया है, किन्तु विष्णु (३।६।१९), मार्कण्डेय (१३४१८), फूर्म (१।१।१३), पप (११६२।२), लिंग (११३९।६१), भागवत ( २३), ब्रह्मवैवर्त (३३१३३१४) ने बाय के स्थान पर शव रखा है और वायु को मटारह महापुराणों की सूची से सर्वपा हटा दिया है। २.पा सम्मानि छन्दांसि पुरान मनुषा सह। उच्छिष्टाजसिरे सर्वे दिवि देवा विविश्रिताः॥ अपर्व० (११२४); सबली विशमनुवचलत्। तमितिहासश्च पुराणं च गावाश्च नाराशंसीश्चानुव्यचलन्। अथर्व० (१५।६।१०-११)। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002792
Book TitleDharmshastra ka Itihas Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPandurang V Kane
PublisherHindi Bhavan Lakhnou
Publication Year1971
Total Pages526
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size18 MB
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