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________________ ३७२ पर्मशास्त्र का इतिहास ____ तैत्तिरीय संहिती (४१५) के ग्यारहं अनुवाक, जिनका अरिम्भ 'नमस्ते रुद्रं मन्यव से होता है, समाध्याय या केवल रुद्र कहे जाते हैं। उनका एक वाचन 'आवर्तन' कहा जाता है, किन्तु इनका ग्यारह बोर का वाचन एकादसिमी' कहा जाता है। एकादशिनी' के ग्यारह बार के वार्चन का नाम 'लघुरुद्र' है, लघुरुद्र के ग्यारह बार के वाचन को 'महारुद्र' एवं ग्यारह महारुद्र 'अतिरुद्र' कहे जाते हैं। रुद्र के तीन स्वरूप हो सकते हैं-जप, होम (अग्नि में मन्त्री० के साथ आहुतियां डालना), अभिषेक (मन्त्र पाठ के साथ पवित्र जल को देवता पर निरन्तर चढ़ाना)। रुद्राध्याय के पाठ के लिए यजमान (यदि वह स्वयं ऐसा न कर सके तो) किसी ब्राह्मण को नियुक्त कर सकता है। ऐसा एकादशिनी के लिए भी हो सकता है। किन्तु लघुरुद्र एवं महारुद्र के लिए सामान्यतः ग्यारह एवं अतिरुद्र के लिए २१ ब्राह्मण नियुक्त होते हैं। रुद्राभिषेक का उल्लेख बौधायनगृह्यशेषसूत्र (२।१८।११-१६) में हुआ है। ___ 'यम्बकं यजामहें' (ऋ० ७१५९।१२; तै० सं० १।८।६।२; वाज० सं० ३६०) मन्त्र को 'मृत्युंजय' कहा जाता है। इसका जप अल्पावधि में होने वाली मृत्यु से बचने के लिए किया जाता है। बौधायनगृह्यशेषसूत्र (३।११) ने अपेक्षाकृत अधिक विस्तार के साथ इस कृत्य की व्यवस्था दी है और इसके अनुसार जप के मन्त्र हैं अपतु मृत्यु:' (त० सं० ३।७।१४।४), 'परं मृत्यो' (तै० ब्रा० ३७।१४।५), 'मा नो महान्तम्' (ऋ० १३११४१७), 'मा नस्तोके' (ते० सं० ३।४।११।२), 'त्र्यम्बकं यजामहें' (तै० सं० ११८६२), 'यं तु सहस्रम्' (तै० सं० ३।१०।८।२) । इस अध्याय में वैणित बहुत-सी शान्तियाँ अब प्रचलित नहीं है। आजकल ऐसी हवा बह रही है कि जो शान्तियाँ की भी जाती हैं, ऐसा लगता है, वे भी भविष्य में विलुप्त हो जायेंगी। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002792
Book TitleDharmshastra ka Itihas Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPandurang V Kane
PublisherHindi Bhavan Lakhnou
Publication Year1971
Total Pages526
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size18 MB
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