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________________ धर्मशास्त्र का इतिहास उपश्रुति के समान ही एक विचित्र ढंग पद्म० ( पातालखण्ड, १००/६५ - १६६ ) में भी वर्णित है। ऐसा उल्लिखित है कि विभीषण को जब उसने रामेश्वर नामक स्थापित शिवलिंग का दर्शन कर लिया था, तब द्रविड़ों सिकड़ियों से बांध लिया और जब किसी को इसका पता न चल सका तो राम ने स्वयं शम्भु से पूछा और शम्भु ने बताया कि पुराणों (श्लोक ५१-५३ में वर्णित ) का निमित्तात्मक शब्दों के रूप में उपयोग हो सकता है । विधि यों है - पाँच वर्ष से अधिक किन्तु दस वर्ष से कम अवस्था अविवाहित कन्या अथवा युवा होने के पूर्व किसी कन्या का गन्ध, पुष्प, धूप एवं अन्य उपचारों से सम्मान करना चाहिए और उससे निम्नोक्त शब्द कहने चाहिए, 'सत्य बोलो, प्रिय सत्य बोलो; हे कल्याणकारिणी सरस्वती, आपको प्रणाम है, आपको प्रणाम है।' उसे दूर्वा के तीन जोड़े देने चाहिए जिन्हें वह किसी ग्रन्थ के दो पृष्ठों के बीच में डालेगी। इन्हीं पृष्ठों के बीच का श्लोक संकल्प की सफलता को बतायेगा । श्लोक का अर्थ भली भाँति बैठाया जायगा और संकल्पित बात से उसका मेल बैठाया जायगा । यदि पृष्ठ स्पष्ट न हों अथवा आधे जल गये हों, तो ऐसा कहा गया है कि उस श्लोक को भाग्य द्वारा भेजा गया माना जाना चाहिए, जैसा कि उपश्रुति विधि से जाना जाता है। ऐसा उल्लिखित है कि इस विधि का प्रयोग प्रति दिन नहीं करना चाहिए। विधि-प्रयोग के पूर्व पुराण की पूजा की जानी चाहिए और प्रातः काल शकुंन के लिए उसका उपयोग करना चाहिए। इस प्रकार के शंकुन के लिए स्कन्दपुराण सर्वश्रेष्ठ माना जाता है। कुछ लोगों के मत से विष्णु एवं रामायण से भी सहायता ली जा सकती है। किन्तु पद्म० के मत से विष्णुपुराण का उपयोग शकुन के लिए नहीं करना चाहिए, क्योंकि यदि कोई सदाचरणहीन व्यक्ति उसका उपयोग करेगा तो उससे अशुभसंकेत प्राप्त होंगे। स्वयं शम्भु ने स्कन्दपुराण की पूजा की और पूछा कि शिवभक्त विभीषण को सिकड़ियों से क्यों बाँधा गया। इस प्रकार तीन श्लोक प्रकट हुए जिनमें दो इस प्रकार हैं o ३७० बद्ध्वा समुद्रं स तु राघवेन्द्रो रुरोध गुप्तान् क्षणदाचरेन्द्रान् । योद्ध समागत्य समाययुस्ते लंकापुरस्थास्त्वतिकायमुख्याः ।। अट्टशूला जनपदा शिवशूला द्विजास्तथा । प्रमदाः केशशूलिन्यो भविष्यन्ति कलौ युगे ।। ( पद्म० पा० १००1१३३-१३४) यहाँ पर दूसरा श्लोक पहेली रूप है और कलियुग के स्वरूपवर्णन में भी आया है। और देखिए वमपर्व (१८८ । ४२ ) । अन्त में पुराण का कथन है कि महाभारत का आदिपर्व या इसके सभी पर्व शकुन के लिए प्रयोजित हो सकते हैं । उपर्युक्त विधि के समान ही निमित्तों एवं शकुनों का पता चलाने के लिए हिन्दी के महाकवि तुलसीदास ( संवत् १५८९ या सन् १५३२ ई० में जन्म) की दो कृतियाँ - रामाज्ञा ( या रामशकुनावली, जिसमें ३४३ दोहे हैं) Jain Education International लेखक को एक नवीन प्रकाशित एवं ए० लियो ओपेनहाइम द्वारा लिखित 'दि इंटरप्रिटेशन आफ ड्रीम्स इन दि ऐंश्यॅट नियर 'ईस्ट' ग्रन्थ पढ़ने को मिला, जिसके साथ लेखक द्वारा अनूदित 'असीरियन ड्रीम बुक' भी थी (जिल्द ४६, भाग ३, १९५६, अमेरिकन फिलासाफिकल सोसाइटी, न्यू सीरीज ) । लेखक ने स्वप्न विषयक मनोरंजक बातों के समानान्तर स्वरूपों की ओर संकेत नहीं किया है; किन्तु पृ० २११ पर लेखक ने संयोग से घटने वाली वाणियों (असम्बन्धित लोगों द्वारा उच्चरित) की ओर संकेत अवश्य किया है जो प्राचीन काल में न केवल फिलस्तीन में, प्रत्युत मेसोपोटामिया में भी विख्यात थीं । 1 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002792
Book TitleDharmshastra ka Itihas Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPandurang V Kane
PublisherHindi Bhavan Lakhnou
Publication Year1971
Total Pages526
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size18 MB
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