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________________ ३६४ धर्मशास्त्र का इतिहास है । जिस व्यक्ति के घर में ऐसा व्यक्ति प्रवेश करता है वह मर जाता है, ऐसा विश्वास है । अतः एक होम किया जाता है, जिसमें १००८ उदुम्बर- समिधाओं को दूध एवं घी में मिला कर अग्नि में डाला जाता है और गायत्री मन्त्र ( ऋ० ३।६२।१० ) का पाठ किया जाता है। होम के अन्त में किसी ब्राह्मण को एक कपिला गाय और तिलपूर्ण पीतल का पात्र दिया जाता है। पात्र यथाशक्ति ८१ पलों या ४०३ या २० या ९ या ६ या कम-से-कम ३ पलों के वजन का होना चाहिए । कुछ ग्रन्थों में भाद्रपद मास में गाय, माघ में भैंस या दिन में घोड़ी के बच्चा देने पर शान्ति की व्यवस्था हुई है। घी एवं तिल की १०८ आहुतियां दी जाती हैं तथा अस्यवामीय (ऋ० १ १६४) एवं तद्विष्णोः' (ऋ० १।२२।२० ) के मन्त्रों का पाठ होता है। ऐसा विश्वास रहा है कि यदि भैंस माघ मास में बुधवार को या घोड़ी श्रावण मास में दिन में या गाय जब सूर्य सिंह राशि में हो, बियाए ( बच्चा जने) तो स्वामी की मृत्यु ६ महीनों में कभी हो जाती है । देखिए शान्तिकमलाकर, अद्भुतसागर ( पृ० ५६८) । आधुनिक काल में किसी नये गृह में प्रवेश के एक दिन पूर्व या उसी दिन वास्तुशान्ति या वास्तु शमन (मत्स्य ० २६८।३) नामक शान्ति की जाती है। इस विषय में हमने इस महाग्रन्थ के खण्ड २ में पढ़ लिया है। पश्चात्कालीन निबन्धों में इसका विशद वर्णन है । गृह में रहने वाली छिपकली (पल्ली, पल्लिका, कुड्यमत्स्य या गृहगोधिका ) की ध्वनियों, गतियों (चालों) या शरीर के विभिन्न भागों पर इसके गिरने से सम्बन्धित अग्र सूचनाओं के विषय में शान्ति-व्यवस्था है। देखिए वसन्तराज-शाकुन (अध्याय २७), अद्भुतसागर ( पृ० ६६६ - ६६८), ज्योतिस्तत्त्व ( पृ० ७०६ - ७०७), शान्तिरत्न या शान्ति कमलाकर, धर्मसिन्धु ( पृ० ३४७ - ३४८ ) । अन्तिम दो ग्रन्थों से कुछ बातें यहाँ दी जा रही हैं। यदि छिपकली पुरुष के दाहिने अंग में, सिर पर (ठुड्डी को छोड़कर), छाती, नाभि या पेट पर गिरे तो शुभ होता है, किन्तु ऐसा ही स्त्रियों के वाम अंग पर गिरने से शुभ माना जाता है। यही बात गिरगिट के चढ़ने पर भी होती है। यदि छिपकली और गिरगिट अंग पर गिरे तथा अंग पर दौड़ जाय तो व्यक्ति को वस्त्रसहित स्नान कर लेना चाहिए और अशुभ को दूर करने तथा शुभ की वृद्धि के लिए शान्ति करनी चाहिए। यदि घर वाली छिपकली या गिरगिट से स्पर्श हो जाय तो स्नान कर लेना चाहिए, पंचगव्य पीना चाहिए, घृत में मुख देखना चाहिए, छिपकली या गिरगिट की स्वर्ण - प्रतिमा को लाल वस्त्र में लपेट कर उसको सम्मान गन्ध, पुष्प से देना चाहिए, जलपूर्ण पात्र में रुद्र की पूजा करनी चाहिए, अग्नि में मृत्युंजय मन्त्र के साथ १०८ खदिर समिवाएँ डालनी चाहिए, व्याहृतियों के साथ अग्नि में तिल की १००८ या १०८ आहुतियाँ देनी चाहिए और स्विष्टकृत् से लेकर अभिषेक तक का कृत्य करके सोना, वसन एवं तिल का दान करना चाहिए | योगयात्रा ( ७११-१२ ) एवं हेमाद्रि ( व्रत, २, पृ० ८९४-८९७) ने अश्विनी से रेवती तक के नक्षत्रों एवं उनके देवताओं की पूजा एवं धार्मिक स्नानों का तथा तज्जनित कतिपय लाभों का उल्लेख किया है। आथर्वणपरिशिष्ट ( १, नक्षत्रकल्प, भाग ३७-५० ) में कृत्तिका से भरणी तक के नक्षत्रों में स्नान का विधान पाया जाता है। किन्तु बृहत्संहिता ( ४७।१-८७), आथर्वण-परिशिष्टं ( ५, पृ० ६६-६८), विष्णुधर्मोत्तर ( २/१०३), योगयात्रा ( ७।१३-२१), कालिकापुराण (अध्याय ८९ ) एवं हेमाद्रि ( व्रत, भाग २, पृ० ६००-६२८) में पुष्य स्नान या पुष्याभिषेक नामक शान्ति का वर्णन है । ऐसा कहा गया है कि बृहस्पति ने इन्द्र के लिए यह शान्ति की, तब वृद्ध गर्ग ने इसे प्राप्त किया और उन्होंने इसका ज्ञान भागुरि को दिया। अधिकांश ग्रन्थों ने इसे राजा तक ही सीमित रखा है, क्योंकि राजा मूल होता है और प्रजा वृक्ष, मूल के आयात से वृक्ष प्रभावित होता है । अतः Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002792
Book TitleDharmshastra ka Itihas Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPandurang V Kane
PublisherHindi Bhavan Lakhnou
Publication Year1971
Total Pages526
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size18 MB
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