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स्वप्नों का विश्वव्यापी विश्वासः विविध शान्तिकर्म
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विचित्र-सा नहीं लगेगा कि सम्भवतः प्राचीन काल का प्रसिद्ध ज्योतिषी वराहमिहिर नौशेरवाँ के दरबार में उच्च पद पर आसीन था, क्योंकि उसी काल में वह हआ था।
आधुनिक काल में बहुत-से पढ़े-लिखे लोग स्वप्नों में कोई विश्वास नहीं रखते; कुछ लोग उनको आगामी घटनाओं का अमोघ लक्षण मानते हैं, किन्तु तीसरी श्रेणी में वे लोग आते हैं जो स्वप्न-विश्लेषकों के तर्कों को सुन लेने को तो तैयार हैं, किन्तु स्वप्न के महत्त्व को स्वीकार करने को तैयार नहीं हैं। देखिए कैथरिन टेलर कैग की पुस्तक 'फैब्रिक आव ड्रीम्स', फायड कृत 'इण्टरप्रीटेशंस आव ड्रीम्स' एवं डब्लू० एच० डब्लू ० सैबाइन कृत 'सेकण्ड साइट इन डेली लाइफ।' इन ग्रन्थों के विवेचन की यहाँ आवश्यकता नहीं है।
अब हम कुछ अन्य मनोरंजक शान्तियों का उल्लेख करेंगे। जब कोई प्रपौत्र (पुत्र के पुत्र का पुत्र) जन्म लेता है तो प्रपितामह को उसका मुख देखने के लिए शान्ति करनी होती है। इसमें संकल्प होता है। व्यक्ति को गणेश पूजन से आरम्भ कर मातृ-पूजन के कृत्यों को करके जलपूर्ण पात्र की प्रतिष्ठा करनी होती है, फिर उसमें वरुण की पूजा की जाती है और ढोलक की ध्वनि के साथ नीराजन" कृत्य करना होता है; तदुपरान्त कम्बल से युक्त उदुम्बर के पीढ़े पर बैठकर ब्राह्मणों से प्रार्थना की जाती है कि वे उसके शरीर पर जल छिड़कें। ब्राह्मण वैसा करते हैं और वरुण का मन्त्र एवं गंगा का मन्त्र कहते हैं। अभिषेक के उपरान्त कृत्यकर्ता नवीन वस्त्र धारण कर गंगापूजन करता है। पीतल के पात्र में तरल घी रखा जाता है, कृत्यकर्ता उसमें सर्वप्रथम अपनी परिछाईं देखता है और फिर सोने के पात्र में रखे दीपक के प्रकाश में वह अपने प्रपौत्र का मुख देखता है। इसके उपरान्त वह सोने के एक सौ फूलों के साथ प्रपौत्र पर जल-बिन्दु छिड़कता है। फिर अभिषेक वाले पात्र से जल लेकर वह प्रपौत्र पर जल छिड़कता है। इसके उपरान्त वह समाप्ति पर एक गाय दान करता है और यथाशक्ति ब्रह्मभोज करता है। तब वह विष्णु-प्रतिमा का पूजन करता है और उसे पायस देता है और प्रार्थना मन्त्र का पाठ करता है। इसके उपरान्त वह विष्णु-प्रतिमा का दान करता है और उस घी को भी, जिसमें उसने अपना मुख देखा है, ब्राह्मणों को दे देता है।
उदकशान्ति एक अन्य शान्ति है जो आज भी बहुधा की जाती है। इसका सम्पादन बहुत-सी घटनाओं के प्रभाव के निवारण, स्वास्थ्य-लाभ, पित्त, वात एवं कफ से उत्पन्न रोगों को दूर करने आदि के लिए होता है। आजकल इस शान्ति का बहुत विस्तार किया जाता है। इसके विषय में देखिए बौधायनगृह्यशेषसूत्र (१।१४) । इसके विषय में हम स्थान-संकोच से यहाँ नहीं लिख रहे हैं।
धर्मसिन्धु ने एक शान्ति का उल्लेख किया है जो किसी के पुनर्जीवित हो जाने पर की जाती है। यदि किसी को मृत समझ कर लोग श्मशान ले जाते हैं और वह जीवित हो जाता है तो इस शान्ति की व्यवस्था होती
१७. प्रपौत्र की महत्ता के लिए देखिए श्लोक 'पुत्रेण लोकाञ् जयति पौत्रेणानन्त्यमश्नुते। अथ पुत्रस्य पौत्रेण अध्नस्याप्नोति विष्टपम् ॥ मन् (९।१३७), वसिष्ठ (१७।५), विष्णुधर्मसूत्र (१५।४६)।
१८. मम ब्रह्मलोकावाप्ति-सर्वतीर्थयात्रा-सकलदानजन्यपुण्यजातावाप्तिद्वारा श्रीपरमेश्वरप्रीत्यर्थ प्रपौत्रमुखदर्शनं करिष्ये। तवंग गणेशपूजनं स्वस्तिपुण्याहवाचनं मातृकापूजनं नान्दीश्राद्धं च करिष्ये इति संकल्प्य।
१९. 'नीराजन' में मनुष्यों एवं अश्वों के समक्ष दीपों का घुमाना या आरती करना होता है। बृ० सं० (४३।२) में नीराजन एक शान्ति भी है : 'द्वादश्यामष्टम्यां कार्तिकशुक्लस्य पंचदश्यां वा। आश्वयुजे वा कुन्निीराजनसंज्ञितां शान्तिम् ॥'
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