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________________ ३६२ धर्मशास्त्र का इतिहास है। कुछ उदाहरण दिये जा रहे हैं। त्रिजटा राक्षसी ने अपने बहुत-से स्वप्नों का वर्णन किया है जिनसे राक्षसों के नाश एवं राम के लिए शुभ का संकेत मिलता है (सुन्दरकांड, २७।२३)। दुःस्वप्न ऐसे थे : रावण का सिर घुटा हुआ है; उसने उस तेल को पी लिया, जिससे वह नहाया हुआ था; वह लाल वसन पहने था; मदोन्मत्त था; करवीर पुष्पों की माला पहने था; पुष्पक विमान से पृथिवी पर गिर पड़ा; वह गदहों द्वारा खींचे जाते हुए रथ में बैठा था आदि-आदि (१९-२७) । और देखिए वन० (२८०।६४-६६), अयोध्या० (६९।८), मौसलपर्व (३।१-४)। पुराणों, पराशर, वराह के ग्रन्थों आदि के आधार पर अद्भुतसागर के शुभ एवं अशुभ स्वप्नों का उल्लेख इतना विशाल है कि उन सबका वर्णन यहाँ सम्भव नहीं है। देखिए मत्स्य० (२४२।२-१४), बृहद्योगयात्रा (अ० सागर, पृ० ४९४)। मत्स्य० (२४२।२१-३५) में शुभ स्वप्नों का उल्लेख है। भद्रबाहु के जैन कल्पसूत्र में १४ अति शुभ स्वप्नों की चर्चा है, यथा हाथी, बल, सिंह, श्री देवी का लेप, माला, चन्द्र, सूर्य, झण्डा, पात्र, कमल की बावली, समुद्र, देवी स्थान (निवास), रत्नों की राशि, ज्वाला। और देखिए मत्स्य० (३४३।२-१२), योगयात्रा (१३।४), ज्योतिस्तत्त्व (पृ० ७२९-७३०), वसन्तराजशाकुन (५।२-६)। भारत में अपेक्षाकृत उच्च विचार यह था कि स्वप्न भविष्य की शुभाशुभ घटनाओं के संकेत मात्र हैं (वेदान्तसूत्र ३।२।४, शंकराचार्य की उस पर टीका)। किन्तु कुछ लोगों ने बुरे स्वप्नों से उत्पन्न फलों को दूर करने की व्यवस्था भी दी है (मुजबल०, पृ० ३०४) । ___ आथर्वण-परिशिष्ट (६८, पृ० ४३८-४४९) ने कहा है कि विभिन्न व्यक्ति अपनी प्रकृतियों के आधार पर स्वप्न देखते हैं, यथा पित्त, वात एवं कफ की प्रकृति के अनुसार स्वप्न उठते हैं। उसमें वराह के समान ही शान्ति की व्यवस्था है। धर्मसिन्धु (पृ० ३५९-३६०) में शुभाशुभ स्वप्नों का उल्लेख है और अशुभ स्वप्नों के प्रतिफलों के निवारण के उपाय भी बताये गये हैं, यथा ऋ० (२।२८।१०) एवं तै० सं० (४।१४-१२३) के मन्त्रों के साथ सूर्य की पूजा, या अमावास्या को श्राद्ध करना, या चण्डी के सम्मान में सप्तशती या विष्णु-सहस्रनाम आदि का पाठ । सभी प्राचीन देशों एवं लोगों में स्वप्नों के विषय में विश्वास रहा है और उनके विश्लेषण के विषय में उत्सुकता पायी गयी है। बेबिलोन एवं असीरिया के दरबारों में चाल्डिया के ज्योतिषियों एवं स्वप्न-विश्लेषकों को बड़े आदर के साथ रखा जाता था। डैनिएल (अध्याय २) में उल्लिखित है कि बेबिलोन का राजा नेबुचनन्देज्जार चाल्डियावासियों को न केवल स्वप्न-विश्लेषण के लिए कहता था, प्रत्युत इस बात के लिए उन्हें उद्वेलित करता था कि वे उन स्वप्नों को भी बतायें एवं उनका विश्लेषण करें जिन्हें वह भूल गया है, नहीं तो उन्हें मृत्युदण्ड दिया जायगा। यूनान के सर्वश्रेष्ठ दार्शनिक प्लेटो ने स्वप्नों को महत्त्वपूर्ण दैहिक एवं मानसिक लक्षण माना है, उसने कुछ स्वप्नों को अलौकिक आधार भी दिया है और अपनी पुस्तक टाइमियस (अध्याय ४६ एवं ४७) में व्याख्या की है कि स्वप्न ऐसे भावी दृश्य हैं जिन्हें निम्न श्रेणी की आत्माएँ ग्रहण करती हैं । जे० आर० ए० एस० (जिल्द १६, पृ० ११८-१७१) में एन० ब्लैण्ड ने मुसलमानों के ताबिर-विज्ञान या स्वप्न-विश्लेषण के विषय में एक लम्बा लेख लिखा है। नौशेरवाँ (५३१-५७९ ई०) के एक स्वप्न का मनोरम वर्णन मिलता है। नौशेरवा ने स्वप्न में देखा कि वह स्वर्णपात्र से शराब पी रहा है, और उसी पात्र में एक काले कुत्ते ने मुंह डालकर शराब पी ली। उसने अपने मन्त्री बुजुरमिहर से इसका अर्थ जानना चाहा। मन्त्री ने बताया कि इससे प्रकट होता है कि उसकी प्रिय रानी के पास कोई काला दास है जो उसका प्रेमी है। मन्त्री ने कहा कि राजा के समक्ष अन्तःपुर की नारियों को नग्न होकर नाचना चाहिए। उन नारियों में एक ने आनाकानी की और पता चला कि वह एक काली दासी थी। इस प्रकार वज़ीर (मन्त्री) की व्याख्या सच निकली। वज़ीर के नाम में 'वराहमिहिर' नाम की ध्वनि निकलती है और ऐसा सोचना Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002792
Book TitleDharmshastra ka Itihas Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPandurang V Kane
PublisherHindi Bhavan Lakhnou
Publication Year1971
Total Pages526
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size18 MB
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