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ग्रह
सूर्य
चन्द्र
मंगल
बुध
शुक्र
उद्बुध्यस्व, वाज ०सं० (१५०५४) ० सं० (४१७|१३|५ )
बृहस्पति बृहस्पते अति यदर्यः, ऋ० (२।२३।१५)
शनि
राहु
मन्त्र, याज्ञ० (१।२९९-३०१ ) में
आ कृष्णेन, ऋ० (१।३५।२)
के तु
इमं देवा, वाज० सं० (९१४० एवं १०।१८ )
अग्निर्मूर्धा, ऋ० (८०४४११६ )
अन्नात् परिश्रुतः, वाज० सं० ( १९/७५), मंत्रा ० ( ३।११६)
नवग्रह शान्ति
नवग्रहों की तालिका
मन्त्र, मत्स्य० (९३।३३ - ३७) में मन्त्र, वैखानस० सूत्र ( ४११४ ) में वही आसत्येन, तै० (३।४।११।२)
देवीर् ऋ० (१०।९।४ ) | वही
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आप्यायस्व, ऋ० ( ११९१।१६ सोमो धेनुं, ऋ० (१९११२० ), या ९|३१|४) वाज० सं० (३४१२१)
वही
वही
वही जो याज्ञ० में है
अग्ने विवस्वदुषसः, ऋ० ( ११४१/१ )
बृहस्पते परिदीया रथेन, ऋ०
वही जो याज्ञ० में है
( १०।१०३१४)
शुक्रं ते अन्यत्, ऋ० (६।५८।१) वही जो मत्स्य० में है
काण्डात्, वाज० (१३।२० ) तं ० सं ० (४/२/९/२ )
केतुं कृण्वन्, ऋ० (१।६।३ ) वही
कया नश्चित्र, (४।३।११)
ऋ०
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वही
विष्णुधर्मोत्तर (१।१०२।७-१० ) के मन्त्र याज्ञ० के समान हैं । और देखिए भविष्य ० ( ४ । १४१।३४-३६) एवं पद्म० (५।८२।३०-३२ ) । याज्ञ० ने प्रत्येक ग्रह के लिए होम की समिधाओं की संख्या १०८ या २८ बतायी है, जो मधु या घृत या दही या दूध से मिश्रित होनी चाहिए और सूर्य से लेकर केतु तक के लिए समिधा क्रम से अर्क, पलाश, खदिर, अपामार्ग, पिप्पल, उदुम्बर, शमी, दूर्वा एवं कुश की होनी चाहिए। तीन वर्णों के व्यक्ति को प्रतिपादित विधि ( पाद- प्रक्षालन आदि) से ब्राह्मणों का सम्मान करना चाहिए और उन्हें क्रम से गुड़ के साथ पका चावल ( बखीर), दूध एवं शक्कर में पका चावल (खीर), हविष्य, दूध में पका साठी (६० दिनों में होने वाले धान) का चावल, दही के साथ पका चावल, घृत के साथ पका चावल, तिलचूर्ण के साथ पका चावल, मांसयुक्त चावल, कई रंगों वाला चावल (सूर्य, चन्द्र आदि ग्रहों के क्रम से ) खिलाना चाहिए या अपनी सामर्थ्य के अनुसार जो उपलब्ध हो देना चाहिए। दक्षिणा क्रम से यों है- दुधारू गाय, शंख, गाड़ी का बैल, सोना, बसन, श्वेत घोड़ा, काली गाय, लौहअस्त्र, मेमना । यही बात विष्णुधर्मोत्तर ( १११०३।१-६ ) में भी है। व्यक्ति को किसी निश्चित काल में अपने नक्षत्र में स्थित प्रतिकूल ग्रह की विशिष्ट पूजा करनी चाहिए। याज्ञ० ने निष्कर्ष निकाला है कि राजाओं का उत्कर्ष - अपकर्ष ग्रहों पर निर्भर है। और देखिए विष्णुधर्मोत्तर ( १।१०६ ९-१० ), कृत्यकल्पतरु ( शान्तिक), शान्ति - मयूख ( पृ० २१) ।
वही जो मत्स्य० में है
वही
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