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अध्याय ३ व्रताधिकारी, व्रत द्वारा इच्छित वस्तुलाभ, व्रतों का श्रेणी-विभाजन,
व्रत-सम्बन्धी साहित्य, व्रतों के लिए काल
व्रतों के अधिकारी कौन लोग हैं ? सभी जातियों के लोग, यहाँ तक कि शूद्र भी व्रताधिकारी हैं। देवल ने व्यवस्था दी है-'इसमें सन्देह नहीं कि व्रतों, उपवासों, नियमों तथा शरीरोत्ताप (शरीर को कष्ट देने) से पापों से छुटकारा मिलता है। स्त्रियाँ भी व्रतों की अधिकारी हैं। पुराणों एवं निबन्धों ने केवल स्त्रियों के लिए कुछ व्रतों की व्यवस्था की है। मनु (५।१५५), विष्णुधर्मसूत्र एवं कतिपय पुराणों ने व्यवस्था दी है कि कोई स्त्री पृथक् रूप से यज्ञ, कोई पृथक् व्रत या उपवास नहीं कर सकती, वह पति-शुश्रूषा से ही स्वर्ग में सम्मान प्राप्त करती है। विष्णुधर्मसूत्र (२५।१६) में आया है कि वह स्त्री, जो पति के जीवित रहते किसी उपवासयुक्त व्रत को करती है, अपने पति की आयु हरती है और स्वयं नरक में जाती है। परलोक-कल्याण के लिए जो कुछ नारी बिना पिता, पति या पुत्र की सहमति के करती है, वह विफल होता है (आदित्यपुराण, हेमाद्रि, व्रत, १, पृ० ३२ में उद्धृत)। मध्यकाल के निबन्धों ने इन बातों की व्याख्या इस प्रकार की है कि कुमारी, विवाहित नारी एवं विधवा किसी व्रत के सम्पादन के पूर्व कम से कम अपने पिता, पति एवं पुत्र से सम्मति ले ले। इससे स्पष्ट है कि निर्दिष्ट व्यक्तियों से सहमति लेकर नारी स्वयं कोई स्वतन्त्र वत कर सकती है। निबन्धों को इस विषय में शंख-लिखित के सूत्र से सहायता मिल जाती है (देखिए स्मृतिचन्द्रिका, २, पृ० २९१)। पति की आज्ञा से नारी जप, दान, तप आदि कर सकती है (लिंगपुराण, पूर्वार्ध, ८४।१६)। क्या नारी अन्य व्यक्ति से होम कराये? इस विषय में विभिन्न मत हैं (देखिए मनु २।६६, ९।१८ एवं याज्ञ० १।१३)। पराशर का अनुगमन करते हुए व्यवहार यूख ने प्रतिपादित किया है कि शूद्र किसी ब्राह्मण द्वारा होम करा सकता है, शूद्रों एवं नारियों के लिए इस विषय में एक ही नियम है अत: किसी व्रत में नारी ब्राह्मण के द्वारा होम करा सकती है। और देखिए रुद्रधर (शद्धिविवेक : लेखक) एवं वाचस्पति। निर्णयसिन्धु (३, पूर्वार्ध, प० २४९) ने नारी द्वारा किये जाने वाले व्रत में होम के विषय में व्यवहारमयूख
१. व्रतोपवासनियमः शरीरोत्तापनस्तथा। वर्णाः सर्वेऽपि मच्यन्ते पातकेभ्यो न संशयः॥ देवल (हेमाद्रि द्वारा व्रत, खण्ड १, पृ० ३२५ में उद्धृत)।
२. नास्ति स्त्रीणां पृथग्यज्ञो न व्रतं नाप्युपोषणम्। पति शुश्रूषते येन तेन स्वर्गे महीयते॥ मनु (५।१५५), विष्णुधर्मसूत्र (२५।१५)। देखिए हेमाद्रि, व्रत, भाग १, पृ० ३२६ एवं व० का० वि०, पृ० ११।
___३. पत्यौ जीवति या योषिदुपवासं व्रतं चरेत्। आयुः सा हरते भतुर्नरकं चैव गच्छति ॥ विष्णु० ध० सू० २५।१६। यही अंगिरा (५।४०) में भी है।
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