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व्रत-भंग, होम
या विस्मरण करना), गुरुशासन के भय से व्रत नहीं टूटता, जब तक (इस प्रकार का) भय केवल एक बार उत्पन्न हो। मत्स्य०, अग्निपुराण एवं सत्यव्रत में ऐसी व्यवस्था है कि जब स्त्री लम्बी अवधि का व्रत आरम्भ कर दे तो मासिक धर्म हो जाने (रजस्वला हो जाने), गर्भवती हो जाने, जनन हो जाने से व्रत भंग नहीं होता, बल्कि व्रत इस प्रकार के अशौच में अन्य व्यक्ति द्वारा चलाया जा सकता है, किन्तु उपवास आदि शारीरिक कृत्य' चलते रहने चाहिए। कुछ ऐसे विषय भी हैं जिनसे व्रत भंग नहीं होता, यथा जल पीना, जड़-मूल, फल, दूध, यज्ञिय पदार्थ का सेवन, किसी ब्राह्मण की इच्छा या आदेश, गुरु की आज्ञा एवं दवा-प्रयोग। हेमाद्रि के मत से दूध पीना आदि व्रत पर प्रभाव नहीं डालता यदि व्रती स्त्री हो, बच्चा हो या अधिक पीड़ा में हो। व्रती को निम्न बातें छोड़ देनी चाहिए---शरीर या सिर पर तेल लगाना, ताम्बूल-सेवन, चन्दन-लेप, या ऐसे कर्म जिनसे शारीरिक शक्ति या उत्तेजना बढ़े।
उपवास किन दशाओं में खण्डित होता है, इसका आगे विचार किया जायगा।
होम के विषय में कुछ शब्द अपेक्षित हैं। स्त्रियाँ मन्त्रों के साथ होम नहीं कर सकतीं (मनु ९।१८)। उनके लिए पुरोहित ही होम करता है। यदि किसी वस्तु का निर्देश न हो तो आहुति घृत की होती है (गोभिल का कर्मप्रदीप, १।११३) । आहुतियों की संख्या १०८, २८ या ८ या उतनी होनी चाहिए जिसका निर्देश हो। समयप्रदीप में उस अग्नि के विषय में लम्बा विवेचन पाया जाता है, जिसमें होम किया जाता है। याज्ञ० (११९७) के मत से आहिताग्नि (जिसने अपने घर में पवित्र अग्नि प्रतिष्ठापित कर रखी हो) को विवाहित होने पर अपनी प्रतिष्ठापित अग्नि का प्रयोग करना चाहिए। कुछ लोगों के मत से याज्ञ० का नियम केवल गृह्य कृत्यों के लिए ही है, और आहिताग्नि को अपने व्रतों में सामान्य अग्नि का प्रयोग करना चाहिए। जिसके पास स्मार्त अग्नि न हो उसे भी सामान्य' अग्नि में ही व्रत-होम करना चाहिए या पुरोहित द्वारा होम कराना चाहिए।
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