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________________ व्रत के अधिकारी, स्त्रियों का व्रताधिकार, प्रतिनिधि-विचार की बात मानी है। मत्स्य० में आया है कि गर्भवती स्त्री अथवा हाल ही में जिसे सन्तानोत्पत्ति हुई हो ऐसी स्त्री उपवास न करके केवल नक्तव्रत (केवल एक बार सन्ध्या काल के उपरान्त भोजन), करे तथा आशौच से युक्त कुमारी या कोई नारी (रजस्वला या किसी अन्य दशा में ) किसी अन्य व्यक्ति द्वारा व्रत करा ले, किन्तु पवित्र हो या अपवित्र, उसे उपवास तो करना ही चाहिए (तिथितत्त्व, पृ० १२१-१२२)। ___ व्याधि या दुर्घटना आदि में पड़ा हुआ व्यक्ति किसी प्रतिनिधि द्वारा व्रत करा सकता है। इस विषय में कुछ निश्चित नियम बने हैं। सत्याषाढश्रौतसूत्र (३।१) में आया है--स्वामी (यजमान), पत्नी, पुत्र, उचित देश एवं काल, अग्नि, इष्टदेव, कृत्य एवं शास्त्र के अंश के विषय में प्रतिनिधि की व्यवस्था नहीं है।' सभी धार्मिक कृत्य तीन श्रेणियों में विभाजित हैं, यथा नित्य (अपरिहार्य), नैमित्तिक (जब कोई निमित्त या अवसर हो या घटना घटे) एवं काम्य (किसी अभिप्राय या वस्तु की प्राप्ति के लिए किया गया)। इस विषय में इस महाग्रन्थ के चौथे खण्ड में लिखा जा चुका है। त्रिकाण्डमण्डन (२।२-३ एवं ८) ने इन तीनों कृत्यों के विषय में निम्नोक्त नियम लिखे हैं, “काम्य कृत्यों में प्रतिनिधि नहीं होता, नित्य एवं नैमित्तिक में प्रतिनिधि की व्यवस्था होती है, कुछ लोग प्रारम्भ हो गये काम्य कृत्यों में प्रतिनिधि की बातें चलाते हैं। मन्त्र, देव, अग्नि (गार्हपत्य, आहवनीय या दक्षिणाग्नि), क्रिया (यथा प्रयाज), ईश्वर (स्वामी या यजमान) के लिए प्रतिनिधि नहीं होता; कुछ लोगों के मत से देश एवं काल के विषय में प्रतिनिधि नहीं होता। अग्निहोत्री (यदि उसकी पत्नी मृत हो गयी हो) सोने या कुश की प्रतिमा बना सकता है, किन्तु पत्नी अपने पति के स्थान पर किसी प्रतिनिधि या प्रतिमा को रखकर कोई कृत्य नहीं कर सकती।" यदि व्रती आरम्भ कर देने पर अयोग्य हो जाय तो प्रतिनिधि द्वारा व्रत पूर्ण करा सकता है। ऐसे प्रतिनिधि ये हैं--पुत्र, पत्नी, माई, पति, बहिन, शिष्य, पुरोहित (दक्षिणा के लिए) तथा कोई मित्र। पैठीनसि का कथन है कि पत्नीद्वारा संकल्पित व्रत पति तथा पति द्वारा संकल्पित व्रत पत्नी कर सकती है, यदि दोनों अयोग्य हैं तो कोई अन्य व्यक्ति कर सकता है, इस प्रकार व्रत भंग नहीं होता (निर्णयसिन्धु, पृ० २९, कालनिर्णय, पृ० २६२)। कात्यायन (कालनिर्णय, पृ० २६२-२६३) में आया है--जो अपने पिता या माता, भाई, पति के लिए, विशेषतः अपने गुरु के लिए उपवास करता है वह सौ गुनी श्रेष्ठता प्राप्त करता है, यदि कोई अपने पितामह के लिए एकादशी का उपवास करता है, वह पूरा फल पाता है। प्रतिनिधि-सम्बन्धी ये नियम सभी वर्गों के लिए हैं। यह एक अद्भुत बात है कि म्लेच्छों को भी (यदि वे श्रद्धालु हों और व्रतों में विश्वास रखते हों) व्रत करने की व्यवस्था दी गयी है, जैसा कि हेमाद्रि में उद्धृत देवीपुराण के शब्दों से प्रकट होता है। शान्तिपर्व (६५।१३-२५) में इन्द्र ने राजा मान्धाता से कहा है कि यवनों, किरातों, गान्धारों, चीनों, शबरों, बर्वरों, शकों, आन्ध्रों आदि को अपने माता-पिता की सेवा करनी चाहिए, वे वेद में व्यवस्थित कृत्यों को कर सकते हैं, वे मृत पितरों का श्राद्ध कर सकते हैं, जन-कल्याण के लिए कूप खुदवा सकते हैं और ब्राह्मणों को दान दे सकते हैं। भविष्य० (ब्राह्मपर्व, १६॥ ६१-६२) का कथन है कि हैहयों, तालजंघों, तुर्को, यवनों एवं शकों ने ब्राह्मणों के गौरव की प्राप्ति की इच्छा से प्रतिपदा को उपवास किया। ____एक अन्य विचारणीय बात यह है कि महाभारत के अनुसार ब्राह्मणों एवं क्षत्रियों को लगातार तीन दिनों तक उपवास नहीं करना चाहिए, किन्तु वैश्य एवं शूद्र लगातार दो दिनों तक उपवास कर सकते हैं। यही बात देवल ने भी कही है। ४. क्वचिम्लेच्छानामप्यधिकारो हेमाम्रो देवीपुराणे। स्नातः प्रमुदितहृष्टाह्मणः क्षत्रियपः। वैश्यः शूर्भक्तियुक्तम्लेंच्छरन्यश्च मानवैः। स्त्रीभिश्च कुरुशार्दूल तद्विधानमिदं शृणु। व्रतार्क। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002792
Book TitleDharmshastra ka Itihas Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPandurang V Kane
PublisherHindi Bhavan Lakhnou
Publication Year1971
Total Pages526
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size18 MB
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