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धर्मशास्त्र का इतिहास
अग्नि० (२६३।७-८ ) ने उपर्युक्त १८ शान्तियों का उल्लेख किया है और कहा है कि अमृता, अभया एवं सौम्या नामक शान्तियाँ सर्वोत्तम हैं। कतिपय असामान्य उत्पातों की दशाओं में कई शान्तियों की चर्चा वराहमिहिर ने भी की है। स्थान- संकोच से हम उसकी चर्चा यहाँ नहीं कर सकेंगे। किन्तु एक शान्ति का उल्लेख आवश्यक है—'यदि कोई यक्षों ( यातुधानों) को देखे, जब ज्योतिषियों द्वारा महामारी का निर्देश हो तो ऐसी स्थितियों में गर्ग ने उनके नाश के लिए निम्न शान्तियों दी व्यवस्था दी है-- महाशान्ति, बलि, पर्याप्त भोजन, इन्द्र एवं इन्द्राणी की पूजा (बृ० सं० ४५।७९-८० ) । बृ० सं० (४५।८२ - ९५ ) ने कुछ ऋतुओं में उपस्थित घटनाओं को उत्पात नहीं माना है और मत्स्य ० ( २२९।१४ - २५) में आये हुए ऋषिपुत्र के वचनों को (कुछ अन्तरों के साथ) उद्धृत किया है, यथा चैत्र एवं वैशाख में निम्न शुभ (ऐसे उत्पात जिनमें शान्ति की आवश्यकता नहीं होती ) हैं - विद्युत चमक, उल्कापात, मूचाल, चमकती सन्ध्याएँ, अन्धड़-तूफान, मण्डल, गगन धूलि, वन धूम, रक्तिम सूर्योदय एवं सूर्यास्त ।
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