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________________ धर्मशास्त्र का इतिहास वरुण, चाहे जो, मित्र या सहायक मेरे प्रति घोषित करता है कि मुझे स्वप्न से भय है, या कोई भी,चाहे चोर या भेड़िया मेरी हानि करना चाहता है, उससे आप हमारी रक्षा करें।' ऋ० (८१४७।१५) में ऋषि घोषणा करता है-'हम सभी दुःस्वप्न त्रित आप्त्य को दे देते हैं, आपकी कृपा किसी द्वारा रोकी नहीं जा सकती, आप द्वारा की गयी रक्षा अच्छी है।' देखिए ऋ० (८।४७।१४, १६-१८; १०।३६१४; १०१३७।४), जहाँ बुरे स्वप्नों की चर्चा हुई है। इसी प्रकार ऋ० में पक्षियों की बोलियों से अच्छे या बुरे शकुनों एवं उल्लू की बोली से अपशकुन की बात कही गयी है (२।४१।१)। और देखिए ऋ० (२।४३।१-३; १०।१६५।१-३; १०।१६५।५) एवं अथर्व० (६।२७।१-३; ६।२९।१-२) तथा आश्व० गृ० (३।७७), मानव गृ० (२।१७), कौशिकसूत्र (४७७) एवं ऋग्विधान (४।२०।२)। शांखायनगृह्म (५।६, ७, १० एवं ११) में आया है-'यदि कोई रोगग्रसित हो जाय तो उसे ऋ० (१।११४) के मन्त्रों के, जो रुद्र की स्तुति में कहे गये हैं, साथ गवेधुक अन्नों की आहुतियां देनी चाहिए। यदि किसी के घर में मधुमक्खियां छत्ता बना लें तो उसे ऋ० (११११४) के साथ १०८ उदुम्बर-टुकड़ों को दही, मधु एवं घी से युक्त कर यज्ञ करना चाहिए और उपवास करना चाहिए तथा ऋ० (७।३५) का पाठ करना चाहिए; मदि घर में चींटियां ढूह बना लें तो घर का त्याग कर देना चाहिए और तीन रातों (एवं दिनों) का उपवास करके महाशान्ति का कृत्य करना चाहिए। ऐतरेय आरण्यक (३।२।४) में दस स्वप्नों का उल्लेख है, यथा कोई व्यक्ति काले दाँत वाले काले पुरुष को देखता है, और वह पुरुष उसे मार डालता है, या सूअर उसे मार डालता है, या उस पर बन्दर झपटता है, वायु उसे तेजी से उड़ा ले जाती है। वह सोना निगलकर वमन कर देता है; मधु खाता है; कमलों के डंठल चूसता है; केवल एक (लाल) कमल-नाल लेकर चलता है; गदहों या सूअरों के झुण्ड हाँकता है; नलद पुष्पों की माला पहनकर वह काले बछड़े के साथ काली गाय को दक्षिण दिशा में हाँकता है। यदि कोई इनमें से एक भी स्वप्न देखता है तो उसे उपवास करना चाहिए, एक पात्र में दूध के साथ चावल पकाना चाहिए और उसकी आहुतियां अग्नि में डालनी चाहिए और रात्रिसूक्त (ऋ० १०.१२७।१-८) का पाठ करना चाहिए, अन्य भोजन (गृह में पका) ब्राह्मणों को देना चाहिए और स्वयं चावल खाना चाहिए। इसी आरण्यक में कुछ विचित्र प्रकृति-रूपों के देखे जाने की चर्चा है, यथा सूर्य को पीले चन्द्र की भांति देखना, आकाश को मजीठ के रूप में देखना आदि। छान्दोग्योपनिषद् (५।२।९) में आया है-'यदि कोई काम्य कृत्य में संलग्न रहने पर स्वप्न में स्त्री देखता है तो समझना चाहिए उसे समृद्धि प्राप्त होगी (इच्छित वस्तु प्राप्त होगी)।' छान्दोग्योपनिषनद् (८।१०।१), बृहदारण्यकोपनिषद् (४।३।७-२०) एवं प्रश्न० (४१५) में स्वप्न-प्रकृति-रूपों के मनोविज्ञान पर विचार प्रकट किये गये हैं, जिन पर हम यहाँ विचार नहीं करेंगे। अथर्व० में भी स्वप्नों एवं कपोत (कबूतर) जैसे पक्षियों के विषय में कतिपय वचन हैं। कौशिक-सूत्र में शान्ति के रूप में अथर्व० के मन्त्र (४।४५।१ एवं ४६।१) उल्लिखित हैं (८।२०) : 'स्वप्न देखने पर व्यक्ति अथर्व० (२।४५।१ एवं ४६।१) के पाठ के साथ मुख-प्रक्षालन करता है, यदि वह भयानक स्वप्न देखता है तो मिश्र धान्य (कई अन्न ) अग्नि में डालता है या दूसरी दिशा (शत्रु के खेत) में डालता है। अथर्व० (७।१००११) के साथ करवट बदल लेता है, स्वप्न में खाते समय वह अथर्व० (७१०१।१) का पाठ करता है और देखने लगता है; अथर्व० (६। ६. ऋनिक्रदज्जनुषं..."विदत्॥ऋ० २।४२१। निरक्त (९४) ने इसका अर्थ किया है। सायण के मत से यहाँ कपिजल पक्षी की ओर संकेत है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002792
Book TitleDharmshastra ka Itihas Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPandurang V Kane
PublisherHindi Bhavan Lakhnou
Publication Year1971
Total Pages526
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size18 MB
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