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________________ पंचांग सुधार समिति का प्रतिवेदन ३४१ पंचांग-निर्माण में स्थान विशेष पर लोग ध्यान नहीं देते। पूना एवं बम्बई में दूरी का अन्तर है, रेखांशों का अन्तर है। दोनों के पंचांग एक नहीं हो सकते। १० या १५ मील की दूरी विशेष दूरी नहीं है, किन्तु पूना एवं बम्बई की दूरी अधिक है। वास्तव में प्रत्येक नगर का पंचांग पृथक् होना चाहिए। नवम्बर सन् १९५२ में शासन की ओर से डा० मेघनाथ साहा की अध्यक्षता में पंचांग सुधार समिति (कलेण्डर रिफार्म कमिटी) बनी, जिस पर सारे भारत के लिए एक पंचांग बनाने का भार सौंपा गया। उस समिति ने नवम्बर सन् १९५५ में अपना मूल्यवान् निष्कर्ष उपस्थित किया। लोक-पंचाग एवं धार्मिक पंचांग रिपोर्ट के पृ० ६-८ में अंकित हैं। स्वतन्त्र भारत के प्रशासन द्वारा सबके लिए समान पंचांग की व्यवस्था की जानी चाहिए। लोक पंचांग के लिए समिति द्वारा निम्न निष्कर्ष दिये गये हैं--- (१) शक संवत् का प्रयोग होना चाहिए। शक संवत् १८८६ सन् १९६४-६५ ई० के बराबर है।' (२) वर्ष का आरम्भ वासन्तिक विषुव के अगले दिन से होना चाहिए। (३) सामान्य वर्ष में ३६५ दिन हों, किन्तु प्लुत (लीप) वर्ष में ३६६ दिन हों। शक संवत् में ७८ जोड़ने पर यदि ४ से भाग लग जाय तब वह प्लुत वर्ष माना जायगा। किन्तु जब योग में १०० का भाग लग जाय तो जब उसमें ४०० से भाग लगेगा तभी प्लुत वर्ष माना जायगा, अन्यथा वह सामान्य वर्ष ही समझा जायगा। (४) चैत्र (या छैत्र भी लिखा जाता है) वर्ष का प्रथम मास होगा और मासों के दिन निम्न प्रकार से होंगे चैत्र : ३० दिन (या ३१ दिन, प्लुत वर्ष में) वैशाख : ३१ दिन आश्विन : ३० दिन ज्येष्ठ : ३१ दिन कार्तिक : ३० दिन आषाढ : ३१ दिन मार्गशीर्ष : ३० दिन श्रावण : ३१ दिन पौष : ३० दिन भाद्रपद : ३१ दिन माघ :- ३० दिन फाल्गुन : ३० दिन संशोधित भारतीय पंचांग के दिनांक ग्रेगॉरी पंचांग के दिनांकों की संगति में हैं। दिनांक इस प्रकार हैंभारतीय प्रेगरी भारतीय प्रेगरी चैत्र १ : मार्च २२ (सामान्य वर्ष में) अश्विन : सितम्बर २३ : मार्च २१ (लीप वर्ष में) कार्तिक : अक्तूबर २३ वैशाख १ : अप्रैल २१ मार्गशीर्ष : नवम्बर २२ ज्येष्ठ १ : मई २२ पौष : दिसम्बर २२ आषाढ १ : जून २२ माघ : जनवरी २१ श्रावण १ : जुलाई २३ फाल्गुन : फरवरी २० 'भाद्रपद १ : अगस्त २३ संशोधित पंचाग के अनुसार भारतीय ऋतु-क्रम यों होगा ग्रीष्म : वैशाख एवं ज्येष्ठ हेमन्त : कार्तिक एवं मार्गशीर्ष वर्षा : आषाढ़ एवं श्रावण शिशिर : पौष एवं माघ शन्द् : भाद्रपद एवं आश्विन वसन्त : फाल्गुन एवं क्षेत्र www.jainelibrary.org Jain Education International For Private & Personal Use Only
SR No.002792
Book TitleDharmshastra ka Itihas Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPandurang V Kane
PublisherHindi Bhavan Lakhnou
Publication Year1971
Total Pages526
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size18 MB
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