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धर्मशास्त्र का इतिहास पंचांगों के पांचों अंगों की चर्चा कर लेने के उपरान्त हिन्दू पंचांगों के विषय में कुछ कह देना आवश्यक है। भारत में बहुत-से पंचांग हैं, और एक प्रकार से इस क्षेत्र में अराजकता-सी है। कदाचित् ही दो पंचांग आपस में मेल रखते होंगे। बहुत-से भारतीय ऐसा चाहते हैं कि भारतीय गणना-पद्धति आधुनिक वैज्ञानिक ज्योतिःशास्त्रीय पद्धति के पास ला दी जाय। यदि वराहमिहिर जैसे ज्योतिविद् आज होते तो वे ऐसा ही करते। वराहमिहिर ने बृहत्संहिता (१०५।५) एवं बृहज्जातक (२८१८) में कहा है-"इस ग्रन्थ को प्रयोग में लाते समय जो कुछ अवैज्ञानिक लगे, या पाण्डुलिपि (लिखावट) में दोष के कारण जो कुछ त्रुटिपूर्ण अँचे, या मेरे द्वारा जो कुछ त्रुटिपूर्ण हो गया हो या अल्प रह गया हो या न हो सका हो, वह, विद्वानों द्वारा राग का त्याग करके एवं विद्वानों के मुख से ज्ञान प्राप्त करके ठीक कर लिया जाना चाहिए।" आधुनिक काल में भारतवर्ष में ज्योतिषियों के तीन सम्प्रदाय हैं-सूर्यसिद्धान्त (सौर पक्ष) का सम्प्रदाय, (२) ब्रह्मसिद्धान्त (ब्राह्म पक्ष) का सम्प्रदाय एवं (३) आर्यसिद्धान्त (आर्य पक्ष) का सम्प्रदाय। इनके अन्तर में दो बातें प्रमुख हैं-(१) वर्ष का मान (विस्तार) एवं (२) महायुग जैसी किसी विशिष्ट कालावधि में सूर्य, चन्द्र एवं ग्रहों के भ्रमणों की संख्या। वर्ष के विस्तार का अन्तर इन सिद्धान्तों में बहुत अल्प है, यथा कुछ विपल (एक विपल १/६० पल, एक पल १/६० घटिका और एक घटिका २४ मिनट)। सूर्यसिद्धान्त के अनुसार वर्ष-विस्तार में ३६५ दिन, १५ घटिकाएँ एवं ३१.५२३ पल हैं, किन्तु वासन्तिक विषुव तक सूर्य के दोनों अयनों के बीच की अवधि है ३६५ दिन, १४ घटिकाएँ एवं ३१.९७२ पल तथा नाक्षत्र वर्ष में ३६५ दिन, १५ घटिकाएँ, २२ पल एवं ५३ विपल पाये जाते हैं। इसका निष्कर्ष यह है कि सूर्यसिद्धान्त के अनुसार हिन्दू ज्योतिविदों का आरम्भ-बिन्दु आज वासन्तिक बिषुव के बिन्दु से पूर्व में २३ अंश अधिक है। इस अन्तर को अयनांश कहा जाता है। विषुव से गिनने पर आकाशचारी पिण्डों के रेखांशों में ये अयनांश भी सम्मिलित हैं, अतः ये सायन (स=अयन) कहे जाते हैं। सूर्यसिद्धान्त एवं मध्यकालिक संस्कृत ग्रन्थों की विधियों से प्राप्त आकाशीय पिण्डों के स्थान निरयन गणना द्वारा प्रकट किये जाते हैं। आजकल अधिकांश पंचांगों के मत से, जो सूर्यसिद्धान्त पर आधारित हैं, मकरसंक्रान्ति सामान्यतः १४ जनवरी को पड़ती है, किन्तु आज की अधिकतम सही गणना के अनसार यह २१ दिसम्बर को पड़नी चाहिए। उन पंचांगों के अनसार, जिन्हें ठीक शद्ध होने का गर्व है, मकरसंक्रान्ति ९ जनवरी को पड़ती है, अर्थात हमारी मकर संक्रान्ति शद्ध समय से २३ या १८ दिन उपरान्त पड़ती है और यही बात वासन्तिक एवं शारद विषव तथा ग्रीष्म अयन आदि निरीक्षणों के विषय में भी पायी जाती है। आज भी अश्विनी (जिसमें शक संवत् ४४४ में वासन्तिक विषुव पड़ता था) को प्रथम नक्षत्र कहा जाता है, जब कि वासन्तिक विषुव-बिन्दु उत्तरा-भाद्रपदा नक्षत्र (जिसे अब प्रथम नक्षत्र माना जाना चाहिए) में आ गया है। आधुनिक गणना के समीप भारतीय पंचांग को मिलाने का प्रयास किया गया है, किन्तु अभी सफलता नहीं के बराबर प्राप्त हो सकी है। लोकमान्य बालगंगाधर तिलक ने सन् १९१४ (बम्बई), १९१७ (पूना) एवं १९१९ (सांगली) में तीन ज्योतिर्विद्-गोष्ठियाँ की और प्रस्ताव भी रखे गये, किन्तु परम्परावादी दृष्टिकोण के कारण विशेष सफलता नहीं प्राप्त हो सकी। आज भी लोग सूर्यसिद्धान्त से शासित होना पसंद करते हैं।
७. ग्रन्थस्य यत्प्रचरतोऽस्य विनाशमेति लेख्याद् बहुश्रुतमुखाधिगम क्रमेण। यद्वा मया कुकृतमल्पमिहाकृतं वा कार्य तदत्र विदुषा परिहृत्य रागम्॥
-० सं० (१०५।५) एवं बृहज्जातक (२८३८)।
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