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धर्मशास्त्र का इतिहास
इस प्रकार की कि इसके अक्षरों की संख्या १२००० व्याहृतियों (प्रत्येक व्याहृति में ३६ अक्षर होते हैं) के बराबर है, अर्थात् कुल अक्षर ४,३२,००० हैं; ऐसा भी कहा गया है कि ऋग्वेद में १०,८०० पंक्तियाँ ( प्रत्येक पंक्ति में ४० अक्षर हैं, अतः १०८०० x ४० = ४,३२,०००) हैं । प्रजापति ने अन्य दो वेदों की व्यवस्था भी की और तीनों वेदों में ८,६४,००० अक्षर हैं । ३६० यज्ञिय दिनों में १०,८०० मुहूर्त होते हैं और मुहूर्त के उपरान्त मुहूर्त पर ८० अक्षरों की वृद्धि होती है, अतः १०८००x८० = ८,६४,००० अक्षर हुए। पेरिस के 'कालेज दि फ्रांस' के प्रो० डा० जीन फ़िलियोजात ने एक मत प्रकाशित किया है कि शतपथ में दी हुई उपर्युक्त संख्या वैज्ञानिक है। और हेराक्लिटस ने जो कहा है कि १०,८०० साधारण मानुष वर्ष 'महान् वर्ष' के द्योतक हैं और बेरोसस ने जो यह कहा है कि महान् ज्योतिषीय काल ४,३२,००० वर्षों का है, तो इन दोनों से शतपथ ब्राह्मण का कथन बहुत प्राचीन है । अतः यदि उधार लेने की बात उठती है तो वह यह है कि यूनानियों ने भारत से उधार लिया ( देखिए डा० जे० फ़िलियोज़ात, जे० ओ० आर०, मद्रास, जिल्द २५, १९५७ ई०, पृ० १-८ ) । ब्रह्मा का एक दिन बराबर हैं एक कल्प के, अर्थात् ४,३२,००००×१००० = ४, ३२,००,००,००० वर्ष । ब्रह्मा के जीवन के १०० वर्ष के मानुष बर्ष जानने के लिए ४,३२,००,००,००० को २ से गुणा और पुनः ३६० और पुनः १०० से गुणा करना होगा, इस प्रकार ब्रह्मा का वर्ष बराबर होगा ३१,१०,४०,००,००,००,००० वर्ष के । यही बात अल्बरूनी (सची, जिल्द १, पृ० ३३२ ) ने भी कही है। कुछ लोगों ने ब्रह्मा के जीवन को १०८ वर्ष माना है । ब्रह्मा अब तक ५० वर्ष के हो 'चुके हैं और यह उनके जीवन का दूसरा अर्घाश है, अब वाराहकल्प एवं वैवस्वत मन्वन्तर (सातवाँ ) चल रहा है। अतीत छः मनु हैं - स्वायंभुव, स्वारोचिष, उत्तम, तामस, रैवत एवं चाक्षुष तथा आज के मनु हैं वैवस्वत ( सातवें ) । देखिए ब्रह्म० (५/४-५ ), विष्णु ० ( ३।१।६-७ ) । शेष ७ मनु विभिन्न रूपों से संज्ञापित हैं । नरसिंहपुराण (२४।१७-३५) में भावी मनुओं के नाम ये हैं सार्वाण, दक्ष सावणि, ब्रह्मसावर्णि, धर्मसावर्णिक, सावर्णि, रुचि एवं भौम; ब्रह्म० (५/५-६ ) में ७ में ४ नाम ये हैं- सावर्णि, रैभ्य, रौच्य एवं मेरुसावणि । नारदपुराण ( १।४०।२०- २३ ) में १४ मनुओं के नाम आये हैं। ऐसा आया है कि प्रत्येक मन्वन्तर' में विभिन्न ऋषियों, मनु-पुत्रों, देवों, राजाओं, स्मृतियों, इन्द्र एवं धर्म की सम्यक् व्यवस्था एवं लोगों की रक्षा के पालकों का दल होता है (ब्रह्म० ५।३९; विष्णु० ३।१-२ ) । विष्णु० में ऐसा आया है कि कुछ देव चार युगों तक, कुछ एक मन्वन्तर तक और कुछ एक कल्प तक रहते हैं (१।१२।९३) । विष्णुधर्मसूत्र ( २०११ - १५ ) में मनु के समान ही मन्वन्तरों एवं कल्पों का उल्लेख है किन्तु इसमें एक अन्य बात भी है कि ब्रह्मा का सम्पूर्ण जीवन पुरुष (विष्णु) के एक दिन के बराबर है और पुरुष की रात्रि भी इतनी ही लम्बी है। यह द्रष्टव्य है कि यहीं मत अलबरूनी (सची, जिल्द १, पृ० ३३२ ) ने पुलिश सिद्धान्त में भी पाया है। यह नहीं ज्ञात है कि उन यूरोपीय विद्वानों ने, जो पुलिश को पौलस अलेक्जैंड्रिनस कहते हैं, यह किस प्रकार दर्शाया है कि उपर्युक्त बातें यूनानी ज्योतिर्विद् पौलस में पायी जाती हैं । अन्य विस्तार हम यहीं छोड़ते हैं।
३. मन्वन्तर का अर्थ है 'अन्य मनुः' या 'मनूनामन्तरमवकाशोऽवधिर्वा । यदि १००० महायुगों को १४ से भाग दें तो प्रत्येक मन्वन्तर ७१ महायुग + कुछ और ( अर्थात् १ महायुग ) । 'मनु' शब्द ऋग्वेद एवं अन्य संहिताओं में आया है। मनु को मानवता एवं ऋषियों (मुनियों) का पिता कहा गया है और कहा गया है कि वे मानवों के उचित मार्ग का प्रदर्शन करते हैं। देखिए ऋ० (२।३३।१३, ८1३०1३, ४५४५१ ) ; तै० सं० (२।२।१०।२); काठक सं० ( १११५ ) । शतपथ ब्रा० ( १२८|१|१) में मनु एवं प्रलय को प्रसिद्ध गाथा आयी है। तं० सं० (३०१।९।४-६ ) एवं ऐ० ब्रा० (२२/९) में मनु एवं उनके पुत्र नाभानेदिष्ट की कथा है।
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