SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 348
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ कल्प और युग का पर्व एवं विस्तार ३३१ प्रक्षेपों (फेंकों) को युग कहा जाता था, किन्तु लगभग ई० पू० चौथी शती (यदि इससे पूर्व नहीं) युग मानवों से सम्बन्धित हो गया। आरम्भिक गुप्ताभिलेखों में कृत युग को महान् गुणों के वृत्त से सम्बन्धित माना गया है (एपि० इण्डिका, जिल्द २३, पृ० ८१)। महाभारत में युगों, मन्वन्तरों एवं कल्पों के सिद्धान्त का विस्तार से उल्लेख हुआ है (वन० अध्याय १४९, १८८; शान्ति०, अ० ६९, २३१-२३२); मनु (१।६१-७४, ७९-८६), विष्णुधर्मसूत्र (२०११-२१), विष्णुपुराण (१॥३, ६॥३), ब्रह्म (५।२२९-२३२), मत्स्य० (१४२-१४५), वायु० (अध्याय २१, २२, ५७, ५८,१००), कर्म० (१,०५१ एवं ५३), ब्रह्माण्ड० (२।६ एवं ३१-३६, ३१), मार्कण्डेय० (५८-६४, ६६-७०, ७१-९७) में भी युग-सम्बन्धी विशाल साहित्य है। ज्योतिःशास्त्रीय ग्रन्थ भी, यथा आर्यभटीय, सूर्यसिद्धान्त, ब्रह्मगुप्त, सिद्धान्तशिरोमणि इनके विषय में उल्लेख करते हैं। किन्तु इनमें कहीं भी कल्पों, मन्वन्तरों एवं युगों के उद्भव के विषय में सन्तोषजनक व्याख्या नहीं पायी जाती । पाजिटर महोदय' का कथन है कि युग-विभाजन का ऐतिहासिक आधार है। ऐसा हो सकता है और नहीं भी हो सकता। कतिपय पुराणों में आया है कि युग-सिद्धान्त भारत तक ही सीमित था। सामान्यतः युगों के स्वभाव या स्वरूप का वर्णन इन प्रन्यों में एक-सा है, किन्तु विस्तारों में मतभेद है। मनुस्मृति के उल्लेख प्राचीनतम उल्लेखों में परिगणित हैं, अतः हम संक्षेप में उन्हें यहाँ सर्वप्रथम रखेंगे। सात मन ये हैं-स्वायम्भव, स्वारोचिष, उत्तम, सामस, रैवत, चाक्षुष एवं वैवस्वत । इसके उपरान्त निमेषों का विभाजन है (१८ निमेष-काष्ठा, ३० काष्ठा-कला, ३० कला-मुहूर्त, ३० मुहूर्त अहोरात्र)। ऐसा आया है कि मानव मास पितरों का अहोरात्र (दिन एवं रात्रि) है, मानव वर्ष देव अहोरात्र है। कृतयग का विस्तार देव-मान से ४००० वर्ष है, इसके पूर्व सन्ध्या ४०० वर्ष है, इसके उपरान्त सन्ध्यान्त ४०० वर्ष है। शेष तीन, त्रेता, द्वापर एवं कलियग ऋम से ३०००. २००० एवं १००० देव वर्ष के हैं: सन्ध्या एवं सन्ध्यान्त क्रम से हैं ६००,४०० एवं २०० दैव वर्ष । इस प्रकार चार युगों का विस्तार १२००० वर्षों (४८००+३६००+२४००+१२००) का है, जिसे देवों का युग (यह दिव्य मानक है) कहा गया है। इन चारों के १००० वर्ष ब्रह्मा का एक दिन और उतनी ही ब्रह्मा की एक रात्रि है। १२००० देव वर्षों के ७१ युगों में प्रत्येक को मन्वन्तर कहा जाता है और मन्वन्तर असंख्य हैं और इसी प्रकार सृष्टियां एवं प्रलय भी असंख्य हैं। मनु में कल्प का उल्लेख नहीं है। मनुस्मृति के अतिरिक्त अन्य ग्रन्थों में यथा विष्णुपुराण (६।३।११-१२) में आया है कि १४ मन्वन्तरों का एक कल्प होता है, जो ब्रह्मा का एक दिन है। देवों का एक दिन एक मानव वर्ष है, अतः १२००० वर्षों की चतुर्युगी ४३,२०,००० मानव वर्षों के बराबर होगी (१२०००४३६०), जिसे मानुष काल-मानक कहा जाता है। युगों की इन विशाल वर्ष-संख्याओं का निर्देश कब और कैसे हुआ, यह अभी एक पहेली ही है। शतपथ ब्राह्मण काल में ही लोग विशाल वर्ष-संख्याओं से परिचित थे। वहाँ (१०४।२, २२, २३ एवं २५) आया है कि एक वर्ष में १०,८०० मुहूर्त होते हैं (३०४३६०, ३० अहोरात्र का द्योतक है), प्रजापति ने ऋग्वेद की व्यवस्था तो कलियुग का आरम्भ हो गया। यह बात वायु० (९९।४२८-२९), ब्रह्माण्ड० (३।७४१२४१), मत्स्य० (२७३॥ ४९-५०), विष्णु० (१२४११०), भागवत ० (१२।२।३२), ब्रह्म० (२१२।८) में दूसरे शब्दों में कथित है। मौसलपर्व (श१३ एवं २।२०) में आया है कि कृष्ण भारत-युद्ध के ३६ वर्षों के उपरान्त स्वर्ग को चले गये। इन बातों से इतना तो स्पष्ट है कि भारत-युद्ध (महाभारत) के तुरन्त उपरान्त ही या कुछ वर्षों के उपरान्त द्वापर का मन्त हभा। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002792
Book TitleDharmshastra ka Itihas Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPandurang V Kane
PublisherHindi Bhavan Lakhnou
Publication Year1971
Total Pages526
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size18 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy