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________________ ३२८ धर्मशास्त्र का इतिहास दिवस (सोमवार) आया है। बृ० सं० (१०३।६१-६३) ने रविवार से शनिवार तक के कर्मों का उल्लेख किया है। इसी विषय में उत्पल ने गर्ग नामक प्राचीन ज्योतिर्विद् के १८ अनुष्टुपु श्लोकों का उद्धरण दिया है। कर्न ने गर्ग को ई० पू० पहली शती का माना है। इससे प्रकट है कि भारत में सप्ताह-दिनों का ज्ञान ई० पू० प्रथम शती में अवश्य था। फिलास्ट्रेटस ने टायना के अपोल्लोनियस (जो सन् ९८ ई० में मरा) के जीवन-चरित में लिखा है कि किस प्रकार भारत में यात्रा करते समय अमोल्लोनियस ने ब्राह्मणों के नेता इर्चुस से ७ अंगूठियाँ प्राप्त की, जिन पर ७ ग्रहों के नाम थे और जिन्हें उसे प्रतिदिन एक-एक करके पहनना था। इससे भी यही प्रकट होता है कि ग्रह-नाम वाले सप्ताह-दिनों का ज्ञान भारतीयों को प्रथम शती में प्राप्त था। अतः ई० पू० प्रथम शती एवं ई० उपरान्त प्रथम शती के बीच में भारत के लोग ग्रहीय दिनों से परिचित थे। वैखानस-स्मार्त-सूत्र (१।४) एवं बौधायनधर्मसूत्र (२।५।२३) में सूर्य, चन्द्र, मंगल, बुध, बृहस्पति, शुक्र, शनि, राहु एवं केतु नामक ग्रहों के नाम आये हैं। प्रथम ग्रन्थ (२।१२) में बुधवार का भी उल्लेख है। आथर्वणवेदांग-ज्योतिष (वारप्रकरण, श्लोक १ से ८) में रविवार से लेकर शनिवार तक के कर्मों का उल्लेख है। गाथासप्तशती (हाल कृत प्राकृत काव्य-संग्रह) में मंगल एवं विष्टि का उल्लेख है (३।६१) । याज्ञ० (११२९६) में आज की भाँति दिनों एवं राहु-केतु के साथ नवग्रहों की चर्चा है। यही बात नारदपुराण (११५११८०) में है। और देखिए मत्स्य० (९३।७), विष्णुधर्मोत्तर (७८।१-७) आदि। पुराणों में सप्ताह-दिनों के विषय में बहुत-से वजित एवं मान्य कर्मों के उल्लेख हैं। बहुत-से पुराणों की तिथियों के विषय में मतभेद है, किन्तु इतना तो प्रमाणों से सिद्ध है कि ईसा की प्रथम दो शतियों में ग्रहों की पूजा एवं सप्ताह के दिनों के विषय में पूर्ण ज्ञान था। महाभारत जैसे विशाल ग्रन्थ में, जहाँ धर्मशास्त्रीय उल्लेख अधिक संख्या में हुए हैं, सप्ताह-दिनों की चर्चा नहीं है। जैसा कि ऊपर कहा जा चुका है, यह सप्रमाण सिद्ध हो चुका है कि भारतीय लोग ई० पू० प्रथम शती एवं ई० उपरान्त प्रथम शती के बीच ग्रहों की पूजा एवं ग्रहयुक्त दिनों के ज्ञान से भली भाँति परिचित थे। एक अन्य द्रष्टव्य बात यह भी है कि दिनों के नाम पूर्णतया भारतीय हैं, उन पर यूनानी या अभारतीय प्रभाव नहीं है। किन्तु राशियों के नाम के विषय में ऐसी बात नहीं है, वहाँ 'क्रिय' एवं 'लेय' जैसे शब्द बाह्य रूप से आ गये हैं। टॉल्मी (सन् १५० ई०) ने २४ घण्टों एवं ६० भागों का उल्लेख किया है। भारतीयों में ६० घटिकाओं का प्रयोग प्राचीन है। भारतीयों ने दोपहर या रात्रि से दिन की गणना नहीं की, प्रत्युत प्रातः से की है। आश्वमेधिकपर्व (४४१२) में स्पष्ट कथन है कि पहले दिन आता है तब रात्रि आती है। भारत में सात दिनों वाले दिन-वृत्त के विषय में कई सिद्धान्तों का प्रतिपादन करना सम्भव है। बुध, शुक्र, मंगल, बृहस्पति एवं शनि पाँच ग्रहों के साथ प्राचीन बेबिलोनियों ने पाँच देवों की कल्पना की थी। ये देव आगे चलकर रोमक रूपों में परिवर्तित हो गये। प्रेम की देवी ईस्टर शुक्र के रूप में हो गयी, मर्दुक नामक बड़ा देव बृहस्पति हो गया. . . आदि। ये पाँचों ग्रह सूर्य एवं चन्द्र के साथ स्वगिक रूप वाले हो गये। चाल्डिया के मन्दिरों में जो पूजा होती थी और जो सीरिया तक प्रचारित थी, उसमें विशिष्ट दिन पर प्रत्येक देव की प्रार्थनाएँ होती थीं। जो देव जिस दिन पूजित होता था वह उसी दिन के साथ समन्वित हो गया। जो दिन सूर्य एवं चन्द्र के लिए पवित्र थे वे रविवार एवं सोमवार हो गये। इंग्लैण्ड में कुछ दिन-नाम प्रयोग में आ गये, यथा वेड्नस डे (वोडेसडे) एवं थरडे (थोर्स डे)। किन्तु सप्ताह के दिन यूरोप में बेबिलोनी देवों के नाम से ही बने। भारत एवं बेबिलोन में आते प्राचीन कॉल से व्यापारिक तथा अन्य प्रकार के सम्पर्क स्थापित थे। इस विषय में हमने पहले ही चर्चा कर ली है। भारत में सूर्य-पूजा प्राचीन है, यथा कश्मीर में मार्तण्ड, उत्तरी गुजरात में मोढेरा, उड़ीसा में कोणार्क। आज भी कहीं-कहीं राहु एवं केतु के मन्दिर हैं, यथा अहमदनगर जिले में राहुरि स्थान पर। कौटिल्य ने काल के बहुत-से भागों का Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002792
Book TitleDharmshastra ka Itihas Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPandurang V Kane
PublisherHindi Bhavan Lakhnou
Publication Year1971
Total Pages526
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size18 MB
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