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धर्मशास्त्र का इतिहास
में बाँटा है, जिनमें प्रत्येक भाग दो विषुवीय घण्टों का होता है। एथेंस एवं यूनान में ऐतिहासिक कालों में दिन, सामान्यतः पंचांग के लिए सूर्यास्त से आरम्भ होता था। रोम में दिन का आरम्भ आधी रात से होता था। भारतीय लेखकों ने दिनारम्भ सूर्योदय से माना है ( ब्राह्मस्फुट - सिद्धान्त ११।३३), किन्तु वे दिन के विभिन्न आरम्भों से अनभिज्ञ नहीं थे। पंचसिद्धान्तिका (१५।२० एवं २३ ) में आया है कि आर्यभट ने घोषित किया है कि लंका में दिन का आरम्भ अर्धरात्रि से होता है, किन्तु पुनः उन्होंने कहा है कि दिन का आरम्भ सूर्योदय से होता है और लंका का वह सूर्योदय सिद्धपुर में सूर्यास्त से मिलता है, यमकोटि में मध्याह्न के तथा रोमक देश में अर्धरात्रि से मिलता है । '
आधुनिक काल में लोक-दिन का आरम्भ अर्द्धरात्रि से होता है ।
सप्ताह केवल मानव निर्मित व्यवस्था है। इसके पीछे कोई ज्योतिःशास्त्रीय या प्राकृतिक योजना नहीं है । स्पेन - आक्रमण के पूर्व मेक्सिको में पाँच दिनों की योजना थी। सात दिनों की योजना यहूदियों, बेबिलोनियों एव दक्षिण अमेरिका के इंका लोगों में थी । लोकतान्त्रिक युग में रोमनों में आठ दिनों की व्यवस्था थी, मिस्त्रियों एवं प्राचीन अथेनियनों में दस दिनों की योजना थी। ओल्ड टेस्टामेण्ट में आया है कि ईश्वर ने छः दिनों तक सृष्टि की और सातवें दिन विश्राम करके उसे आशीष देकर पवित्र बनाया (जेनेसिरा २1१-३ ) । एक्सोडस (२०१ ८-११, २३।१२-१४) एवं डे उटेरोनामी (५।१२-१५) में ईश्वर ने यहूदियों को छः दिनों तक काम करने का आदेश दिया है और एक दिन ( सातवें दिन ) आराम करने को कहा है और उसे ईश्वर के सैब्बाथ (विश्रामवासर) के रूप में पवित्र मानने की आज्ञा दी है । यहूदियों ने सैब्बाथ (जो सप्ताह का अन्तिम दिन है) को छोड़कर किसी दिन को नाम नहीं दिया है; उसे वे रविवार न कहकर शनिवार मानते हैं।
ओल्ड टेस्टामेण्ट में सप्ताह - दिनों के नाम ( व्यक्तिवाचक) नहीं मिलते। ऐसा प्रतीत होता है कि न्यू टेस्टामेण्ट में भी सप्ताह-दिन केवल संख्या से ही द्योतित हैं ( मैथ्यू २८|१; मार्क, १६९; ल्यूक, २४|१) । सप्ताह में कोई न कोई दिन कतिपय देशों एवं धार्मिक सम्प्रदायों द्वारा सैब्बाथ ( विश्रामदिन ) या पवित्र माना गया है, यथा सोमवार यूनानी सैब्बाथ दिन, मंगल पारसियों का, बुध असीरियों का बृहस्पति मिस्त्रियों का, शुक्र मुसलमानों का, शनिवार यहूदियों का एवं रविवार ईसाइयों का पवित्र या विश्राम दिन है ।
सात दिनों के वृत्त के उद्भव एवं विकास का वर्णन ऐफ ऐच० कोल्सन के ग्रन्थ 'दी वीक' (कैम्ब्रिज यूनीवर्सिटी प्रेस, १९२६) में उल्लिखित है । उस ग्रन्थ की कुछ बातें निम्न हैं। डायोन कैसिअस ( तीसरी शती के प्रथम चरण में) ने अपनी ३७वीं पुस्तक में लिखा है कि पाम्पेयी ने ई० पू० ८३ में जेरूसलेम पर अधिकार किया, उस दिन यहूदियों का विश्राम दिन था। उसमें आया है कि ग्रहीय सप्ताह ( जिसमें दिनों के नाम ग्रहों के नाम पर आधारित हैं) का उद्भव मिस्र में हुआ । डियो ने 'रोमन हिस्ट्री' (जिल्द ३, पृ० १२९, १३१ ) में यह स्पष्ट किया है कि सप्ताह का उद्गम यूनान में न होकर मिस्र में हुआ और वह भी प्राचीन नहीं है बल्कि हाल का है। इससे प्रकट है कि यूनान में सप्ताह का ज्ञान प्रवेश ईसा की पहली शती में हुआ। पाम्पेयी के नगर में, जो सन् ७९ ई०
लावा (ज्वालामुखी) में डूब गया था, एक दीवार पर सप्ताह के छः दिनों के नाम अलिखित हैं। इससे संकेत मिलता है कि सन् ७९ ई० के पूर्व ही इटली में सप्ताह-दिनों के नाम ज्ञात थे । कोल्सन महोदय इस बात से भ्रमित हो गये हैं कि ट्यूटान देशों में 'वेंस्डे' एवं 'थस्टडे' जैसे नाम कैसे आये । सार्टन ने 'हिस्ट्री आव साइंस' में
९. कार्धरात्रसमये विनप्रवृत्तिं जगाद चार्यभटः । भूयः स एव सूर्योदयात्प्रभूत्याह लंकायाम् ॥ उदयो यो लंकायां सोऽस्तमयः सवितुरेव सिद्धपुरे । मध्याह्नो यमकोट्या रोमकविषयेऽर्धरात्रः सः ॥ पंचसि० १५, २०, ३३ ॥
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