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________________ वर्षों और मासों के भेद तथा परिमाण ३२१ का होता है, सौर मास १ दिन बड़ा होता है ( एक मास में ३०३ दिन), चान्द्र मास में १ दिन कम (२९३ दिन), नाक्षत्र मास में २७ दिन, मलमास में ३२ दिन ( या ३२ वें मास में यह घटित होता है ? ) । जो लोग घोड़ों को चराते हैं ( या रखवाली करते हैं) उनके मास में ( पारिश्रमिक के लिए ) ३५ दिन तथा हस्तिवाहकों (पीलवानों) के मास में ( पारिश्रमिक के लिए) ४० दिन होते हैं। ब्राह्मस्फुटसिद्धान्त ( बृ० सं० २४, पृ० ४० पर उत्पल द्वारा उद्धृत ) में आया है कि सौर गणना से युग, वर्ष, विषुव, अयन, ऋतुओं, दिन एवं रात्रि की वृद्धि का ज्ञान होता है, चान्द्र गणना से तिथियों, करणों, मलमास, मास या क्षयमास, रात्रि के कृत्यों का ज्ञान होता है; सावन गणना से यज्ञों, वनों (तीन सोम यज्ञों), ग्रह-गतियों, उपवासों, जनन-मरण- आशौचों, चिकित्सा, प्रायश्चित्तों तथा अन्य धार्मिक कृत्यों का परिचय मिलता है। देखिए विष्णुधर्मोत्तर (१।७२।२६-२७ ) भी । आधुनिक काल में वर्ष का आरम्भ भारत के विभिन्न भागों में कार्तिक या चैत्र मास में होता है। प्राचीन कालों में विभिन्न देशों में विभिन्न उपयोगों के लिए विभिन्न मासों में वर्ष का आरम्भ होता था। कुछ वैदिक वचनों से प्रकट होता है कि गणना पूर्णिमान्त थी और वर्ष फाल्गुन पूर्णिमा के उपरान्त आरम्भ होता था और वसन्त वर्ष की प्रथम ऋतु था ( तै० ब्रा० १११ २ १३; कौ० ब्रा० ५।१; शांखायन ब्रा० १९।३; ताण्ड्य महा ब्रा० ५।९१७-१२ आदि ) | कालनिर्णय ( पृ० ६१ ) में माधव कहा है कि वेद पूर्णिमान्त मास पर आरूढ | स्मृतिच० (श्राद्ध, पृ० ३७७ ) का कथन है कि दक्षिणापथ में अमान्त एवं उत्तरापथ ( उत्तर भारत ) में पूर्णिमान्त गणना होती है । daiज्योतिष (१५) के मत से युग (पाँच वर्ष ) का प्रथम वर्ष माघ शुक्ल ( मकर संक्रान्ति या उत्तरायण) से आरम्भ होता है। अल्बरूनी (सची २, पृ० ८-९ ) का उल्लेख है कि चैत्र, भाद्रपद, कार्तिक, मार्गशीर्ष से भारत के विभिन्न भागों में वर्ष का आरम्भ होता है। कौटिल्य (अर्थशास्त्र २६, पृ० ६३ ) ने कहा है कि प्रशासन के आय-व्यय-निरीक्षण कार्यालय में कर्मसंवत्सर चान्द्र था जो आषाढ़ की पूर्णिमा को समाप्त होता था । वनपर्व ( १३०।१४-१६) में वर्ष के चैत्रारम्भ का उल्लेख है । यह सम्भव है कि वर्ष मार्गशीर्ष से आरम्भ होता था, क्योंकि अनुशासन, ( १०६।१७ - ३०) ने मार्गशीर्ष से कार्तिक तक के एकभक्त व्रत के फलों का वर्णन किया है । कृत्यरत्नाकर ( पृ० ४५२ ) ने ब्रह्मपुराण को उद्धृत कर लिखा हैं कि कृतयुग में मार्गशीर्ष की प्रतिपदा से वर्ष आरम्भ होता था । अब हम कुछ बातें ६० वर्ष वृत्त वाले (षष्ट्यब्द) बार्हस्पत्य मान के विषय में कहेंगे । विष्णुधर्मोत्तर (१| ८२८) का कथन है कि षष्ट्यब्द का प्रभव नामक प्रथम वर्ष माघ शुक्ल से आरम्भ हुआ, जब सूर्य एवं चन्द्र afroor नक्षत्र में थे और बृहस्पति से उनका योग था । बृं० सं० (४/२७-५२) में षष्ट्यब्द के विभव से ६० वें क्षय तक के फलों का उल्लेख है । और देखिए विष्णुधर्मोत्तर ( ११८२१९), अग्नि० (अध्याय १३९ ) एवं भविष्य ० ( ज्योतिस्तत्त्व, पृ० ६९२-६९७ में उद्धृत ) । षष्ट्यब्द के प्रत्येक वर्ष के साथ 'संवत्सर' शब्द जुड़ा हुआ है। दक्षिण में प्रत्येक वर्ष के आरम्भ में बार्हस्पत्य नाम सदा परिवर्तित रहा है; किन्तु उत्तर भारत में 'प्रभाव' के स्थान पर 'विजय' शब्द रहा है। बार्हस्पत्य वर्ष का विस्तार ३६१.९२६७ दिनों का है और यह नाक्षत्र वर्ष से ४.२३ दिन ७. त्रिंशदहोरात्रः प्रकर्ममासः । सार्धसौरः ( सार्धः सौरः ? ) । अर्धन्यूनश्चान्द्रमासः । सप्तविंशतिर्नक्षत्रमासः । द्वात्रिंशद् मलमासः । पञ्चत्रिंशदश्ववाहायाः । चत्वारिंशद्धस्तिवाहायाः । अर्थशास्त्र ( २०२०, पृ० १०८ ) । महाभाष्य (पाणिनि ४।२।२१ के वार्तिक २ पर) ने भृतकमास ( वेतन वाली नौकरी के मास) का उल्लेख किया है जो प्रकर्ममास का परिचायक -सा है। ४१ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002792
Book TitleDharmshastra ka Itihas Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPandurang V Kane
PublisherHindi Bhavan Lakhnou
Publication Year1971
Total Pages526
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size18 MB
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