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वर्मशास्त्र का इतिहास ___ हमने यह देख लिया है कि वैदिक ग्रन्थों में वर्ष के कई नाम थे, यथा संवत्सर, समा, वर्ष। नारदसंहिता (३।१-२) में ऐसा आया है कि काल के नौ प्रकार के मान थे, यथा ब्राह्म (ब्रह्मा का), देव (देवों का), मानुष (मानव), पिश्य (पितरों का), सौर, सावन, चान्द्र, नाक्षत्र एवं बार्हस्पत्य, किन्तु सामान्य भौतिक कार्यों में इनमें केवल पाँच ही प्रयुक्त होते हैं। वेदांग-ज्योतिष ने, लगता है, चार प्रकार दिये हैं, क्योंकि उसमें आया है कि एक युग (पाँच वर्षों के) में ६१ सावन मास, ६२ चान्द्र मास, ६७ नाक्षत्र मास होते हैं। हेमाद्रि (काल, पृ० ९) ने केवल तीन वर्ष-मान बताये हैं, यथा चान्द्र, सौर एवं सावन । माधव (कालनिर्णयकारिका ११-१२) ने दो और लिखे हैं, यथा नाक्षत्र एवं बार्हस्पत्य । विष्णुधर्मोत्तर ने चार का उल्लेख किया है (बार्हस्पत्य छोड़ दिया है) । हेमाद्रि द्वारा वर्णित तीन अधिकतर धार्मिक एवं लौकिक कार्यों में प्रयुक्त होते रहे हैं। एक अमावास्या से दूसरी अमावास्या तक की अवधि को चान्द्र मास कहते हैं, और ऐसे १२ मासों से ३५४ दिनों वाला एक चान्द्र वर्ष बनता है। इसे एक चन्द्रोदय से दूसरे चन्द्रोदय तक की अवधि ल्यूनेशन' भी कहते हैं। चान्द्र मास की लम्बाई (अवधि या विस्तार) २९.२४६ से २९.८१७ दिनों तक की होती है, क्योंकि चन्द्रकक्षा के थोड़े झुकाव (विपथगामिता) एवं अन्य कारणों से कुछ-न-कुछ अन्तर पड़ जाता है, किन्तु मध्यम लम्बाई है २९.५३०५९ दिन। सौर मास उस अवधि का सूचक है जो सूर्य द्वारा एक राशि को पार करने से बनती है। इस प्रकार के १२ मासों से सौर वर्ष बनता है तथा सौर वर्ष का प्रथम दिन सौर मास का प्रथम दिन मेष होता है। यदि सूर्य का राशि में प्रवेश दिन में होता है तो वह दिन मास का प्रथम दिन होता है। यदि प्रवेश रात्रि में होता है तो दूसरा दिन मास का प्रथम दिन होता है। किसी राशि में सूर्य के प्रवेश का काल विभिन्न पंचांगों में विभिन्न होता है, किसी पंचांग में सूर्यास्त के पूर्व और किसी में सूर्यास्त के उपरान्त होता है। अतः मास के प्रथम दिन के विषय में एक दिन का अन्तर हो सकता है। विभिन्न अयनाशों एवं वर्ष की लम्बाई के अन्तर के प्रयोग से दृक्, वाक्य एवं सिद्धान्त पंचांगों में अन्तर पड़ सकता है और पर्व-उत्सवों के विषय में वर्ष के प्रथम दिन में भिन्नता पायी जा सकती है। सावन वर्ष ३० दिनों के १२ मासों का होता है और दिन की गणना एक सूर्योदय से दूसरे सूर्योदय तक होती है। नाक्षत्र मास वह है जिसमें २७ नक्षत्रों में चन्द्र के गमन की अवधि पूरी होती है। बार्हस्पत्य वर्ष वह है जो एक राशि में बृहस्पति के भ्रमण से बनता है (लगभग ३६१ दिन का वर्ष)। आजकल की गणना के अनुसार बृहस्पति सूर्य के चारों ओर ११.८६ वर्षों में चक्कर लगा लेता है। ये चार या पाँच काल-विभाग प्रारम्भिक ग्रन्थों में नहीं वर्णित हैं, यहाँ तक कि पश्चात्कालीन गणना में चार विभागों का उपयोग नहीं हुआ है, यद्यपि ज्योतिःशास्त्रीय एवं धर्मशास्त्रीय ग्रन्थों में उनका उल्लेख अवश्य हुआ है। कौटिल्य (अर्थशास्त्र, २१२०, पृ० १०८) ने व्यवस्था दी है कि श्रमिकों का मास ३० अहोरात्र (दिन-रात्र)
६. ब्राह्मदेवं मानुषं च पित्र्यं सौर च सावनम् । चान्द्रमाक्षं गुरोर्मानमिति मानानि वै नव ॥ एषां तु नवमानां व्यवहारोऽत्र पञ्चभिः। तेषां पृथक्-पृथक् कार्य वक्ष्यते व्यवहारतः॥ नारद-संहिता (३।१-२)। कल्प ब्रह्मा का दिन है (सूर्यसिद्धान्त १२०)!; एक मानव-वर्ष देवों के एक दिन के बराबर है (एक वा एतद् देवानामहो यत्संवत्सरः। तै० ब्रा०, ३।९।२२।१); एक मानव-मास पितरों का अहोरात्र है (मनु १२६६)। मानुषमान (मानव मान) विमिश्र (मिश्रित) है क्योंकि लोग विभिन्न उपयोगों के लिए चार मान प्रयुक्त करते हैं , जैसा कि सि० शि० (१॥ ३०-३१) में उल्लिखित है (ज्ञेयं विमिश्रं तु मनुष्यमानं मानश्चतुभिर्व्यवहारवृत्तः ॥ वर्षायनर्तुयुगपूर्वकमत्र सौरान मासास्तथा च तिथयस्तुहिनांशुमानात् । यत्कृच्छ्रसूतक चिकित्सितवासराचं तत्सावनाच्च घटिकादिकमार्तमानात् ॥) किन्तु उसने आगे कहा है (१।३२) कि ग्रहों के मान मानव मान से किये जाते हैं (ग्रहास्तु साध्या मनुजः स्वमानात्)
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