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- धर्मशास्त्र का इतिहास रोक नहीं सकते या उन्हें निरर्थक नहीं सिद्ध कर सकते तो उनके पूर्व ज्ञान से हमें क्या लाभ है ? यदि वे नियति की घटनाओं को रोक सकते हैं या उन्हें निरर्थक सिद्ध कर सकते हैं तो वे इस सिद्धान्त को किस प्रकार प्रश्रय दे सकेंगे कि ग्रहों से ही घटनाएँ उद्भूत होती हैं ?
अब प्रश्न उठता है कि उपनयन एवं विवाह जैसे धार्मिक कृत्य किस सीमा तक ज्योतिषीय निर्धारणाओं पर आधारित रहें। गृह्य सूत्रों एवं मनु के कालों में ज्योतिषीय आवश्यकताएँ बहुत कम थीं, ये आवश्यकताएँ क्रमशः बोझिल होती चली मयीं। ११ वी शती में भी राजमार्तण्ड जैसे ग्रन्थों में विशिष्ट स्थितियों में विवाह आदि के समय धार्मिक कृत्यों के लिए ज्योतिषीय व्यवस्थाओं को शिथिल कर देने की बात चलायी गयी है। हमें गृह्यसूत्रों एवं मनु के नियमों तक ही अपने को सीमित रखना चाहिए।
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