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फलित ज्योतिष पर जनताको नास्था
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इस प्रकार के कालों में उत्पन्न बच्चों के माता-पिता दीर्घजीवी होते देखे गये हैं, स्वयं बच्चों पर कोई विपत्ति नहीं आयी है।
टॉल्मी ने सामान्येतर कक्षों एवं प्राक्चक्रों का सिद्धान्त प्रतिपादित किया है। यद्यपि वर्तमानकालिक ज्योतिःशास्त्रीय विवेचनों से परीक्षित होने पर उसके सिद्धान्त त्रुटिपूर्ण ठहरते हैं तथापि वह और उसके अनुयायी ग्रहणों के विषय में भविष्यवाणी करने में समर्थ थे। इससे विदित होता है त्रुष्टिपूर्ण धारणाओं से भी कुछ विषयों में सम्यक् अनुमान निकाले जा सकते हैं। वराहमिहिर तथा उनके अनुयायियों के सिवन्द्रों की जांच भी सम्भव नहीं हो सकी है, क्योंकि पूर्व जीवनों में किये गये कर्मों की जाँच सम्भवतः नहीं हो सकती। लाखों व्यक्ति अपने पूर्व जीवन के कर्मों में कोई विश्वास नहीं रखते और न पूर्व एवं भविष्य के जीवनों में अभिर्खच रखते हैं। कुछ लोग अपने जीवन की भावी बातों में कुछ जानकारी प्राप्त करने में अभिरुचि अवश्य रखते हैं। जन्म-पत्र से भाची प्रवृत्तियों पर प्रकाश पड़ता है, ऐसा ज्योतिष का विश्वास है। यदि ज्योतिकी लोच केक भावी बातों पर ही चर्चा करें और कोई भावात्मक बात न बतायें तो उनके पैर के नीचे की धरती ही सरक जायगी और उनकी कृत्ति समाप्त हो जायगी। आज न केवल भारत में प्रत्युत विश्व के अधिकांश भागों में ज्योतिष एक जीता-जागता विश्वास है, और ऐसा प्रतीत होता है कि इस विश्वास को वैज्ञानिक एवं ऐतिहासिक लोग मष्ट नहीं कर सकते। किन्तु ऐसा विश्वास करना कि ग्रहों के कारण ही जीवन-गतियां रूप धारण की जाती है, बड़ी भयंकर धारणा होगी, क्योंकि अपराधी ऐसा कह सकता है कि उसने जो अपराध किया उसका सारदायित्व इस पर नहीं है, प्रत्युत उसने ग्रहों के प्रभाव में आकर ही यह अपराध किया है, जिसमें उसका कोई बल या अधिकार नहीं है, वह तो असहाय रहा है, उसका क्या दोष है, आदि।
भारतीय ज्योतिष के इस संक्षिप्त विवरण को समाप्त करने के पूर्व कल के एक अन्य मुसंहिता के विषय में कुछ लिखना आवश्यक है, जिसके विषय में यह विदित है कि उसमें मेष से लेकर आने की १२ राशियों में उत्पन्न लोगों की जन्म-पत्रिकाएं उल्लिखित हैं, जहां व्यक्तियों के पूर्व जन्मों के कर्मों की ओर संकेत है, व्यक्तियों के जन्म से मृत्यु तक की ग्रह-स्थितियों एवं महत्त्वपूर्ण जीवन-घटनाबों का पूर्व उल्लेख है। जिनके पास भृगुसंहि वे सम्पूर्ण ग्रन्थ किसी अन्य को नहीं दिखाते, केवल ने जिज्ञासुओं के समक्ष ही उन्हें राय देने के लिए कुछ श्लोक पढ़ कर सुना देते हैं और लोग सुन कर आश्चर्य में पड़ जाते हैं। इसमें बहुत सी बम्बा है। प्रस्तुत लेखक ने बम्बई विश्वविद्यालय के देसाई संग्रह में भृगुसंहिता की चार पाण्डुलिपिकां देखी हैं। वह सहित गंधमादन पर्वत पर भृगु द्वारा अपने पुत्र शुक्र को पढ़ायी गयी है। इसमें मेष, वृषभ, मिथुन एवं कर्क मामक पार लग्नों में प्रत्येक के ६०० जन्म-पत्रों का उल्लेख है, प्रत्येक जन्म-पत्र के विषय में १५ से २० श्लोक हैं जो एकही लन में विभिन्न ग्रहों की विभिन्न स्थितियों पर प्रकाश डालते हैं। सभी सम्भव जन्म-पत्रों को यदि १५ या २० श्लोकों में उल्लिखित किया जाय तो भृगुसंहिता को किसी पुस्तकालय में रखना सम्भव नहीं है। लदों के रूप में १२ राशियां हैं, ९ ग्रह (राहु एवं केतु को सम्मिलित कर) हैं और १२ भाव हैं। यदि बणित काबहान किया जाय तो करोड़ों जन्म-पत्र बनेंगे और १५ या २० श्लोकों में फल घोषित किये जायें तो करोड़ों श्लोकों का प्रस्सन हो जायगा। अतः भृगुसंहिता से उद्धरण लेकर जन्म-पत्र का विवरण उपस्थित करना अधिकतर धोखा है।
भारतीय ज्योतिष में सब से अधिक महत्वपूर्ण विषय हैं राशियां, मह एवं बारह भाव (घर या स्थान)। सर्वप्रथम राशियों की चर्चा करेंगे। कुछ तारागण या तारा-दल मेष या वृषभ आदि क्यों कहे जाते हैं। आकाश में तो भेड़ एवं बैल नहीं हैं। पृथिवीस्थित कुछ निरीक्षकों ने कल्पना की कि कुछ तारामण असंखों के सामने पशुओं मानवीय आकृतियों एवं पौराणिक कल्पित जीवों के सदृश लगते हैं। यह हमने देख लिया है (दूसरे खण्ड के
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