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________________ ३०८ बर्मशास्त्र का इतिहास उपर्युक्त बातों से प्रकट है कि भारतीयों के मन को लगभग दो सहस वर्षों से ज्योतिष ने किस प्रकार पकड़ रखा था। शुभ एवं अशुभ शकुनों के विषय में वराहमिहिर ने स्वयं कहा है-'यदि सभी शुभाशुभ राशियाँ या लक्षण एक ओर हों और दूसरी ओर मनःशुद्धि हो तो मनःशुद्धि से ही सफलता की प्राप्ति होती है।' या एक और सभी शकुन और दूसरी ओर मनःशुद्धि, दोनों के युद्ध में मन भयाक्रान्त हो सकता है। यहाँ तक कि केवल वायु ही विजय या पराजय का कारण बन सकती है' (बृ० यो० या० १४।३।६, यो० या० ५।१५)। और देखिए मत्स्य. (२४३।२५-२७), विष्णुधर्मोत्तर० (२।१६३।३२), अग्नि० (२३०।१३) आदि। ___ ज्योतिष में सार्वभौम विश्वास के कारण लोगों ने अवतारों एवं नायकों की जन्म-पत्रिकाएँ भी निर्मित कर डालीं। रामायण की कुछ पाण्डुलिपियों में राम की जन्म-पत्री भी बनी है, जिसकी कुछ बातें यों हैं- लग्न कर्क था, जिसमें चन्द्र एवं बृहस्पति का योग था, पाँच ग्रह उच्च थे। चन्द्र कर्क में रहने के कारण उच्च नहीं था, क्योंकि वह वृषभ में उच्च होता है। राम चैत्र शुक्ल नवमी को उत्पन्न हुए थे, अतः सूर्य मेष में था जो (सूर्य की उच्चता का द्योतक है। अतः बुध या तो सूर्य या मीन से युक्त होगा। इनमें कोई भी बुध का उच्च नहीं है। सम्भवतः बुध को शुक्र से संयुक्त समझना चाहिए, क्योंकि दोनों मित्र हैं, किन्तु जब बुध वृषभ में होगा तो वह शत्रु के घर में पड़ेगा। रामायण में राहु एवं केतु के उल्लेख का सर्वथा अभाव है। परशुराम, हषवर्धन, शंकराचार्य आदि के जन्म-पत्रों का भी उल्लेख हुआ है, किन्तु वे ठीक नहीं हैं। कल्हण द्वारा वर्णित कश्मीर के राजा हर्ष (१०५९ ई० में उत्पन्न, शासन काल १०८९-११०१ ई०) का जन्म-पत्र ठीक जंचता है। इस विषय में यहाँ इतना ही पर्याप्त है। वर्तमान काल के वैज्ञानिक, दार्शनिक एवं धर्म-विशेषज्ञों ने फलित ज्योतिष की सामान्यतः उपेक्षा की है। कुछ लोगों ने इसकी खिल्ली उड़ायी है, कुछ ने इसे अन्धविश्वासपूर्ण माना है और कुछ लोगों ने इसे भ्रामक एवं जाल मात्र समझा है। पाश्चात्य देशों में वैज्ञानिकों द्वारा निन्दित किये जाने पर भी इसे लाखों लोग मानते हैं। ज्योतिष का मौलिक सिद्धान्त यह है कि सूर्य, चन्द्र तथा ग्रह हमारे जीवन को प्रभावित करते हैं और यह कहना वैज्ञानिक है। प्रश्न यह है कि क्या बृहज्जातक जैसे ग्रन्थों के ज्योतिष-सिद्धान्त बौद्धिक विश्लेषण एवं परीक्षाओं से ठीक उतरते हैं? यह कठिन प्रश्न है। हम बहत-से ज्योतिषियों की करामातों का विवरण पढ़ते-सुनते हैं कि वे ठीक-ठीक बातें बता देते हैं, किन्तु जन्म-पत्र से जीवन की सभी बातों का परिज्ञान, भाग्य एवं उत्थान-पतन आदि का लेखा-जोखा जान लेना कठिन है। - ज्योतिषीय विवेचनों से कभी-कभी बद्धमूल धारणाएं घर करती रही हैं। आश्लेषा या ज्येष्ठा में या गड या गण्डान्त में उत्पन्न शिशु को लोग फेंक देते थे। इस विश्वास की जड़ें अथर्ववेद (६।११०।२-३) में भी पायी जाती हैं। प्रयोगपारिजात में उद्धृत गर्ग में आया है-'गण्डान्त पर दिन में उत्पन्न शिशु पिता की मृत्यु का कारण बनता है, रात्रि में उत्पन्न माता की मृत्यु का तथा सन्ध्या में उत्पन्न अपनी मृत्यु का कारण बनता है; कोई गण्ड निरामय (भयरहित) नहीं रह पाता। गण्ड में उत्पन्न बच्चों का त्याग कर देना चाहिए, या पिता को ६ मासों तक न तो उसे देखना चाहिए और न उसका स्वर सुनना चाहिए।' (शान्तिकमलाकर, नि० सि०, पृ० २४४) । भल्लाट ने व्यवस्था दी है-'ज्येष्ठा की अन्तिम घटिका में उत्पन्न या मूल की प्रथम दो घटिकाओं में उत्पन्न शिशु को त्याग देना चाहिए या पिता को उसका मुख आठ वर्षों तक नहीं देखना चाहिए; शिशु मूल के प्रथम चरण में उत्पन्न हो तो पिता की, दूसरे पाद (चरण) में माता की मृत्यु हो जाती है, तीसरे पाद में उत्पन्न होने से धन हानि होती है तथा चौथे पाद में शिशु के उत्पन्न होने से शुभ होता है; यही बात आश्लेषा में उत्पन्न होने से होती है, किन्तु गणना उलटी होती है, अर्थात् अन्तिम चरण से फलोत्पत्ति होती है। यह सभी बातें भ्रामक-सी हैं, क्योंकि Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002792
Book TitleDharmshastra ka Itihas Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPandurang V Kane
PublisherHindi Bhavan Lakhnou
Publication Year1971
Total Pages526
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size18 MB
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