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________________ धर्मशाल का इतिहास ३०६ भेंटों से युक्त पात्र; घोड़ा, अशुष्क सिरका, गोबर, सरसों, दर्पण, रस्सी से बँधा बैल, मांस, जलपूर्ण घड़ा, पगड़ी, बाँसुरी, छत्र, दही, मधु, घी, पीला रोगन, कुमारी लड़की, झंडे का स्तम्भ, सोना, कमल, शंख, श्वेत बैल, पुष्प, सुन्दर वस्त्र, मछली, सुन्दर ढंग से वस्त्रावृत ब्राह्मण, सड़क पर चलने वाले, वेश्याएँ, जलती अग्नि, हाथी, भींगी भूमि, अंकुश, हथियार; रत्न, यथा मरकत, माणिक्य, स्फटिक; पुत्र के साथ युवती नारी; इन चिह्नों एवं पदार्थों को इस प्रकार व्यवस्थित रखना चाहिए कि वे अपने आप दृष्टिगोचर हो जायें। और देखिए अग्नि० (अध्याय ३४३), २० भा० ( १५/९७-९८), मु० मा० (७।१५-१६) आदि। शुभाशुभ दृश्यों, पशुओं, व्यक्तियों एवं पदार्थों की लम्बी सूचियाँ बृहत्संहिता (अध्याय ८६ ९६, ऋषभ, भागुरि, देवल, भारद्वाज आदि पर आधारित तथा गर्ग आदि के यात्रा -ग्रन्थों के, जिनमें सभी प्रकार के शकुनों का उल्लेख है, यथा कुत्तों का भौंकना, पक्षियों एवं कोओं की बोलियों पर आधारित), बृहद्योगयात्रा (अध्याय २१ - २८), योगयात्रा (१३।१४ ), मु० चि० ( ११ ९९-१०० ), मु० भा० (७।१७-१९), राजनीतिप्रकाश ( पृ० ३३५ - ३६० ) में पायी जाती हैं। योगयात्रा का एक श्लोक उदाहरण के लिए यहाँ दिया जा रहा है- निम्न अशुभ हैं ( यात्रा में कपास, औषघ (जड़ी-बूटी); काला अन्न, नमक, ́ नपुंसक व्यक्ति, अस्थिय, ताल ( हरताल ), अग्नि, साँप, कोयला, विष, केंचुल ( साँप की चर्म खोल), मल, केशारि (छुरा ), रोगी, जिसने वमन किया हो, पागले, जड़ ( लकवा का मारा हुआ), अंधा, तृण (घास ), तुष (भूसी), क्षुत्क्षाम ( क्षुधा से पीड़ित ) व्यक्ति तक (मठा ), शत्रु, मुण्डित सिर वाला व्यक्ति, तेल लगाया हुआ व्यक्ति, बिखरे बाल वाला व्यक्ति, पापी, लाल वस्त्र धारण करने वाला व्यक्ति ।' गृह्यसूत्रों एवं धर्मसूत्रों में भी गृह निर्माण ( वास्तु) एक महत्त्वपूर्ण विषय माना गया है। इस महात्म्य के खण्ड दो में गृह निर्माण एवं प्रथम प्रवेश के विषय में लिखा हुआ है, किन्तु वहाँ ज्योतिषीय चर्चा नहीं हुई है । पारस्कर गृ० (३।४।१-२ ) में केवल इतना आया है कि किसी शुभ दिन में गृह निर्माण ( शालाकर्म) करना चाहिए । हिरण्यकेशिगृह्य ( १।२७।१ ) में विशेष बातें हैं; शालाकर्म उत्तरायण में, शुक्ल पक्ष में तथा रोहिणी या तीन उत्तराओं में करना चाहिए। मत्स्य० (अ० २५३ ) र० भा० (अ० १७) रा० भा० (श्लो० ८०५-८८४) हेमाद्रि (काल० पृ० ८१७-८२९) मुहूर्तदर्शन ( ९ ) ज्योतिस्तत्व ( पृ० ६६२-६७०), मु०चि० ( १२1१-२९ ), नि० सि० ( पृ० ३६४ ) में गृह निर्माण का उल्लेख है । मत्स्य ० ( २५२।२-४ ) ने वास्तुशास्त्र के १८ आचार्यों का उल्लेख किया है। मत्स्य० ने १२ महीनों में गृह निर्माण के फलों का वर्णन किया है। आषाढ़ में गृह निर्माण से रोग, अच्छी गायें, मृत्यु, अच्छे नौकर एवं पशुओं की प्राप्ति होती है; कार्तिक में नौकर, हानि, पत्नीकी मृत्यु, धनधान्य; फाल्गुन में चावल, चोरों से भय, बहुत-से लाभ, सोना एवं पुत्र । शुभ नक्षत्र ये हैं- अश्विनी, रोहिणी, मूल, तीन उत्तराएँ, मृगशीर्ष, स्वाती, हस्त एवं अनुराधा; दिनों में रविवार एवं मंगलवार को छोड़ अन्य शुभ हैं । रा० भा० (श्लोक ८८६-८८७) ने बहुत-सी ज्योतिषीय आवश्यकताओं को दो श्लोकों में यों व्यक्त किया है : 'ऋषियों कथन है कि गृह निर्माण का शुभ कर्म शुभ तारा से युक्त पुनर्वसु, पुष्य, रोहिणी, मृगशीर्ष, चित्रा, धनिष्ठा, तीनों ११. कार्पासौवध कृष्णधान्यलवण क्लीबास्थितालानलं सर्पाङ्गारगराहिचर्मशकृतः केशारिसव्याधिताः । वातोन्मत्तजडान्धकतृ णतुषक्षुत्क्षामतक्रारयो मुण्डाभ्यक्तविमुक्तकेशपतिताः काषायिणश्चाशुभाः ॥ बृहद्योगयात्रा (२७।६), योगयात्रा (१३ | १४), टिक्कनिकायात्रा (९/१५ ) ; मत्स्य ० ( २४३|१-८), आदि० (२९।३४ ), नारदस्मृति ( प्रकीर्णक ५४), पियूषधारा ( मु० चि० ११1९९-१०० ) । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002792
Book TitleDharmshastra ka Itihas Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPandurang V Kane
PublisherHindi Bhavan Lakhnou
Publication Year1971
Total Pages526
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size18 MB
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