________________
३०४
बर्मशास्त्र का इतिहास गण-यागों (देव-गणों का दलों में पूजन, यथा गुह्यक), अग्निलिंगों (होम के समय अग्नि-ज्वाला के संकेतों), हाथी, घोड़ों के इंगितों, सेना के लोगों की बातचीतों एवं चेष्टाओं, नव-ग्रहों, ६ गुणों (संघि, विग्रह, यान, आसन, द्वैधीभाव, आश्रय) के प्रयोग (ग्रहों के बलानुसार), शुभाशुभ वस्तुओं एवं दृश्यों, चार उपायों (साम, दान, दण्ड, भेद), शकुनों, सैन्य-निवेश (सेना-पड़ाव), अग्नि-वर्ण (अग्नि ज्वाला के रंग), मन्त्रियों, चरों, दूतों, आटविकों की यथाकाल में नियुक्ति एवं परदुर्गों को प्राप्त करने के साधनों का ज्ञान सम्मिलित है।
- वराहमिहिर ने बृहत्संहिता में यात्रा के विषयों पर कई अध्याय (४३।५०, ८८-९६) लिखने के अतिरिक्त तीन अन्य ग्रन्थ लिखे हैं, यथा बृहद्योगयात्रा, योगयात्रा एवं टिक्कनिका । बृहत्संहिता के अतिरिक्त वराहमिहिर ने यात्रा पर ११०० श्लोक लिखे हैं। पश्चात्कालीन ग्रन्थ, यथा, रत्नमाला (१५।१-७४), राजमार्तण्ड (श्लोक ६५३-७९५), मु. चि० (१११-१०९) ने भी यात्रा पर लिखा है। 'योगयात्रा' नाम पड़ने का कारण यों है-जब युद्ध सिर पर खड़ा रहता है तो शुभ तिथियों, दिवसों, नक्षत्र आदि का विचार करने एवं उनको जोहने से अधिक देरी हो सकती है। अतः किसी स्थिर स्थानवर्ती किन्हीं ग्रहों की स्थितियों (अर्थात् योग) पर ज्योतिषीय ढंग से विचार किया जाता है।' योगयात्रा एवं रत्नमाला में आया है-'जिस प्रकार विष भी (दूध जैसे पदार्थों से मिश्रित होने पर) अमृत के समान कार्य कर सकता है या जिस प्रकार मधु घृत से मिश्रित होने पर विष का
र्य कर सकता है, उसी प्रकार ग्रह अपनी विशिष्ट शक्ति का त्याग करके किन्हीं योगों के कारण अन्य फल दे सकता है। राजा योगों में रणयात्रा करते हैं. चोर एवं चारण शकुनों पर कार्य करते हैं, ब्राह्मण नक्षत्रों के गणों के आधार पर कार्य करते हैं, अन्य लोग (इनके अतिरिक्त) मुहूर्तों की शक्ति से अपनी कार्य-सिद्धि प्राप्त करते हैं।
यदि किसी व्यक्ति के जन्म (लग्न) के समय की राशि का पता न हो, तो यात्रा के विषय में प्रश्न करने के लग्न का प्रयोग ज्योतिष-सम्बन्धी बातों के लिए हो सकता है। यदि ऐसा लग्न मेष, कर्क एवं तुला हो या मकर हो और उसमें शुभ ग्रह हों या उस पर उनमें से किसी की शुभ दृष्टि हो, तो प्रश्न-कर्ता अपने संकल्प में सफल होता है; किन्तु यदि लग्न में चाहे मंगल एवं चन्द्र हो या चन्द्र पर शनि की दृष्टि हो या वह ७वें या ८वें घर में हो और सूर्य लग्न में हो या कोई दुष्ट ग्रह लग्न में हो या चौथे, ७वें या ८वें घर में हो तो इन सभी स्थितियों में प्रश्नकर्ता (शत्रुओं द्वारा) हराया जायगा या नष्ट होगा (मु० चि० ११॥४-५)। यात्रा में सप्ताह-दिवसों का कोई महत्त्व नहीं है। यात्रा के लिए षष्ठी, अष्टमी, द्वादशी, पूर्णिमा, अमावास्या, रिक्ता तिथियाँ (चौथी, नवमी एवं चतुर्दशी) एवं शुक्ल प्रतिपदा प्रतिपादित नहीं हैं (अन्य हैं)। यात्रा ९ नक्षत्रों, यथा अश्विनी, पुनर्वसु, अनुराधा, मृगशिरा, पुष्य, रेवती, हस्त, श्रवण एवं धनिष्ठा में प्रतिपादित है। योगयात्रा (४), रा० मा० (६९५-७५२), र० मा० (१५।१-७४), मु. चि० (१११५५-७४) ने कतिपय योगों का उल्लेख किया है जिनमें राजा सफल होता है। उदाहरणस्वरूप कुछ योग यों हैं-वह राजा, जिसकी रणयात्रा के काल के लग्न में बृहस्पति हो, बुध एवं शुक्र क्रम से चौथे एवं पाँचवें घर में हों, मंगल एवं शनि छठे में हों, सूर्य तीसरे में हो तथा चन्द्र १० वें में हो, मनोवांछित फल की प्राप्ति करता है (यो० या० ४।६ ; मु० चि० १११५५); राजा विजयी होता है जब बृहस्पति लग्न में हो और अन्य ग्रह दूसरे एवं तीसरे घर में हों (मु० चि० १११५९); यदि प्रयाण के समय शुक्र, बुध एवं सूर्य क्रम से दूसरे एवं तीसरे घर में हों तो उसके शत्रु युद्धाग्नि में पतंगों के समान गिरते हैं (यो० या० ४।११); जब शुक्र चौथे, तीसरे या ११वें घर में रहता है, और उस पर बृहस्पति की दृष्टि रहती है, जो केन्द्र (पहले, चौथे, ७ वें या १० वाँ घर) में रहता है और दुष्ट ग्रह ७ वें या ८ वें या ९ वे में न होकर अन्य घरों में होते हैं तो ऐसे योगों से राजा को धन (एवं विजय) अधिक मात्रा में प्राप्त होता है।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org