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विवाह
कर-कमलापक
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हीं ।' भुजबल ( या भुजबलभीम) ने कहा है— ऋषियों की घोषणा है कि कन्या के विषय में ग्रहों, वर्षों, मास: नॠतु एवं दिनों की शुद्धता ( शुभकरता) पर तभी विचार होता है जब वह दस वर्षों की रहती है (उद्वाहत्त्व, पृ० १२४ एवं ज्योतिस्तत्त्व, पृ० ६०५ में उद्धृत ) ।
विवाह-नक्षत्रों के विषय में मतभेद है, किन्तु रोहिणी, मृगशीर्ष, मघा, उत्तराफाल्गुनी, उत्तराषाढ़ा, उत्तराभाद्रपदा, हस्त, स्वाती, मूल, अनुराधा, रेवती के विषय में सभी सहमत हैं (बृ० सं० २००1१ ) । दत्त आदि ने ४ नक्षत्र और जोड़ दिये हैं, यथा, अश्विनी, चित्रा, श्रवण एवं घनिष्ठा । किन्तु यदि इनमें कोई केसी दुष्ट ( या हानिकर ) ग्रह से संयुक्त हो तो उसे छोड़ देना चाहिए। सप्ताह में सोम, बुध, बृहस्पति एवं शुक्रवार शुभ हैं, और अन्य तीन मध्यम हैं। ज्योतिस्तत्त्व द्वारा उद्धृत एक श्लोक के अनुसार सप्ताह के दिनों का रात्रि में भाव नहीं होता, विशेषतः मंगलवार, शनिवार एवं रविवार का । तिथियों में अमावास्या वर्जित है; रिक्ता तिथियाँ (चौथी, नवमी एवं चतुर्दशी ) कुछ अच्छी हैं; अन्य तिथियाँ शुभ फलदायक हैं; शुक्ल पक्ष अत्युत्तम है; तथा कृष्ण रक्ष में त्रयोदशी तक की तिथियाँ मध्यम हैं ।
यदि बृहस्पति शुभ हो तो छः वर्षों के उपरान्त कन्या का विवाह सम वर्षों में करना चाहिए, किन्तु जब सूर्य शुभ हो तो लड़के का विवाह विषम वर्षों में करना चाहिए; किन्तु दोनों का विवाह शुभ है यदि चन्द्र कल्याणकर हो । यदि बृहस्पति उच्च हो, स्वगृही हो या अपने मित्र के गृह में हो तो वह पूर्ण जीवन, धन-सम्पत्ति के विविध प्रकार आदि देता है; किन्तु यदि वह प्रथम या आठवें गृह में हो, या नीच हो, या अपने शत्रु के गृह में हो, अस्त हो तो वह वैधव्य एवं सन्तति-क्लेश प्रदान करता है । विवाह के समय लग्न के विषय में निम्नोक्त ग्रहों को जित करना चाहिए : सूर्य को अपने से तीसरे, छठे एवं ८वें घर में; चन्द्र को दूसरे, तीसरे या चौथे घर में, मंगल को तीसरे या छठें घर में; बुध एवं बृहस्पति को आठवें एवं १२ वें घर में। यदि शुक्र लग्न में हो, या अपने से {सरे, चौथे, पाँचवें, नवें या १० वें घर में हो, और उससे शनि, राहु एवं केतु तीसरे, छठे एवं आठवें घर में हों, और लग्न से ११ वें घर में प्रत्येक ग्रह हो तो विवाह से आनन्द की प्राप्ति होती है। यदि विवाह के समय बृहस्पति जन्म की राशि से दूसरे, ५ वें, ७ वें ९ वें एवं ११ वें घर में हो तो वह कन्या के लिए शुभ होता है; यदि वह पहले, तीसरे, छठे या १० वें में हो तो वह शान्ति-कृत्य कर देने से शुभकर हो जाता है; यदि वह चौथे, ८ वें या १२ वें
हो तो अशुभकर होता है; किन्तु यदि वह विवाह के समय कर्क, धनु या मीन में हो तो अशुभता का त्याग कर देता है, भले ही वह चौथे, ८ वें, या १२ वें में ( जन्म की राशि से ) हो । आपत्ति काल में चौथे या १२ वें घर में अवस्थित बृहस्पति दो शान्तियों (बृहस्पति - होमों) से तथा आठवें में अवस्थित बृहस्पति तीन शान्तियों (शान्ति - कृत्यों) से शुभ हो जाता है। लड़के (वर) के विषय में जन्म की राशि से तीसरे, ६ठे, १० वें या ११वें का सूर्य शुभ होता है; किन्तु अन्य राशियों में अवस्थित सूर्य होम कर देने से शुभ हो जाता है ।
यदि कन्या यौवनावस्था में आ गयी हो तो बृहस्पति की शुभता पर विचार नहीं करना चाहिए, यहाँ तक कि यदि कन्या की राशि से बृहस्पति ८वें गृह में हो तब भी तीन शान्तियाँ करके विवाह सम्पादित कर देना चाहिए।
यदि बृहस्पति सूर्य के घर ( अर्थात् सिंह राशि ) में हो और सूर्य बृहस्पति के घर ( मीन या धनु) में हो इसे गुर्वादित्य कहा जाता है और यह सभी कृत्यों के लिए निन्दित माना जाता है।
सिंहस्थ गुरु के विषय में मध्यकाल के ग्रन्थों में बहुत कुछ उल्लिखित है, जिसे आज भी लोग यथावत् मानते माये हैं। 'राजमार्तण्ड ने इस पर छः श्लोक लिखे हैं । जब बृहस्पति (गुरु) सिंह राशि में होता है तो कतिपय कृत्य अशुभ माने जाते हैं, यथा रणयात्रा, विवाह, उपनयन, गृह प्रवेश, देव-प्रतिमा प्रतिष्ठापन । ऋषियों ने कुछ
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