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________________ २९० धर्मशास्त्र का इतिहास है, या जब कोई ग्रह दूसरे से थोड़ा बायीं ओर रहता है। इसको चेष्टावल कहते हैं। चन्द्र, मंगल एवं शनि रात्रि में प्रबल होते हैं, बुध रात एवं दिन दोनों में, अन्य ग्रह दिन में बलवान् होते हैं; क्रूर एवं सौम्य ग्रह क्रम से मास के कृष्ण एवं शुक्ल पक्ष में बलवान होते हैं ; ग्रह अपने द्वारा शासित वर्ष में बलवान् होता है, या अपने सप्ताह-दिन में या होरा में या अपने द्वारा शासित मास में। यही कालबल है। यवनेश्वर का कथन है कि शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से दस दिनों तक चन्द्र मध्यबली होता है, किन्तु आगे के दस दिनों (शुक्ल एकादशी से कृष्ण पंचमी) तक चन्द्र का बल श्रेष्ठ होता है तथा अन्तिम दस दिनों (कृष्ण षष्ठी से अमावास्या) तक चन्द्र अल्पबली होता है, किन्तु यदि चन्द्र पर सौम्य (बृहस्पति आदि) ग्रहों की दृष्टि पड़ती है तो वह सदा बलवान् होता है। सारावली (५।२) में ग्रह के नौ प्रकार के स्वरूपों का उल्लेख है, यथा दीप्त (उच्च-होने पर प्रज्वलित), स्वस्थ (अपने घर में सुस्थिर), मुदित (मित्र के स्वगृह में प्रसन्न), शान्त (शुभ वर्ग में अवस्थित ), शक्त (चमकते रहने पर सामर्थ्यवान्), निपीड़ित (दूसरे ग्रह से पराभूत), भीत (नीच होने पर डरा हुआ), विकल (सूर्य-प्रकाश हट जाने पर विकल) एवं खल (जब वह दुष्ट संगति में रहता है तब दुष्ट होता है)। सारावली (५। ५-१३) ने इन नौ परिस्थितियों में पड़े हुए ग्रह का विस्तारपूर्वक वर्णन किया है। ज्योतिष-ग्रन्थों में अनुश्रुतियों को भी मान्य किया गया है। वराहमिहिर की योगयात्रा (३।१९-२०) में आया है-'सूर्य अंग (बिहार) में उत्पन्न हुआ, चन्द्र यवनों के देश में, मंगल अवन्ती में, बुध मगध में, बृहस्पति सिन्धु में, शुक्र भोजकट में, शनि सौराष्ट्र में, केतु म्लेच्छों के देश में एवं राहु कलिंग में। यदि ये ग्रह प्रभावित होते हैं तो अपनी उत्पत्ति के देशों में कष्ट ढहाते हैं, अतः राजा को उन देशों पर आक्रमण करना चाहिए, जब एक या अधिक ग्रह प्रभावित हों। भारतीय ज्योतिष का एक अति महत्त्वपूर्ण सिद्धान्त है दष्टि। बृहज्जातक (२।१३), लघुजातक (२८), सारावली (४।३२-३३) एवं मुहूर्तदर्शन (१२७) में निम्न नियम हैं-अपने घर में स्थित सभी ग्रह ७वें घर में पूर्ण दृष्टि वाले होते हैं। शनि अपने घर से तीसरी एवं १०वीं राशि पर पूर्ण दृष्टि वाला होता है और अपने घर से तीसरे एवं १०वें ग्रहों पर भी पूर्ण दृष्टि वाला होता है। इसी प्रकार बृहस्पति अपने घर से ५वीं एवं ९वीं राशि पर तथा अपने से ५वें एवं ९वें ग्रहों पर पूर्ण दृष्टि रखता है ; मंगल चौथी एवं ८वीं राशियों तथा उनमें से प्रत्येक के ग्रह पर पूर्ण दृष्टि वाला होता है। सूर्य, चन्द्र, बुध एवं शुक्र अपने-अपने घरों से ७वीं राशि पर तथा अपने से ७वे ग्रह पर पूर्ण दृष्टि रखते हैं। सभी ग्रह तीसरी एवं १०वीं पर १ दृष्टि, ५वीं एवं ९वीं पर ३ दृष्टि तथा चौथी एवं ८वीं पर दृष्टि रखते हैं। इन सात (तीसरी, चौथी, ५वीं, ७वीं, ८वीं, ९वीं एवं १०वीं) राशियों को छोड़कर किसी अन्य राशि (या स्थान) पर किसी ग्रह की दृष्टि स्पष्ट रूप से वर्णित नहीं है तथा आंशिक दृष्टियों का फल भी आंशिक (३३, ३) होता है। टाल्मी में दृष्टियों का व्यौरा भिन्न है। अतः दृष्टियों के बारे में भी टाल्मी एवं वराहमिहिर में पर्याप्त अन्तर है। एक अन्य सिद्धान्त है गोचर। इसका तात्पर्य है जन्म की राशि से शुभ या अशुभ स्थानों में, अद्यतन अवधि में ग्रहों की शुभ या अशुभ स्थितियों पर विचार-विमर्श । इसका विवेचन मुहूर्त चिन्तामणि में है। उदाहरणार्थ, यदि सूर्य जन्म की राशि से छठे स्थान पर हो तो वह शुभ होता है, किन्तु यदि उसी समय जन्म की राशि से १२वें स्थान पर शनि को छोड़कर कोई अन्य ग्रह अवस्थित हो तो वह शुभ होता हुआ भी अशुभ हो जाता है। किन्तु यह फल तब नहीं होता जब कि ग्रह दूसरे ग्रह का पिता या पुत्र होता है (जैसे, शनि सूर्य का पुत्र तथा बुध चन्द्र का पुत्र है)। इसी प्रकार यदि बुध जन्म-राशि से दूसरे घर में हो या चौथे या छठे या ८ वें या १० वें या ११ वें में हो तथा अन्य ग्रह (चन्द्र को, जो बुध का पिता है, छोड़कर) क्रम से ५३, तीसरे, ९वें, पहले, ८वें या Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002792
Book TitleDharmshastra ka Itihas Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPandurang V Kane
PublisherHindi Bhavan Lakhnou
Publication Year1971
Total Pages526
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size18 MB
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