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पशास्त्र का इतिहास तुला एवं मकर (जो चर राशियाँ हैं) का नवांश वर्गोत्तम कहा जाता है, यही बात वृष, सिंह, वृश्चिक एवं कुम्भ (जो स्थिर राशियाँ हैं) के पाँचवें नवांश तथा मिथुन, कन्या, धनु एवं मीन (जो द्विस्वभाव वाली राशियाँ हैं) के नवें नवांश के विषय में भी है (वे भी वर्गोत्तम हैं, बृ० जा० १११४) और वे शुभ फलदायक हैं। राशियों के वर्गोत्तमनवांश राशियों के नाम वाले होते हैं। चन्द्र के घर से आगे के दूसरे घर में जब सूर्य को छोड़कर कोई अन्य ग्रह रहता है तो सुनफा योग होता है; चन्द्र के घर से आगे १२ वें घर में जब सूर्य को छोड़कर कोई अन्य ग्रह होता है तो अनफा योग होता है तथा चन्द्र के घर से आगे के दूसरे तथा १२ वें घर में (अर्थात् दोनों में) जब ग्रह होते हैं तो दुरुधरा योग होता है। जब चन्द्र केन्द्र में नहीं होता, या जब केन्द्र में सूर्य के अतिरिक्त कोई अन्य ग्रह नहीं होता और उपर्युक्त तीनों योग नहीं होते तो केमद्रुम नामक योग होता है। बृहज्जातक (१३।४) के अनुसार अनफा एवं सुनफा के प्रकार ३१-३१ (प्रत्येक में ३१) होते हैं, दुरुधरा के १८० प्रकार होते हैं। जब कुण्डली में किसी राशि में सूर्य होता है तो उससे आगे की दूसरी राशि वेशि कहलाती है (बृ० जा० १।२०)। उपर्युक्त पाँचों शब्द यूनानी कहे गये हैं। 'लिप्ता' शब्द, जिसका अर्थ होता है ‘एक अंश का ६० वाँ भाग', भी यूनानी कहा गया है। और देखिए 'हरिज' (होराइजन) जो 'होरोज' (यूनानी) का द्योतक माना गया है। वे शब्द, जिन्हें वेबर, कर्न आदि ने यूनानी ठहराया है, कुल मिलाकर ३७ हैं-क्रिय, तारि, जितुम, कुलीर, लेय, पाथेन, जूक, कौH, तौक्षिक, आकोकेर, हृद्रोग, इत्थ, हेलि, आर, हिम्न, जीव, आस्फुजित, कोण, होरा, द्रेष्काण, केन्द्र, त्रिकोण, पणफर, आपोक्लिम, मेषूरण, दुश्चिक्य, हिबुक, जामित्र, घुन, रिःफ, अनफा, सुनफा, दुरुधरा, केमद्रुम, वेशि, लिप्ता, हरिज। कुलीर एवं त्रिकोण, कर्न के अनुसार, संस्कृत शब्द हैं। जीव, 'झूस' नहीं है। यूनानी शब्द ज्यूस (या इयूस, (zcus)) संस्कृत शब्द द्यौस् से मिलता है किन्तु 'जीव' से नहीं। 'झयूस' भारोपीय शब्द है और इसका अर्थ है 'स्वर्ग' या 'आकाश' । 'द्रेष्काण' या 'द्यूतम्' के विभिन्न रूपों की गणना की आवश्यकता नहीं है। 'होरा' शब्द भारतीय ज्योतिष के मारम्भिक काल में तीन अर्थों में प्रयुक्त होता था, जिनमें कोई भी 'घंटा' के अर्थ में नहीं प्रयुक्त हुआ है। यह सम्भव है कि यदि यह यूनानी है तो मिस्र या बेबिलोन से उधार लिया गया है, क्योंकि 'घंटा' के अर्थ में यह पश्चात्कालीन है और यह निश्चित नहीं है कि हिपार्कस (ई० पू० १४०) ने इसे उस अर्थ में प्रयुक्त किया था। यदि उपर्युक्त चार शब्द छोड़ दिये जाये तो ३३ शब्दों के विषय में यह तर्क किया जा सकता है कि इन पर यूनानी प्रभाव है। इनमें कुछ, यथा राशियों के १२ नामों, ग्रहों के ६ नामों, कुछ भावों, यथा हिबुक, जामित्र, धून एवं केन्द्र के कई संस्कृत पर्याय हैं (कभी-कभी एक दर्जन), जिनका प्रयोग बृ० जा० में हुआ है। अतः इन पर भी विचार करना व्यर्थ है। ये 'बृहज्जातक द्वारा इसलिए प्रयुक्त हुए कि कई भारतीय यूनानियों ने, जिन्होंने संस्कृत में ग्रन्थ लिखे थे, उनका प्रयोग किया था और बृहज्जातक ने विवरण की पूर्णता के लिए उनका प्रयोग किया। यहाँ तक कि 'केन्द्र' शब्द के, जिसका अर्थ है पहला, चौथा, सातवाँ एवं दसवाँ घर, दो संस्कृत पर्याय हैं 'कण्टक' एवं 'चतुष्टय'। इसके संस्कृत एवं यूनानी अर्थों में अन्तर भी है (यूनानी शब्द केण्ट्रान का अर्थ है कील)। अतः केवल १० शब्द, यथा अनफा, सुनफा आदि, ऐसे हैं जिनका भारतीय फलित ज्योतिष में बहुत अल्प योगदान है। ऐसा कहना कि वराहमिहिर द्वारा विकसित भारतीय ज्योतिष इन शब्दों के प्रयोग के कारण यूनानी ज्योतिष पर आधारित है, बहुत बड़ी भूल एवं दूर का कोलाहल है। यह मानना अत्यन्त सन्देहपूर्ण है कि भारतीय, कुछ ऋषियों या दार्शनिकों को छोड़कर, यूनान गये और वहाँ से लौट कर आने पर उन्होंने यूनानी ज्योतिष का ज्ञान भारत को दिया; प्रत्युत हमारे पास प्रचुर प्रमाण हैं कि यूनानी भारत में बसे, उन्होंने संस्कृत में शिलालेख और विस्तार के साथ ज्योतिष के ग्रन्थ लिखे। देखिए बौचे-लेक्लर्क लिखित 'ल' ऐस्ट्रालाजी (Bouche'-leclerca : 'L' Astrologie Greque) एवं जी० आर० काए (आर्योलाजिकल सर्वे आव इण्डिया, मेम्बायर, सं० १८, पृ०
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