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होरा, द्रेष्काण आदि का विकास
२८७ कुछ पारिभाषिक शब्दों की व्याख्या अभी नहीं हो सकी है। होरा का एक अर्थ है 'राशि का अर्ध'। विषम संख्याओं (१, ३, ५, ७, ९, ११) की राशियों के प्रथम अर्थ का देवता है सूर्य, दूसरे अर्ध का देवता चन्द्र है; किन्तु सम राशियों (२, ४, ६, ८, १० एवं १२) के प्रथम अर्थ का देवता चन्द्र है तथा दूसरे अर्ध का देवता है सूर्य (बृ० जा० ११११)। इसका उपयोग यह है कि सूर्य के होरा में उत्पन्न व्यक्ति स्वभाव से उद्योगी या साहसी होता है और जो चन्द्र के होरा में उत्पन्न होता है वह मृदु स्वभाव का होता है। बृ० जा० (१११२) में कुछ लोगों (यवनेश्वर, उत्पल के अनुसार) का यह मत वर्णित है कि प्रथम होरा का स्वामी वही है जो राशि का स्वामी होता है तथा दूसरे होरा का स्वामी कुण्डली के ११वें घर का स्वामी होता है। इस मत का फल यह होगा कि सभी ग्रह होराओं के स्वामी हो सकते हैं न कि केवल सूर्य एवं चन्द्र ही ऐसे हो सकते हैं, जैसा कि वराह, सत्य आदि का कहना है। प्रत्येक राशि (३० अंश) तीन भागों में बँटी हुई हैं, जिनमें प्रत्येक में १० अंश होते हैं और वे द्रेष्काग (या देक्काण) या दृकाण या दृगाण कहे जाते हैं (बृ० जा० ३५, सम्भवतः मात्रा के आधार पर ये विभिन्न नाम हैं)। प्रत्येक राशि के तीनों भागों के स्वामी क्रम-से स्वयं राशि के स्वामी (प्रथम भाग के), पाँचवीं राशि के स्वामी (दूसरे भाग के) तथा नवीं राशि के स्वामी (तीसरे भाग के) होते हैं। उदाहरणार्थ, वृषभ के विषय में (जिसका स्वामी शुक्र है) प्रथम, दूसरे एवं तीसरे भागों के स्वामी क्रम से शुक्र, बुध (वृषभ से आगे पाँचवीं का स्वामी) एवं शनि (वृषभ से नवीं का स्वामी) हैं। यही बात अन्य राशियों के विषय में भी है।
'द्रेष्काण' के विषय में दो शब्द आवश्यक हैं। वेबर आदि के मत से यह यूनानी शब्द 'डेकनोई' (Decanoi) है। 'डेकान' प्राचीन मिस्र में प्रचलित थे जहाँ मलतः कोई राशि नहीं थी। डेकानल पद्धति ई० पू० तीसरी शती में भित्र में प्रकट हई। मल रूप में डेकान प्रभावशाली नक्षत्र या नक्षत्र-समह थे जो प्रत्येक दस दिनों की ३६ अवधियों में रात्रि के किन्हीं विशिष्ट घण्टों में उदित होते थे और इन अवधियों से मिस्री वर्ष बनता था। डेकान मूलतः 'जेनाई' (देवता) थे जोमिस्री वर्ष की ३६ दस-अवधियों के स्वामी थे। दस दिनों की प्रत्येक अवधि सर्यास्त पर पूर्व क्षितिज में उगने वाले आगे के डेकान से संकेतित होती थी। बोचे लेक्लर्क (एलएस्टॉलोजी ग्रीक,प० २१५-२४०) ने कहा है कि मिस्री भाषा में कोई विशिष्ट नाम (यथा यूनानी शब्द 'डेकानोस') नहीं पाया जाता और डेकान के कई पर्याय हैं। बोचे महोदय ने यही सिद्ध किया है कि मिस्री राशियाँ रोम-कालीन हैं और यूनानी राशियों की अनुकृतियाँ हैं।
बृहज्जातक में एक विशिष्ट अध्याय है २७ वाँ, जिसमें ३६ श्लोक हैं। इस अध्याय का नाम द्रेष्काणाध्याय है जिसमें द्रेष्काणों के ३६ देवताओं का उल्लेख है। लगता है, यह अध्याय देवता-अधीक्षकों के रूप में डेकानों की मिस्री धारणा की ओर संकेत करता है। भाषा लाक्षणिक है। यहाँ राशियों के भागों की चर्चा की गयी है। ३६ डेकानों में दो-तिहाई पुरुष हैं और शेष स्त्रीलिंग द्योतक। कुछ पुरुष-नारी मिश्रित आकृतियाँ, चतुष्पद, पक्षी या सर्प भी आते हैं। वराह (२७।२, १९, २१) ने स्पष्ट कहा है कि वे केवल वही विवरण दे रहे हैं जो यवनवर्णित है। टाल्मी के द्राबिब्लोस में ऐसा कुछ नहीं है और वराह ने टाल्मी एवं मनिलिअस के पूर्ववर्ती किसी भारतवासी यूनानी के संस्कृत-ग्रन्थ की ओर संकेत किया है। ज्योतिष-सम्बन्धी काव्य ‘ऐस्टोनोमिका' के लेखक मनिलिअस ने सन् ९ ई० में डेकानों का प्रयोग किया है, किन्तु प्रतीत होता है कि इनका प्रयोग टाल्मी के काल में यूनान से लुप्त हो गया था। सारावली (४९।२) ने ३६ द्रेष्काणों का विवरण दिया है जो बृहज्जातक से भिन्न है। लगता है, उसके समक्ष कोई ऐसा संस्कृत-ग्रन्थ था जो किसी अन्य यवन का था और वह बृहज्ज सर्वथा भिन्न था।
अब हम कुछ अन्य पारिभाषिक शब्दों की व्याख्या करेंगे। किसी ग्रह की रात नवांश, द्वादशांश एवं त्रिशांश-कुल छः मिलकर ग्रह के वर्ग या षड्वर्ग कहे जाते हैं
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