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भाव-मामतालिका
२८५ की शक्ति अन्य दृष्टियों से बराबर हो तो इसी क्रम को ध्यान में रखकर यह निश्चय करना चाहिए कि कौन अधिक बलशाली है।"
कुण्डली में ज्योतिष-सम्बन्धी बारह घर होते हैं, और उनमें प्रत्येक के बहुत-से पर्याय हैं, जिनमें बहुत-से यह बताते हैं कि कौन सी विशिष्ट बातें उस घर की दशा से जानी जा सकती हैं। इनका उल्लेख बृ० जा० (१।१५-१९), ल० जा० (१।१५-१९) एवं सारावली (३।२६-३३) में हुआ है, यथा
कुण्डली के द्वादश स्थान (भाव) पहला घर : होरा, तनु, कल्प, शक्ति, मूर्ति, लग्न, देह. अंग, उदय, वपु, माद्य, विलग्न । दूसरा घर : धन, स्व, कुटुम्ब, अर्थ, कोश। तीसरा घर : सहोत्थ, विक्रम, पौरुष, सहज, दुश्चिक्य । चौथा घर : बन्धु, गृह, सुहृद्, पाताल, हिबुक, वेश्म, सुख, चतुरस्र, अम्बु, जल, अम्बा, यान, वाहन । पाँचवाँ घर : सुत, धी, पुत्र, प्रतिभा, विद्या, वाक्स्थान, त्रिकोण। छठा घर : अरि, रिपु, क्षत, व्रण। सातवां घर : जाया, जामित्र, घुन, धूत, पत्नी, स्त्री, चित्तोत्थ, अस्तभवन, काम, स्मर, मदन । आठवाँ घर : मरण, रन्ध्र, मृत्यु, विनाश, चतुरस्र, छिद्र, विवर, लय, याम्य। नवाँ धर : शुभ, गुरु, धर्म, पुण्य, त्रित्रिकोण, त्रिकोण, तप। दसवाँ घर : आस्पद, मान, कर्म, मेषूरण, आज्ञा, ख, गगन, तात, व्यापार। ग्यारहवाँ घर : आय, भव, लाभ, आगम, प्राप्ति। बारहवाँ घर : व्यय, रिःफ (या रिष्फ), अन्त्य, अन्तिम ।
यह द्रष्टव्य है कि उपर्युक्त भावों के नाम (उपाधियाँ अथवा संज्ञाएँ) दो प्रकार के होते हैं--(१) वे, जो घर के किसी विशिष्ट कार्य का बिना संकेत किये केवल नाम मात्र धारण करते हैं, यथा होरा, दुश्चिक्य, मेषूरण, रि:फ, चतुरस्र ; (२) वे, जो घरों के विशिष्ट कार्यों का निर्देश करते हैं, यथा तनू (देह), स्व (धनसम्पत्ति) या कुटुम्ब, सहज (भाई)।
बहुत-से घरों (भावों) की कुछ विशिष्ट उपाधियाँ या नाम हैं। पहला, चौथा, सातवाँ एवं दसवाँ घर कण्टक, केन्द्र, चतुष्टय कहा जाता है; केन्द्र के आगे के घर पणफर (दूसरा, पाँचवाँ, आठवाँ एवं ग्यारहवाँ) कहे जाते हैं; तीसरा, छठा, नवा एवं बारहवाँ आपोक्लिम के नाम से विख्यात हैं ; छठा, आठवाँ एवं बारहवाँ त्रिक कहलाता है; तीसरा, छठा, दसवाँ एवं ग्यारहवाँ उपचय तथा शेष अपचय कहे जाते हैं। गर्ग के मत से तीसरा, छठा, दसवाँ एवं ग्यारहवाँ तभी उपचय कहे जाते हैं जब कि उन पर हानिकर ग्रहों की दृष्टि न हो या उनके स्वामी का शत्रु न हो। त्रिकोण को यूनानी शब्द कहा गया है।
घरों (भावों) के कतिपय नामों से प्रकट होता है कि उनसे निम्न बातों की भविष्यवाणी की जा सकती
२४. मन्दार-सौम्य-वाक्पति-सित-चन्द्रार्का ययोत्तरं बलिनः । नैसर्गिकबलमेतद् बलसाम्येऽस्मादषिकचिन्ता॥ लघुजातक (२७); उत्पल द्वारा बु० जा० (२।२१) में उद्धृत; इसका चतुर्थ चरण यह है 'शरुबुगुशुचसाद्या वृद्धितो वोर्यवन्तः' जहाँ 'शराबुगुशुचस' में क्रम से शनि, रुधिर (मंगल), बुध, गुरु शुक्र, चन्द्र एवं सविता हैं।
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