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ग्रहों के गुण-धर्मो का विकास और राशिगत प्रभाव
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शनि को तमोगुणी तथा बुध को अपने साथ संयुक्त ग्रह के गुण को धारण करने वाला माना है । और देखिए बृ०, जा० (२२८- १०) एवं लघुजातक ( २।१३-१९ ) जहाँ ग्रहों की विशेषताओं का वर्णन है। बृ० जा० (२1११, १२, १४) एवं सारावली (४।१५-१६) में एक अन्य तालिका पायी जाती है जिसमें ग्रहों से शासित मानवशरीर, उनके स्थानों, वस्त्रों, रत्नों, मणियों एवं रसों का उल्लेख है
ग्रह
सूर्य
चन्द्र
मंगल
बुध
बृहस्पति
शुक्र
शनि
शरीरांग
अस्थियाँ
रक्त
मज्जा
चर्म
मांस
वीर्य
मांसपेशियाँ
स्थान
मन्दिर
जल-स्थान
अग्नि-स्थान
क्रीड़ा-स्थल
कोषागार
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शय्या कक्ष
धूलि - बिल
वस्त्र
भद्दा ( मोटा )
नवीन वस्त्र
एक भाग जला हुआ
भींगा
न तो नवीन और न
बहुत पुराना मजबूत
फटा
रत्न एवं मणि
ताम्र
रत्न
सोना
कांस्य
चाँदी
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मोती
लोहा
रस
उग्र
नमक
कटु
मिश्रित (सभी रस)
मधुर
खट्टा
कषाय
ऐसा कहा गया है कि यदि बृहस्पति अपने गृह ( अर्थात् धनु या मीन) में हो, तो वह सोने का भी स्वामी होता है ।" इस प्रकार के नियोजन से व्यावहारिक जीवन पर प्रभाव पड़ता है। ज्योतिषी को, यदि ग्रह प्रबल है, तो पता चल सकता था कि जन्म का स्थान क्या है, उसे चोर का पता भी चल सकता था और यह भी ज्ञात हो सकता था कि भोजन के लिए आमन्त्रित व्यक्ति को किस प्रकार का भोजन मिल सकता है।
बृ०जा० (२५) में आया है कि सूर्य, मंगल एवं बृहस्पति पुरुष हैं, चन्द्र एवं शुक्र स्त्री हैं तथा बुध एवं शनि नपुंसक हैं। टेट्राबिब्लोस (१२६) में शनि पुंल्लिंग है । बृ० जा० (२।२१ ) के अनुसार चन्द्र, मंगल एवं शनि निशाप्रबल ( रात्रि में शक्तिशाली ) हैं, सूर्य, बृहस्पति एवं शुक्र दिवाप्रबल हैं तथा बुध दोनों (दिनप्रबल एवं निशा प्रबल) है। टेट्राबिब्लोस (१1७ ) में अन्तर है, वहाँ शुक्र को निशाप्रबल और शनि को दिवाप्रबल कहा गया है । कुछ राशियाँ ग्रहों के स्वगृह ( अपने गृह ) घोषित हैं, कुछ राशियाँ उनको उच्च कहीं गयी हैं और उच्च के कुछ अंश परमोच्च घोषित हैं; उच्च से सातवीं राशि नीच कही गयी है और नीच के कुछ अंश परमनीच घोषित
२३. अर्कावि ताम्रमणि हेमयुक्तिरजतानि मौक्तिकं लोहम् । वक्तव्यं बलवद्भिः स्वस्थाने हेम जीवेपि ॥ लघुजातक (उत्पल द्वारा बृ० जा० २।१२ में उद्धृत ) । ग्रहों एवं मुख्य धातुओं में जो सम्बन्ध स्थापित किया गया, वह रंगसादृश्य पर निर्भर था। विभिन्न ग्रह शरीर के विभिन्न अंगों पर शासन करते हैं, इस सिद्धान्त ने वैद्यकशास्त्र पर ज्योतिशास्त्र का प्रभाव डाला ।
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