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धर्मशास्त्र का इतिहास ज्ञान एवं सुख का मूल बन गया (जीवो शान-सुखम्, बृ० जा०, २॥१) तो वह प्राणियों का बीवन अर्थात् जीव कहा जाने लगा। 'बृहस्पतिर्नृणां जीवः' अर्थात् बृहस्पति मनुष्यों का जीव है (सारावली, १०।११६)। भुजबल में आया है-उसका अन्य ग्रह क्या बिगाड़ेंगे जिसकी कुण्डली में बृहस्पति केन्द्र स्थान में हो। हाथियों का झुण्ड एक सिंह द्वारा मारा जाता है । २२
हम नीचे ग्रहों की विशेषताओं, यथा रंगों, स्वामियों, दिशाओं, तत्त्व, वेद, वर्णों, प्रभावों आदि की एक तालिका उपस्थित करते हैं।
रंग
स्वामी
दिशा
।
तत्त्व
वेद
वर्ण(जाति) शुभ या अशुभ
सूर्य
चन्द्र
श्वेत
लाल अग्नि
जल अति लाल कार्तिकेय हरा विष्णु
मंगल
उत्तर-पश्चिम दक्षिण उत्तर
अग्नि पृथिवी
बुध
क्षत्रिय हानिकर वैश्य
क्षीण चन्द्र हानिकर सामवेद | क्षत्रिय | हानिकर अथर्ववेद शूद्र
हानिकर ग्रहों से युक्त
होने पर हानिकर ऋग्वेद ब्राह्मण शुभकर यजुर्वेद ब्राह्मण शुभकर
बृहस्पति
शुक्र
पीला
उत्तर-पूर्व ।
आकाश विचित्र इन्द्राणी दक्षिण-पूर्व जल (चितकबरा) काला प्रजापति - पश्चिम वायु
दक्षिण-पश्चिम
शनि
चाण्डाल
अशुभकर
योगयात्रा (६।१) में आठ दिशाओं के देवताओं एवं उनके ग्रहों में अन्तर प्रदर्शित किया गया है। इन्द्र, अग्नि, यम, निऋति, वरुण, वायु, कुबेर एवं शिव क्रम से पूर्व, पूर्व-दक्षिण, दक्षिण, दक्षिण-पश्चिम, पश्चिम, पश्चिम-उत्तर, उत्तर एवं उत्तर-पूर्व नामक आठ दिशाओं के देवता या स्वामी हैं। यही बात ग्रहों के विषय में भी है।
इस प्रकार के विभाजन का उपयोग भी बताया गया है-ग्रहों के रंगों से चोरी गयी या खोयी हुई वस्तु का रंग एवं ग्रहों की पूजा के निमित्त फूलों की ओर संकेत मिलता है। ग्रह-पूजा में ग्रहों के साथ ग्रह-स्वामियों की पूजा भी होती है। ग्रहों की दिशाओं से राजा की रण-यात्रा की दिशा का ज्ञान किया जाता है। हितकर या अहितकर ग्रहों से व्यक्ति के अच्छे या बुरे चरित्र का पता चलता है। बृ० जा० (२७) में आया है कि चन्द्र, सूर्य एवं बृहस्पति सत्त्व-गुण के स्वामी हैं, बुध एवं शुक्र रजो-गुण के, मंगल एवं शनि तमोगुण के स्वामी हैं। उत्पल ने प्रकट किया है कि वराह एवं यवनेश्वर में अन्तर है। यवनेश्वर ने सूर्य, मंगल एवं बृहस्पति को सात्त्विक, चन्द्र एवं शुक्र को रजोगुणी,
२२. किं कुर्वन्ति ग्रहाः सर्वे यस्य केन्द्र बृहस्पतिः। मत्तवारणसंघातः सिंहेनैकेन हन्यते ॥ भुजबल (पृ० २८०, १२६२॥
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