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ग्रहों के मुण-धर्मों का विकास और राशिगत प्रभाव
२८१ शुक्र के उदय, अस्त एवं गमन तथा सूर्य के प्राकृतिक एवं अप्राकृतिक प्रभाव से वर्षा के पूर्व ज्ञान, सूर्य से बीजसिद्धि, बृहस्पति से अनाज की पर्याप्त पुष्टि एवं शुक्र से वर्षा होने का विचित्र उल्लेख किया है। यह द्रष्टव्य है कि भारत में सामान्य ज्योतिष (व्यक्तिगत या कुण्डली वाला नहीं) का प्रचलन, मेसोपोटामिया में राजपुरोहितों द्वारा दिये गये प्रतिवेदनों के समान, ईसा की कई शताब्दियों पूर्व से था। बृहज्जातक (२।२-३) ने सूर्य, चन्द्र, मंगल, बुध, बृहस्पति, शुक्र, शनि, राहु एवं केतु नामक ग्रहों एवं उनके पर्यायों का उल्लेख किया है।
बेबिलोनवासियों द्वारा ग्रह-निरीक्षण ई० पू० दूसरी सहस्राब्दी में किया गया था। सर्वप्रथम शुक्र का अध्ययन हुआ। शुक्र-निरीक्षण से उत्पन्न तालिकाएँ ई० पू० १९२१-१९०१ में बनीं। बृहस्पति एवं मंगल का भी निरीक्षण हुआ। बृहस्पति को स्वाभाविक रूप से अच्छा मान लिया गया, जब कि वह चमकदार हो या चन्द्र का अनुसरण करे। किन्तु मंगल अभाग्य का ग्रह था, किन्तु यदि वह दुर्बल हो या अस्त हो गया हो तो बुरे प्रभाव भी नष्ट हो जाते थे। शनि (अटल रूप से खड़ा रहने वाला) भाग्य का ग्रह कहा गया। इसी प्रकार अन्य ग्रहों के काल में उत्पन्न व्यक्तियों के फल कहे गये। बेबिलोनिया में ग्रहों को विभिन्न नाम भी मिले। विभिन्न कालों में ग्रहों के क्रम विभिन्न थे। ग्रह का वाचक अंग्रेजी शब्द 'प्लॅनेट' यूनानी है, जिसका अर्थ है घूमने वाला। ग्रह तारों की तुलना में स्थान-परिवर्तन करते रहते हैं और विभिन्न कालों में विभिन्न स्थानों में रहते हैं। वर्तमान काल में तीन अन्य ग्रहों का ज्ञान हुआ है, यूरेनस (Uranus), नेप्चून (Neptune) एवं प्लूटो (pluto) जिनका पता क्रम से १७८१ ई०, १८४६ एवं १९३० ई० में चला।
बृहज्जातक (२।२-३), सारावली (४।१०-११) एवं राजमार्तण्ड (श्लोक ८-१५) ने सूर्य, चन्द्र एवं अन्य सात ग्रहों के विभिन्न नामों का उल्लेख किया है, यथा
१. सूर्य : रवि, भानु, इन, आदित्य, सविता, भास्कर, अर्क, दिवाकर, तिग्मांशु, तपन, सहस्रांशु, प्रभाकर, उष्णकर, उष्मगु, मार्तण्ड, दिनमणि, दिनकर्ता, हेलि।
२. चन्द्र : विधु, इन्दु, चन्द्रमा, शीतांशु, सोम, मृगाङ्क, निशाकर, शीतरश्मि, निशानाथ, रोहिणीप्रिय, शशी, शीतगु, नक्षत्रपति।
३. मंगल : अंगारक, कुज, भौम, भूमिज, महीसुत, आवनेय, लोहितांग, क्षितिसुत, क्रूराक्ष, माहेय, रुधिर, वक्र, आर।
४. बुध : ज्ञ, विद्, बोधन, विबुध, कुमार, राजपुत्र, सौम्य, चन्द्रसुत, तारापुत्र, रौहिणेय, हिमरश्मिज, (हिम्न या हिम्ना)।
५. बृहस्पति : गुरु, इज्य, ईड्य, अंगिरा, सुरगुरु, सुरमन्त्री, सुराचार्य, वाक्पति, गिरीश, धिषण, सूरि, जीव । ६. शुक्र : भृगु, भृगुसुत, सित, भार्गव, कवि, उशना, दैत्यमन्त्री, दानवपूजित, असुरगुरु, काव्य, आस्फुजित्।
७. शनैश्चर : सौरि, सूर्यपुत्र, मन्द, असित, अर्कनन्दन, आकि, भास्करि, दिनेशात्मज, सहस्रांशुज, पातंगि, यम, शनि, छायापुत्र, कोण।
८. राहु : तम, अगु, असुर, स्वर्भानु, सिंहिकासुत, दानव, सुरारि, मुजंगम, विधुन्तुद, अमृतचौर, उपप्लव। ९. केतु : शिखी, ब्रह्मसुत, धूम्रवर्ण।
उपर्युक्त नामों में रेखांकित नाम, कुछ पाश्चात्य लेखकों के मत से, यूनानी नाम हैं। किन्तु बात ऐसी नहीं है। कोई यूनानी नाम चन्द्र के लिए नहीं है। जीव शब्द वेद में आया है। ऋ० (१।१६४।३०, १०।१८।३७) में इसका अर्थ है प्राणी, एक व्यक्ति। देखिए छा० उप० (६।३।२)। जब बृहस्पति सभी ग्रहों में श्रेष्ठ गिना जाने लगा और
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