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________________ २७८ धर्मशास्त्र का इतिहास ___ यह द्रष्टव्य है कि पर्यायों की सूची और भी लम्बी है। उसी अर्थ के अन्य शब्द भी दिये जाते रहे हैं। सिंह के लिए मृगराज, मीन के लिए पृथुरोमा प्रयुक्त हो सकता है। वेबर आदि ने यह बताया है कि उपर्युक्त तालिका में जो रेखांकित शब्द हैं वे या तो यूनानी शब्द हैं या यूनानी शब्दों के रूपान्तरित संस्कृत शब्द हैं। यह ठीक कहा जा सकता है कि इन नामों में बहुत-से यूनानी राशियों के नामों से मिलते हैं। 'पाथोन' यूनानी 'पाथेन' होना चाहिए। कोई कारण नहीं दीखता कि 'कुलीर' को यूनानी शब्द माना जाये। कर्न ने इसे शुद्ध संस्कृत शब्द माना है। टाल्मी में कुलीर के तुल्य कोई शब्द नहीं है। 'कर्क' या 'कर्की' शब्द अथर्ववेद (४।३८१६-७) में आया है और इसका अर्थ संभवतः 'श्वेत' है। बृहज्जातक (११८) के कथन का यही तात्पर्य है कि बारह राशियों के अन्य नाम भी हैं। वराहमिहिर ने अधिकतर यवन-मतों का उल्लेख किया है और अपना अन्तविरोध भी प्रकट किया है। प्रस्तुत लेखक ने 'यवनेश्वर एवं उत्पल' नामक लेख (जर्नल आव बाम्बे एशियाटिक सोसायटी, जिल्द ३०, पृ० १-८) में दर्शाया है कि स्फजिध्वज नामक राजा द्वारा लिखित लगभग ४००० श्लोकों में 'यवनजातक' नामक एवं मीनराज द्वारा, जो अपने को यवनाधिपति कहता है, कई सहस्र श्लोकों में लिखित 'वृद्धयवनजातक' नामक ज्योतिष ग्रन्थ पाये जाते हैं। प्रो० सेन-गुप्त की यह धारणा कि ऋ० (१।५१११) जैसी ऋचाओं में उल्लिखित मेष एवं वृषभ शब्द राशियों की ओर निर्देश करते हैं (अभि त्यं मेषम् . . .) ठीक नहीं जंचती, क्योंकि स्वयं उन्होंने स्वीकार किया है कि ऋग्वेद में अन्य शेष दस राशियों के नाम नहीं आते (ऐंश्येण्ट इण्डिएन क्रोनोलाजी, पृ० ९९)। बृहज्जातक (११५) द्वारा संक्षेप में वर्णित एवं उत्पल द्वारा व्याख्यायित राशियों का आकार इस प्रकार है-"मीन (पिस्केस) दो मछलियों (एक दूसरे की पूंछ के सम्मुख) के रूप में; कुम्भ एक पुरुष के समान, जो अपने कंधे पर खाली घड़ा लिये है। मिथन एक पुरुष के रूप में जो हाथ में गदा एवं वीणा लिये एक नारी के साथ है; धनु उस पुरुष के समान व्यक्त है जिसके हाथ में धनुष है और जिसके पैर घोड़े के पैर के समान हैं; मकर का रूप घड़ियाल के सदृश है जिसका मुख मृग का है; तुला पुरुष के समान है जिसके हाथ में तुला (तराजू) है; कन्या नौका में स्थित कन्या के समान है, जिसके एक हाथ में अनाज की बाली एवं दूसरे में अग्नि है; शेष राशियाँ अपने नामों के अनुरूप अभिव्यक्त की गयी हैं। बहुत-सी राशियों के प्रभाव में आने वाले पदार्थों की चर्चा उत्पल . (बृ० सं० ४०, की व्याख्या में) ने काश्यप का उद्धरण देकर की है, उदाहरणार्थ वस्त्रों, ऊन, बकरी (या भेड़) के बाल से बने वस्त्रों, मसूर-दाल, गेहूँ (गोधूम), अरालंक (राल), जौ (यव), सोना एवं सूखी भूमि पर उगने वाले पौधों का स्वामी मेष है। और देखिए वामनपुराण (५।४९-५१)। वराह के वर्णन से पता चलता है कि मेष, वृषभ, कर्कट, सिंह, वृश्चिक, मकर एवं मीन पशुओं (चौपायों या कीट-पतंगों) की आकृतियाँ हैं और शेष पाँच, प्रत्येक में विशिष्ट बातों के साथ, मानव आकृतियों द्वारा द्योतित हैं। ये राशि-नाम कम-या-अधिक वही अर्थ रखते हैं जो बेबिलोन, यूनान , भारत एवं अन्य यूरोपीय देशों में प्रयुक्त होते हैं। किन्तु उनकी पशु और मानव आकृतियों में सभी देशों में सादृश्य नहीं है। चीन में बारह राशियाँ यों हैंचूहा, बल, व्याघ्र, खरगोश, नाग (अग्नि फेंकता साँप), सर्प, अश्व, भेड़, बन्दर, मुर्गी, कुत्ता एवं सूअर। राशियों की संज्ञाओं का उद्गम अज्ञात है। मेष, वृषभ आदि नाम पूर्ण रूपेण कल्पनात्मक हैं; रानियाँ सुदूर स्थित हैं; एक-दूसरे से बहुत दूर हैं; दूर से विभिन्न रूपों में दृष्टिगोचर होने से वृश्चिक, सिंह आदि रूपों में प्रतीत स्वगत-प्रतिच्छाया मात्र १८. मत्स्यौ घटी नृमिथुनं सगदं सवीणं चापी नरोऽश्वजघनो मकरो मृगास्यः। तौली ससस्यवहना प्लवगाव कन्या शेषाः स्वनामसदृशाः खचराश्च सर्वे॥बृ० जा० (१५)। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002792
Book TitleDharmshastra ka Itihas Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPandurang V Kane
PublisherHindi Bhavan Lakhnou
Publication Year1971
Total Pages526
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size18 MB
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