SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 290
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ पाश्चात्य जगत् में ज्योतिष का प्रसार २७३ होने लगा । फलित ज्योतिष से परिचित होने से पूर्व यूनानी लोग भविष्यफल का ज्ञान आप्तवचनों, स्वप्न व्याख्याओं, ये हुए पशुओं की अंतड़ियों एवं यकृत ( कलेजे) के निरीक्षण, पक्षियों की उड़ान एवं पुकारों ( चिल्लाहटों), ग्रहणों, धूमकेतुओं एवं उल्कापातों से करते थे । बेबिलोन के देवता बेल के पुजारी बससस ने अपने आश्रयदाता एण्टिकस प्रथम सोटर ( ई० पू० २८०-२६१) को बेबिलोन एवं चाल्डिया के इतिहास पर एक ग्रन्थ बनाकर दिया, उसी पुजारी को बेबिलोनी ज्योतिष ( फलित ) को यूनान में प्रसारित करने तथा सर्वप्रथम एशिया माइनर के दक्षिण-पश्चिम कोण में स्थित कोस नामक स्थान की पाठशाला में उसे पढ़ाये जाने का यश प्राप्त हुआ था । यूनान से रोम में फलित ज्योतिष लगभग ई० पू० दूसरी शताब्दी में पहुँचा । तभी से यूनान एवं रोम के घर-घर में राशियों की चर्चा होने लगी । पोसिडोनिअस - जैसे स्टोइकों ने इसका समर्थन किया। कंटो ने अपने कृषि सम्बन्धी ग्रन्थ में चाल्डियनों के ज्योतिष - ज्ञान के विरुद्ध सावधान किया है और ई० पू० १३९ में एक आदेश निकला, जिससे चाल्डिया लोग इटली से बाहर कर दिये गये । डायडोरस सिसलस (रोम के आगस्टस के समकालीन) ने कुण्डली बनाने की चाल्डिया-विधि एवं सिद्धान्त का वर्णन किया है । होरेस ( मृत्यु ई० पू० ८ ) ने अपनी माइसेनस नामक कविता में लिब्रा (तुला), स्कापिअन (वृश्चिक) एवं कैपिकार्नस (मकर) के विषय में तथा जोव (बृहस्पति) की रक्षादायिनी शक्ति एवं शनि के हानिकारक स्वरूप की ओर संकेत किया है। स्ट्रैबो ( मृत्यु सन् २४ ई०) ने दृढता के साथ कहा है कि चाल्डियावासी ज्योतिष एवं कुण्डली निर्माण में दक्ष थे । पेट्रोनियस ( प्रथम शती) ने अपने 'सैटरिकन' नामक उपन्यास में रात्रि के प्रीति भोज में, जो ४० पृष्ठों में वर्णित है, एक ऐसे थाल का उल्लेख किया है जिसमें सभी राशियों के आकार रचे हुए थे और प्रत्येक के साथ विशिष्ट भोजन रखा हुआ था (देखिए विल ड्र लिखित 'सीज़र एण्ड क्राइस्ट', पृ० २९८ ) । जुवेनल ( प्रथम शती के अन्त में ) ने चाल्डिया के ज्योतिष में अधिक विश्वास रखने वाली नारियों की बड़ी भर्त्सना की है। ऐसा नहीं सोचना चाहिए कि रोम एवं मध्य यूरोप में ज्योतिष के विरोध में कुछ नहीं कहा गया । सिसरो ज्योतिष में विश्वास नहीं करता था और उसका कहना था कि ग्रह बहुत दूर स्थित हैं। सेण्ट आगस्टाइन ( ३५४-४३० ई०) ने अपने ग्रन्थ 'सिटी आव गाड' में ज्योतिष को भ्रम माना है । बेबिलोन एवं यूनान के ज्योतिष में बहुत-से भेद थे। बेबिलोनी ज्योतिष मूलतः राज्य एवं राजकुल से सम्बन्धित था, किन्तु यूनानी ज्योतिष व्यक्तियों से ; बेबिलोनी ज्योतिष का सम्बन्ध पुरोहित-वृत्ति से था, किन्तु यूनान 'के ज्योतिर्विद् सामान्य जन थे । ज्योतिष आगे चलकर यूरोप में अन्तरराष्ट्रीय महत्ता रखने लगा और ज्योतिःशास्त्र ( ऐस्ट्रानामी) के साथ मूल्यवान् विषय के रूप में विश्वविद्यालयों में पढ़ाया जाने लगा । इसका प्रचलन विशेषतया इसके वैज्ञानिक ढाँचे के कारण था, जो कि ग्रहों, कोष्ठकों, बारह राशियों आदि से अभिव्यक्त होता था । कोपर्निकस, गैलिलिओ एवं केप्लर स्वयं ज्योतिष का व्यवहार करते थे या इसके व्यवहार का विस्तार करते थे। बेकन यह कहने को तैयार था कि नक्षत्रों में कोई प्राणघाती अवश्यंभाविता ( फेटल नेसेसिटी ) नहीं है किन्तु वे दुःख देने या बलपूर्वक बाध्य करने की अपेक्षा अनुग्रहशील हैं। टाल्मी का 'टेट्राबिब्लोस' नामक ग्रन्थ लगभग १४०० वर्षों तक अपना प्रभुत्व जमाये हुए था और आज भी वह ज्योतिष में विश्वास करने वालों के समक्ष एक महत्त्वपूर्ण प्रमाण है। यह एक मनोरंजक बात है कि महान् जर्मन कवि, नाटककार एवं दार्शनिक गेटे (१७४९-१८३२) ने अपने जन्म के ग्रहों की दृष्टियों (स्वरूपों ) का उल्लेख करते हुए अपने संस्मरणों का आरम्भ किया है। गत दो शताब्दियों में ज्योतिःशास्त्र ज्ञान में गम्भीर वृद्धियों के कारण तथा हेलिओसेण्ट्रिक ( सूर्यकेन्द्रक) सिद्धान्त के पक्ष में जिओसेण्ट्रिक ( भूकेन्द्रक ) सिद्धान्त के त्याग के कारण यूरोप में फलित ज्योतिष का प्रभाव कम पड़ गया । किन्तु इसका तात्पर्य यह नहीं है कि पश्चिम या अमेरिका में यह विलुप्त हो गया है। दोनों महायुद्धों ३५ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002792
Book TitleDharmshastra ka Itihas Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPandurang V Kane
PublisherHindi Bhavan Lakhnou
Publication Year1971
Total Pages526
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size18 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy