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________________ २६६ धर्मशास्त्र का इतिहास फाल्गुनी एवं स्वाती । अन्य कृत्यों के नक्षत्र हैं पुनर्वसु, तिष्य, हस्त, श्रोणा (श्रवण) एवं रेवती। आश्व० गृह्य ने सभी महत्त्वपूर्ण संस्कारों के शुभ कालों के लिए यों कहा है (१।४।१-२)-'चौल, उपनयन, गोदान एवं विवाह का सम्पादन उत्तरायण में, चन्द्र-वृद्धि काल वाले पक्ष में तथा शुभ नक्षत्र में होना चाहिए; कुछ ऋषियों के मत से विवाह सभी कालों में सम्पादित हो सकता है।' आश्व० में आया है कि विवाहोपरान्त कन्या को मौन धारण करना चाहिए तथा ध्रुव, अरुन्धती एवं सप्तर्षि-मण्डल के दर्शन के उपरान्त ही बोलना चाहिए। यह बात पूर्वमीमांसासूत्र में और आगे आयी है-'देवों के सम्मान में किये जाने वाले कृत्य उत्तरायण में, शुक्लपक्ष के किसी शुभ दिन में किये जाने चाहिए (६।८।२३)।' ___ उपर्युक्त कथनों से प्रकट होता है कि ईसा से कई शताब्दियों पूर्व वैदिक एवं घरेलू कृत्यों के लिए केवल शुभ नक्षत्र का निर्धारण होता था न कि किसी तिथि का। सप्ताह के दिनों का भी उल्लेख नहीं किया जाता था। राशियाँ भी वणित नहीं हैं और ग्रहों की ओर भी संकेत नहीं है, केवल शुभ नक्षत्र में कृत्य-सम्पादन की व्यवस्था है। किसी शुभ दिन या नक्षत्र की खोज (विशेषतः विवाह जैसे कृत्यों के लिए या गृह्य-कृत्यों के लिए या किसी संकल्प-पूर्ति के लिए) मध्यकालीन संस्कृत ग्रन्थों में मुहूर्त की खोज के नाम से विख्यात है। अतः 'मुहूर्त' शब्द के अर्थ एवं इतिहास पर विचार करना आवश्यक है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002792
Book TitleDharmshastra ka Itihas Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPandurang V Kane
PublisherHindi Bhavan Lakhnou
Publication Year1971
Total Pages526
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size18 MB
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