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धर्मशास्त्र का इतिहास
देश - नक्षत्र प्रभावित हो तो देश एवं राजधानी पर कष्ट पड़ेगा और यदि राजा की जाति प्रभावित हो तो राजा की की भविष्यवाणी होनी चाहिए। राजा की जाति के विषय में ये नक्षत्र हैं-तीन पूर्वा (पूर्वाफाल्गुनी, पूर्वाषाढ़ा एवं पूर्वाभाद्रपदा ) तथा कृत्तिका ब्राह्मण जाति के राजा के लिए हैं; तीन उत्तरा ( उत्तराफाल्गुनी, उत्तराषाढ़ा एवं उत्तराभाद्रपदा ) तथा पुष्य क्षत्रिय राजा के लिए; अनुराधा, मघा एवं रोहिणी कृषक जाति के राजा के लिए; पुनर्वसु, हस्त, अभिजित् एवं अश्विनी वणिक् जाति के राजा के लिए हैं। देश के नक्षत्रों का उल्लेख बृहत्संहिता के १४ वें अध्याय में है । यहाँ वराहमिहिर टाल्मी से दो बातों में अन्तर रखते हैं : (१) वराह देशों को राशियों से शासित न मानकर केवल नक्षत्रों से मानते हैं; (२) वराह ने अपने को भारत तक सीमित रखा है, किन्तु टाल्मी ( टेट्राबिब्लोस, ११1३, पृ० १५७ - १५९ ) ने उस समय के सभी ज्ञात देशों का स्पर्श किया है। यह एक महत्त्वपूर्ण बात है जो इस सिद्धान्त का खण्डन करती है कि वराह ने टाल्मी या पश्चात्कालीन यूनानी लेखकों की नकल की है। सम्पूर्ण भारत ९ भागों में बाँटा गया है -- मध्यदेश एवं वे भूमिखण्ड जो पूर्व से लेकर उत्तर-पूर्व तक आठ भागों में बँटे हैं; प्रत्येक भूमिखण्ड कृत्तिका से आगे के तीन-तीन नक्षत्र - दलों से सम्बन्धित है । और देखिए विष्णुधर्मोत्तर ० ( ११८६ | १ - ९ ) । जब ९ खण्डों में प्रत्येक के तीन नक्षत्रों का दल सूर्य, मंगल या शनि से प्रभावित होता है तो उन सभी नक्षत्रों से प्रभावित देश विपत्तियों में फँसते हैं । और देखिए मार्कण्डेय पुराण ( ५८।१०-५४) । विष्णुधर्मोत्तर० (१८९११-१३), योगयात्रा (९।१३-१८) एवं पराशर ( अद्भुतसागर, पृ० २७१-२७४ में उद्धृत) द्वारा उपर्युक्त नौ नक्षत्रों से उपाहत ( प्रभावित ) फलों को दूर करने के लिए शान्ति कृत्यों की व्यवस्था बतलायी गयी है ।
यह ध्यान में रखना चाहिए कि फलित ज्योतिष में १२ राशियों एवं १२ भावों (स्थानों या घरों) में कर्म नाम १०वें भाव को दिया गया है और मृत्यु ( विनाश ) ८वें भाव को ।
महाभारत एवं रामायण में कतिपय ऐसे कथन हैं जहाँ किन्हीं नक्षत्रों के सम्बन्ध में ग्रह सामान्यतया लोगों पर आपत्ति ढाते, सेनाओं एवं व्यक्तियों को कष्ट में डालते कहे गये हैं । यथा, जब राम एवं रावण में प्रचण्ड युद्ध चल रहा था और रावण का पक्ष प्रबल पड़ रहा था तो रामायण ( युद्धकाण्ड १०३ ३० एवं ३१ ) में आया है'रोहिणी, जिसके देवता प्रजापति हैं और जो चन्द्र की प्रिया है, बुध द्वारा आच्छादित है अतः इससे लोगों का अशुभ है।' इसी प्रकार यह आया है—'आकाश में विशाखा नक्षत्र, जिसके देवता इन्द्र एवं अग्नि हैं और जो कोसलों का नक्षत्र है, मंगल द्वारा घिरा हुआ है।"" महाभारत में ग्रहों, नक्षत्रों एवं तिथियों की स्थितियों के विषय में बहुत अधिक कथन हैं, जिन्हें सुलझाना असम्भव सा है । देखिए इस महाग्रन्थ का खण्ड ३ । यहाँ हम शकुनों एवं भविष्यवाणियों पर ही लिख रहे हैं। भीष्मपर्व ( ३१२, १३, १६ एवं १ में हम पढ़ते हैं, 'चित्रा नक्षत्र का अतिक्रमण करके एक श्वेतग्रह अवस्थित है; इसमें कुरुओं का नाश ही कोई देखता है; पुष्य नक्षत्र का अतिक्रमण करके घूमकेतु खड़ा है; यह घोर ( भयंकर ) महान् ग्रह दोनों सेनाओं का अशिव करेगा। एक श्वेत प्रज्वलित ग्रह, जो धूम छोड़ता
१९. प्राजापत्यं च नक्षत्रं रोहिणीं शशिनः प्रियाम् । समाक्रम्य बुवस्तख्यौ प्रजानामशुभावहः ॥ कोसलानां च नक्षत्रं व्यक्त-मिन्द्राग्निदेवतम् । आक्रम्यांगारकस्तस्थौ विशाखामपि चाम्बरे । रामायण ( युद्धकाण्ड १०३ । ३० एवं ३३) । बालकाण्ड (५।५-६) में आया है कि कोसल देश सरयूतीर पर स्थित है, अयोध्या इसकी राजधानी है। रघुवंश (४।७०) में राम के पूर्वज रघु कोसलेश्वर कहे गये हैं। बृहत्संहिता ( १४१८ - १०) के अनुसार कोसल उत्तरपूर्व में प्रथम देश है, और उसके नक्षत्र हैं आश्लेषा, मघा एवं पूर्वा ।
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