________________
२५८
पर्नशास्त्र का इतिहास (पृ. ९) पढ़ें, जहाँ सार्टन महोदय ने पाश्चात्य लेखकों की अक्षम्य भूलों की ओर संकेत किया है, यथा मिस्र के वैज्ञानिक प्रयासों, मैसोपोटामिया आदि अन्य देशों की वैज्ञानिक उपलब्धियों पर पाश्चात्य लेखकों का ध्यान नहीं गया है। वे बचपने के साथ यही कहते हैं कि विज्ञान का आरम्भ यूनान से हुआ, और वे यूनानी अन्धविश्वासों को छिपाने का प्रयत्न करते हैं। १९वीं एवं २०वीं शताब्दियों के लेखकों के लिए यह उचित नहीं था कि वे किसी देश के लोगों की निन्दा करके उसे नीचे रख दें और किसी देश को आकाश में उछाल दें। उन्हें प्रमाणयुक्त, संतुलित, पक्षपातरहित होकर, विश्व के प्राचीन लोगों की उपलब्धियों पर सचेत होकर निर्णय देना चाहिए था।
वैदिक काल की प्राचीनता के विषय में विभिन्न मत हैं। जैकोबी, दीक्षित, तिलक आदि ने इसे ई० पू० ४००० या इससे भी अधिक माना है। विन्टरनित्ज़ ने ई० पू० २५००, मैक्सम्यूलर तथा उनके अनुसरणकर्ता पाश्चात्य विद्वानों ने वैदिक साहित्य को ई० पू० १५०० से ई० पू० ८०० के बीच रखा है। यदि हम अन्तिम मत भी स्वीकार कर लें तो यह प्रकट होता है कि वैदिक साहित्य में ज्योतिष-सम्बन्धी विषयों में पर्याप्त उन्नति हो चुकी थी, जो यूनान से किसी प्रकार भी प्राप्त नहीं की जा सकती थी। यूनान का कोई ऐसा साहित्य नहीं है जो निश्चितता के साथ ई० पू० ९०० या ८०० के पूर्व रखा जा सके। यूनान में होमर की कविताएँ एवं हेसिओड के ग्रन्थ अत्यन्त प्राचीन यूनानी साहित्य हैं। होमर में सूर्य, चन्द्र, प्रातः एवं सायं, तारा, प्लेइआडस (कृत्तिका), ह्याडेस, ओराइन, ग्रेट बियर, सिरियस (ओराइन का कुत्ता), बूटेस का उल्लेख है, जिन्हें हैसिओड ने भी उल्लिखित किया है। हेसिओड का कथन है कि जाड़े के ६० दिनों के उपरान्त वसन्त का आगमन हुआ, किन्तु उसमें विषुव दिनों का उल्लेख नहीं है। इस बात से स्पष्ट है कि वैदिक ज्योतिःशास्त्र इन दो यूनानी लेखकों से कई शताब्दियों पूर्व (यदि हजारों वर्ष पूर्व नहीं) इनसे कई गुना विकसित था।" भारतीयों एवं चीनियों के अतिरिक्त अति प्राचीन लोग हैं मिस्री, बेबिलोनी, हिट्टाइट एवं चाल्डियन लोग। मिस्र के विषय में कैम्ब्रिज ऐंश्येण्ट हिस्ट्री (जिल्द २, पृ० २१८) में आया है कि वहाँ के लोग गणित का उपयोग ज्योतिःशास्त्र में नहीं के बराबर करते थे। हिट्टाइटों एवं चाल्डियनों में कोई ऐसी बात नहीं थी और न किसी पाश्चात्य लेखक ने ऐसा कहा ही है कि भारतीयों को उनसे कुछ प्राप्त हआ था। ई०पू०८०० के करीब भी होमर एवं हेसिओड का अल्प था। हिप्पार्कस, जो प्राचीन काल का सबसे बड़ा ज्योतिःशास्त्रज्ञ कहा गया है, और । लगभग ई० पू० १३० में पूरा किया, मेसोपोटेमिया में किये गये ई० पू० ७४७ ई० के निरीक्षणों की जानकारी रखता था। टाल्मी ने लगभग १५० ई० में लिखा और उसका ग्रन्थ एल्मागेस्ट हिप्पार्कस द्वारा किये गये निरीक्षणों पर आधारित था और टाल्मी के पूर्वजों के सारे कार्य भी हिप्पार्कस पर ही आधारित थे,जो टाल्मी के स्पष्ट कार्यों के समक्ष ठहर न सके और या तो उनका पठन-पाठन बन्द हो गया या वे नष्ट हो गये। फलित ज्योतिष पर यूनानी प्रभाव के बारे में आगे लिखा जायगा. किन्त थोडे-से शब्द भारतीय सिद्धान्तों एवं पश्चात्कालीन ग्रन्थों के विषय में लिख देना आवश्यक है।
पहली बात यह है कि सिद्धान्त-सम्बन्धी भारतीय ग्रन्थ यह नहीं स्वीकार करते कि भारतीय ज्योतिःशास्त्र का आधार यवन-ज्ञान था और न ज्योतिःशास्त्र के ग्रन्थों में उतनी संख्या में यूनानी मूल
११. देखिए 'ग्रीक ऐस्ट्रानॉमी' (टी० एल० हीथ, १९३२), भूमिका पृ० ११-१२ एवं सर नार्मन लाकीएर लिखित 'डान आव एस्ट्रानॉमी (१८९४), पृ० १३३, जहाँ यह उल्लिखित है कि जाब की पुस्तक एवं होमर तमा हेसिआड में केवल थोड़े से तारों का ज्ञान पाया जाता है।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org