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अध्याय १५ काल की इकाइयाँ
अब हम 'युग' से पूर्ववर्ती 'मुहूर्त' तक की काल-इकाइयों का उल्लेख करेंगे। 'मन्वन्तर', 'कल्प' एवं 'प्रलय' पर चर्चा आगे होगी।
ऋग्वेद में 'युग' शब्द कम-से-कम ३३ बार विभिन्न अर्थों में आया है। इस विषय में देखिए इस महाग्रन्थ का खण्ड ३। दो अर्थ स्पष्टतया उभर उठते हैं-अल्पावधि एवं दीर्घावधि। ऋ० (१११५८।६) में आया है-'ममता के पुत्र दीर्घतमा दस युगों में बूढ़े हुए, वे ब्रह्मा, बड़े याजक और अपने लक्ष्य की ओर बहने वाली नदियों (जलों) के नेता बने।" यहाँ 'युग' दस वर्ष से अधिक अवधि का द्योतक नहीं हो सकता, सम्भवतः पाँच वर्षों की अवधि का द्योतक है। ऋ० (३।२६।३) में आया है-'अपनी माता के पास हिनहिनाते हुए अश्व के समान वैश्वानर (अग्नि) प्रत्येक युग (प्रति दिन, सायण) में कुशिकों द्वारा प्रज्वलित किया जाता है।' वेदांगज्योतिष (श्लोक १ एवं ५) में युग पांच वर्षों का द्योतक है। अतएव हम ऋग्वेद के युग' को पाँच वर्ष की अवधि के रूप में ले सकते हैं। ऋ० (३।५५।१८) में पांच वर्ष की इकाइयों की (जिनमें प्रत्येक ६ ऋतुओं में विभाजित है) और गूढ़ संकेत है। ऋग्वेद में संवत्सर का अर्थ एक वर्ष है (१।११०।४; १।१४०।२; १।१६१।१३; १।१६४।४४; ७।१०३। १, ७, ९, १०।१९०।२)। ऋ० (१०।६२।२) में परिवत्सर' शब्द आया है। 'संवत्सर' एवं 'परिवत्सर' शब्द संहिताओं में प्रयुक्त पाँच वर्षों वाले युग के पाँच नामों में आये हुए दो नाम हैं। जिस प्रकार ऋग्वेद में 'युग' शब्द कई अर्थों में प्रयुक्त हुआ है, उसी प्रकार यह सम्भव है कि 'संवत्सर' एवं परिवत्सर' शब्द केवल एक वर्ष के अर्थ में या पाँच वर्षों के वृत्त के अर्थ में प्रयुक्त हुए हों। त० सं० (५।५।७।१-३) में संवत्सर के साथ रुद्र को नमस्कार किया गया है, दाहिने, पीछे, उत्तर एवं ऊपर क्रम से परिवत्सर, इदावत्सर, इदुवत्सर एवं वत्सर के साथ रुद्र को नमस्कार अर्पित किया गया है। वाज० सं० (२७३४५) ने इन पाँचों के नाम लिये हैं, केवल इदुवत्सर के स्थान पर इदावत्सर का प्रयोग हुआ है। इसी प्रकार अथर्ववेद (६।५५।२) में इदावत्सर, परिवत्सर एवं संवत्सर को नमस्कार किया गया है। तै० ब्रा० (१।४।१०।१) में अग्नि, आदित्य, चन्द्रमा एवं वायु क्रम से संवत्सर, परिसंवत्सर, इदावत्सर एवं अनुवत्सर कहे गये हैं; वहाँ वर्षों के चार नामों का चार चातुर्मास्यों से सम्बन्ध जोड़ा गया है, यथा वैश्वदेव, वरुणप्रघास, साकमेध एवं शुनासीरीय। इससे प्रकट है कि संहिताओं में भी नाम (सामान्यतः पाँच) एक निर्दिष्ट
१. दीर्घतमा मामतेयो जुजुर्वान्दशमे युगे। अपामर्थं यतीनां ब्रह्मा भवति सारथिः॥ ऋ० (१११५८०६); अश्वो न क्रन्दञ्जनिभिः समिध्यते वैश्वानरः कुशिकेभियुगे युगे। ऋ० (३॥२६॥३); सायण ने 'युगे युगे' को 'प्रतिदिनम् माना है। देखिए बृहदेवता (४।२४) जहाँ दीर्घतमा की कथा आयो है।
२. पञ्चसंवत्सरमयं युगाध्यक्ष प्रजापतिम्। वेदांगज्योतिष, श्लोक १; माघशुक्लप्रपन्नस्य पौषकृष्णसमापिनः। युगस्य पञ्चवर्षस्य कालज्ञानं प्रचक्षते ॥ वही, श्लोक ५।
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