SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 262
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ गणित और ज्योतिव की भारतीय मौलिकता २४५ व्यवहारगत बातों की कतिपय समानताओं से यह नहीं समझना चाहिए कि एक ने दूसरे से कुछ उधार लिया है। मानवमन सब स्थानों पर समान है, इसकी आवश्यकताओं, वातावरण आदि में बहुत कुछ समानताएँ हैं, ऐसा नहीं समझना चाहिए कि किसी स्थान - विशेष के लोग ही बौद्धिक शक्तियों में एकाधिकार रखते रहे हैं । १९वीं शताब्दी में जिन लोगों ने भारतीय साहित्य एवं विषयों पर लिखा है उनमें अधिकांश लोग यूनान एवं रोम के साहित्य से शिक्षित थे और वे यूनानी दर्शन, गणित, कलाओं एवं मिस्त्री सभ्यता से अभिभूत थे। जब बेबिलोन एवं मध्य-पूर्व एशिया के भारतीय आलेखन सामने आने लगे तो लोगों की आँखें खुलीं। निम्नोक्त विद्वानों ने विश्व की आँखें खोल दीं - - सर लियोनार्ड वुली, ग्लैनविले, सर टामस हीथ, सार्टन आदि ने यह सिद्ध कर दिया कि यूनानियों ने सुमेर के लोगों, मिस्त्रियों, बेबिलोन के लोगों से बहुत कुछ सीखा। यह कहना बचपन सिद्ध हो गया कि यूनान से ही ज्ञान विज्ञान का श्रीगणेश हुआ था। बेबिलोन के लोग यूनानियों से गणित के विषय में बहुत आगे थे। टाल्मी ने बेबिलोन से बहुत कुछ प्राप्त किया था । इंग्लैण्ड, फ्रांस, जर्मनी, रूस एवं अमेरिका, जो आज विज्ञान के क्षेत्र में बहुत आगे हैं, टॉल्मी को ही गणित - गुरु मानते हैं, किन्तु अब यह सिद्ध हो चुका है कि उन्होंने अरब से दशमलव का ज्ञान प्राप्त किया । अरब वालों का गणितगुरु भारत था । यहाँ इस विषय में अधिक नहीं लिखा जायगा । ज्योतिःशास्त्र एवं फलित ज्योतिष के सम्बन्ध में कुछ मत-मतान्तर हैं। आकाश के ग्रह, नक्षत्र, सूर्य, चन्द्र, उनके ग्रहण, घूमकेतु, तारों का टूटना आदि ऐसी विस्मयकारी वस्तुएँ हैं जिन्हें देखकर लोगों के मन में भय, कौतूहल एवं जिज्ञासा की भावनाएँ उत्पन्न होती रही होंगी । कालान्तर में ज्योतिःशास्त्र एवं फलित ज्योतिष की उत्पत्ति हुई। प्राचीन काल में दोनों शब्द एक ही अर्थ रखते थे। कुछ लोगों के मत से ज्योतिःशास्त्र फलित ज्योतिष पर आधारित है। किन्तु प्रो० न्यूगेबोर एवं श्री पीटर डोएग इस मत को नहीं मानते। किन्तु लगता है, दोनों प्राचीन हैं और वे एक-दूसरे से प्रभावित होते रहे हैं। आजकल के बहुत से लोग फलित ज्योतिष की बातों को गुलगपाड़ा ठहराते हैं । किन्तु वास्तव में ऐसी बात नहीं है । क्या हम ज्वार-भाटों, ग्रहणों, अन्धड़-तूफानों, वर्षा आदि के विषय में भविष्यवाणियाँ नहीं करते ? आकाश के ग्रह-नक्षत्र हमारे जीवन को अवश्य प्रभावित करते हैं। किन्तु वास्तविक बात यह नहीं है । हमें यह देखना है कि क्या ज्योतिषाचार्यों एवं फलित ज्योतिष के जानकारों ने ग्रहों, नक्षत्रों आदि के विषय में यथातथ्य नियमों एवं विधियों का निर्माण करके यथातथ्य निष्कर्ष नहीं निकाले हैं ? क्या उनके ज्ञान से हमारे अनुदिन के जीवन पर प्रकाश नहीं पड़ता है ? ज्योतिःशास्त्र एवं फलित ज्योतिष सम्बन्धी संस्कृत-साहित्य, कुछ एक-दूसरे से मिल जाते हुए भी, तीन कालावधियों में बाँटा जा सकता है। प्रथम युग है वैदिक संहिताओं एवं ब्राह्मणों का, जो अति आदिकालीन युगों से लगभग ईसा पूर्व ८०० के मध्य का है । दूसरा युग वह है जिसमें वेदांगज्योतिष, श्रौत, गृह्य एवं धर्म सूत्र, मनु, याज्ञवल्क्य, गर्ग के ग्रन्थों तथा सूर्यप्रज्ञप्ति जैसे जैन ग्रन्थों का निर्माण हुआ और जो तीसरी शताब्दी तक चलता रहा । तीसरा युग ईसा की प्रथम शताब्दी से प्रारम्भ हुआ, जिसमें सिद्धान्त नामक ग्रन्थ प्रणीत हुए और जिसमें आर्यभट (४७६ ई० में उत्पन्न), वराहमिहिर ( ४७५ ई० से ५५० ई० तक ), ब्रह्मगुप्त ( सन् ५९८ ई० में उत्पन्न ) आदि ग्रन्थकार थे। यहाँ पर उन ग्रन्थों की ओर कुछ संकेत किया जायगा जो विस्तार से अध्ययन के उपरान्त भारतीय ज्योतिःशास्त्र एवं दैवज्ञविद्या ( फलित ज्योतिष) पर प्रभूत प्रकाश डालते हैं। सन् १८९६ ई० में प्रकाशित एवं शंकर बालकृष्ण दीक्षित द्वारा लिखित तथा सन् १९३१ ई० में उनके पुत्र द्वारा पुनः सम्पादित मराठी ग्रन्थ 'हिन्दू ज्योतिःशास्त्र का इतिहास' महत्त्वपूर्ण है। दीक्षित ने यह प्रतिपादित किया है कि भारतीय ज्योतिः Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002792
Book TitleDharmshastra ka Itihas Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPandurang V Kane
PublisherHindi Bhavan Lakhnou
Publication Year1971
Total Pages526
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size18 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy