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________________ वत-सूची २५७ जल भरा जाता है; जागर से पूजा; कर्ता को वन या युद्ध में भय नहीं मिलता, उसे धन एवं दीर्घायु की प्राप्ति होती है ; कृत्यकल्पतरु (व्रत० ३९२-३९३); हेमाद्रि (व्रत० २, ३७६-३७७, नृसिंहपुराण से उद्धरण)। हरितालिकावत : देखिए गत अध्याय ८। हरितिथि : द्वादशी, स्मृतिकौस्तुभ (२९)। हरिप्रबोधोत्सव : कार्तिक में विष्ण के जागरण का उत्सव, देखिए गत अध्याय ५। हरिवासर : हरि का दिन। इस विषय में विभिन्न मत हैं; वर्षक्रियाकौमुदी (१४) का कथन है कि एकादशी हरि का दिन है न कि द्वादशी। गरुडपुराण (१११२७।१२) एवं नारदपुराण (२।२४।६ एवं ९) ने एकादशी को हरिवासर कहा है। कृत्यसारसमुच्चय (४३) ने मत्स्यपुराण को उद्धृत करते हुए कहा है कि यदि आषाढ़ शुक्ल द्वादशी बुधवार को पड़ती है और वह अनुराधा-नक्षत्र में रहती है, यदि भाद्रपद शुक्ल द्वादशी बुधवार को पड़ती है और उस समय श्रवण नक्षत्र रहता है तथा यदि कार्तिक शुक्ल द्वादशी बुधवार को पड़ती है और उस समय रेवती नक्षत्र रहता है तो उसे हरिवासर कहा जाता है। स्मृतिकौस्तुभ (२९) के अनुसार द्वादशी हरितिथि है। हरियत : (१) पूर्णिमा एवं अमावास्या पर एकभक्त-विधि; इस व्रत के सम्पादन' से नरक में जाना नहीं होता; इन तिथियों पर पुण्याहवाचन एवं 'जय' जैसे शब्दों के साथ हरि-पूजा; एक ब्राह्मण को खिलाना, उसे प्रणाम करना तथा अन्य ब्राह्मणों, अंधों, असहायों एवं दलितों को भोज देना; हेमाद्रि (व्रत० २, ३७३, नरसिंहपुराण से उद्धरण); कृत्यकल्पतरु (व्रत० ३८९-३९०); (२) द्वादशी को उपवास करने से स्वर्ग की प्राप्ति होती है। हेमाद्रि ( व्रत० १,११७२, वराहपुराण से उद्धरण)। हरिशयन : आषाढ़ में विष्णु का शयन' ; देखिए गत अध्याय ५। हलषष्ठी : भाद्रपद कृष्ण ६ को इस नाम से पुकारा जाता है ; निर्णयसिन्धु (१२३)। हविष्य : कुछ व्रतों में यज्ञिय द्रव्य ; कृत्यरत्नाकर (४००); तिथितत्त्व (१०९); निर्णयसिन्धु (१०६)। हस्तगौरीव्रत : भाद्रपद शुक्ल ३ पर; धन-धान्य से पूर्ण राज्य की प्राप्ति के लिए कृष्ण द्वारा कुन्ती को सुनाया गया वत'; बताक (पाण्डुलिपि ५० बी-५२ बी), अहल्याकामधेनु (२८० बी); गौरी, हर एवं हेरम्ब (गणेश) का ध्यान ; १३ वर्षों तकः; १४वें वर्ष में उद्यापन। हिमपूजा : पुष्पों एवं दूध के नैवेद्य से चन्द्र, विष्णु के वाम नेत्र की पूर्णिमा पर पूजा; गायों को नमक देना; माता, बहिन, पुत्री को नये वस्त्रों से सम्मानित करना; यदि हिमालय के पास हों तो पितरों को मि से मिश्रित मधु, तिल एवं घी देना चाहिए और जहाँ घी न हो 'हिम-हिम' का उच्चारण करना चाहिए तथा ब्राह्मणों को घृतपूर्ण माग का भोजन देना चाहिए; गीतों एवं नृत्य के साथ उत्सव तथा श्यामा-देवी की पूजा; सुरा पीने वालों को ताजी सुरा दी जाती है ; कृत्यरत्नाकर (४७१-४७२, ब्रह्मपुराण से उद्धरण)। हृदयविधि : देखिए कृत्यकल्पतरु (व्रत० १९-२०); हेमाद्रि (व्रत० २, ५२६); और देखिए 'आदित्यवार' के अन्तर्गत। होम-विधि : गृह्यसूत्रों में होम-विधि दी हुई है; हेमाद्रि (व्रत० १, ३०९-३१०)। होलिका : देखिए गत अध्याय १२। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002792
Book TitleDharmshastra ka Itihas Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPandurang V Kane
PublisherHindi Bhavan Lakhnou
Publication Year1971
Total Pages526
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size18 MB
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