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धर्मशास्त्र का इतिहास
आदि का अर्पण; व्रतार्क ( पाण्डुलिपि ५६ ए - ६० बी ) ; व्रतराज ( ११४-१२०, भविष्योत्तरपुराण से उद्धरण) ; इसका सम्पादन चतुर्थी से युक्त तृतीया को हो सकता है किन्तु द्वितीया से युक्त तृतीया को नहीं ।
सौभाग्यावाप्तिव्रत: यह मासव्रत है; देवता कृष्ण; माघ पूर्णिमा ( पूर्णिमान्त गणना के अनुसार ) के उपरान्त प्रथम तिथि पर कृष्ण- प्रतिमा या वस्त्र पर खचित कृष्ण चित्र की पूजा; प्रियंगु से सुगंधित किये गये जल से कर्ता द्वारा स्नान करना; प्रियंगुयुक्त चरु (भात) का अर्पण एवं उसी से होम; एक मास तक; फाल्गुन पूर्णिमा पर तीन दिनों के उपवास के उपरान्त कुंकुम से रँगे दो वस्त्रों, मधुपूर्ण पात्र आदि का दान ; इससे सौभाग्य एवं सौन्दर्य की प्राप्ति हेमाद्रि ( व्रत०२, ७९९, विष्णुधर्मोत्तरपुराण ३।२०४।१-५ से उद्धरण) ।
सौभाग्याष्टक : मत्स्यपुराण ( ६०1८-९ ) के अनुसार आठ सौभाग्य वस्तुएँ ये हैं- गन्ना, पारा, निष्पाव (घी एवं दूध से प्रयुक्त गेहूँ का पदार्थ ), दही (गाय के दूध का ), जीरा, धनियाँ, कुसुंभ एवं लवण हेमाद्रि ( व्रत ० १, ४८-४९) ; कृत्यरत्नाकर ( ११५ ' ) ; व्रतराज (१६); और देखिए पद्मपुराण (५।२४।२५१ ) ; भविष्योत्तरपुराण (2413)1
सौम्य - विधि : जब रविवार को रोहिणी नक्षत्र हो तो उसे सौम्य नाम से पुकारा जाता है; इस दिन पर स्नान, दान, जप, होम, पितरों एवं देवों के तर्पण से अक्षय पुण्य की प्राप्ति होती है; नक्त-विधि एवं लाल कमलों, लाल चन्दन लेप, सुगन्ध धूप एवं पायस (नैवेद्य के रूप में ) से सूर्य पूजा ; पापों से मुक्तिं ; कृत्यकल्पतरु ( व्रत० १३-१४ ) ; हेमाद्रि ( व्रत०२, ५२४ ) ।
सौम्यव्रत : हेमन्त एवं शिशिर ऋतुओं के पुष्पों का त्याग, फाल्गुन पूर्णिमा पर 'शिव एवं केशव प्रसन्न हों' के साथ अपराह्न में सोने के तीन पुष्पों का दान मत्स्यपुराण (१०१।१३-१४ ) ; कृत्यकल्पतरु ( व्रत० ४४१ ) । सौर त्रिविक्रम व्रत : यह मास व्रत है; देवता सूर्य; तीन मासों या तीन वर्षों तक; कार्तिक में जगन्नाथ या सूर्य की पूजा, एकभक्त तथा एक ब्राह्मण को रात्रिकाल का भोजन -दान; यही विधि मार्गशीर्ष एवं पौष में सूर्य की पूजा विभाकर एवं दिवाकर के रूप में; युवावस्था एवं मध्यमावस्था में किये गये पाप तथा यहाँ तक कि महापाप भी कट जाते हैं; इसे 'त्रिविक्रम' इसलिए कहा जाता है कि सूर्य के तीन नाम व्यक्ति को तीन मासों या तीन वर्षों में मुक्ति देते हैं; हेमाद्रि ( व्रत० २, ८५६, भविष्योत्तरपुराण से उद्धरण) ।
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सौरनक्तव्रत : यह वारव्रत है; देवता सूर्य हस्त नक्षत्र के साथ रविवार को किया जाता है; ब्राह्मणों का सम्मान ; सभी रोगों से मुक्ति हेमाद्रि ( व्रत० २, ५२१, नृसिंहपुराण से उद्धरण) । सौरव्रत : मत्स्यपुराण (१०११६३, एक षष्टिव्रत ); कृत्यकल्पतरु ( व्रत० ४४८ ) ; हेमाद्रि ( व्रत० १, ७८७, पद्मपुराण से उद्धरण); सप्तमी को उपवास; देवता सूर्य; एक वर्ष तक अन्त में सोने के कमल, गायों का कुछ सोने एवं भोजनपूर्ण घट के साथ दान; इससे सूर्यलोक की प्राप्ति होती है।
स्कन्दषष्ठी : आषाढ़ शुक्ल की षष्ठी को इस नाम से कहा जाता है; एक दिन पूर्व से उपवास करके षष्ठी को कुमार अर्थात् कार्तिकेय की पूजा; निर्णयामृत ( ४९ ) ; पुरुषार्थचिन्तामणि ( १०१ ) ; स्मृतिकौस्तुभ ( १३८ ) । निर्णयामृत में इतना और आया है कि भाद्रपद ६ को दक्षिणापथ में कार्तिकेय का दर्शन कर लेने से ब्रह्म-हत्या से गम्भीर पापों-जैसे मुक्ति मिल जाती है; और देखिए कृत्यरत्नाकर ( २७५ - २७७ ) । तमिल प्रदेश में स्कन्दषष्ठी महत्वपूर्ण है और इसका सम्पादन मन्दिरों या किन्हीं भवनों में होता है; हेमाद्रि (काल) ६२२); कृत्यरत्नाकर (११९ ) ने ब्रह्मपुराण से उद्धरण देकर बताया है कि स्कन्द की उत्पत्ति अमावास्या को
से हुई थी, वे चैत्र शुक्ल ६ को प्रत्यक्ष हुए थे, देवों द्वारा सेनानायक बनाये गये थे तथा तारकासुर का वध किया था, अतः उनकी पूजा दीपों, वस्त्रों, अलंकरण, मुर्गों (खिलौनों के रूप में) आदि से की जानी चाहिए, अथवा
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