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वत-सूची
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सौगन्ध्य-व्रत : यह ऋतु-व्रत है; देवता शिव एवं केशव ; हेमन्त एवं शिशिर में पुष्पों का तथा फाल्गुन पूर्णिमा को तीन प्रकार के सुगन्धित पत्रों का त्याग ; 'शिव एवं केशव प्रसन्न हों के साथ कुछ सोने का दान ; हेमाद्रि (व्रत० २, ८६०)।
सौभाग्यतृतीयाव्रत : (१) फाल्गुन शुक्ल की तृतीया पर नक्त-विधि; लक्ष्मी के साथ हरि या उमा के साथ शिव (क्योंकि दोनों शास्त्रों एवं पुराणों में एक ही कहे गये हैं) की पूजा; मधु, घी एवं तिल से होम ; एक वर्ष तक तीन अवधियों में ; फाल्गुन से ज्येष्ठ के मासों तक बिना नमक या घी के गेहूँ से बने भोजन का प्रयोग, भूमि-शयन ; कार्तिक से माघ तक जौ से बने भोजन का प्रयोग; माघ शुक्ल ३ पर रुद्र एवं गौरी या हरि एवं श्री की स्वर्ण-प्रतिमा का निर्माण और उसका मधु,घी, तिल-तैल, गड़, नमक तथा गोदुग्ध युक्त ६ पात्रों के साथ दान; कर्ता सात जन्मों तक भाग्यवान् एवं सुन्दर बन जाता है; कृत्यकल्पतरु (व्रत, ७५-७७, वराहपुराण ५८।१-१९ से उद्धरण); हेमाद्रि (बत० १, ४७९-४८०); कृत्यरत्नाकर (५२३-५२४)।
सौभाग्यवत : (१) कार्तिक पूर्णिमा पर १६ दलों वाले चित्रित कमल के बीजकोष पर स्थापित चन्द्रप्रतिमा की पूजा; कमल के किंजल्कों (अंशुओं) पर २८ नक्षत्रों (अभिजित् को लेकर) की पूजा, पत्तियों पर तिथियों एवं उनके स्वामियों की पूजा; व्रत के अन्त में दो वस्त्रों का दान; दस दिन उपवास या नक्त; इस व्रत से कल्याण, सौन्दर्य एवं संभोग-आनन्द की प्राप्ति होती है; हेमाद्रि (व्रत० २, २३५-२३६, विष्णुधर्मोत्तरपुराण से उद्धरण); (२) एक वर्ष तक फाल्गुन एवं आगे की तृतीया पर नमक का त्याग ; अन्त में एक घर एवं पलंग का सारी सामग्रियों के साथ दान तथा पार्वती प्रसन्न हों' के साथ एक सपत्नीक ब्राह्मण का सम्मान; कर्ता गौरीलोक वासी हो जाता है; तिथिव्रत ; देवता गौरी; कृत्यकल्पतरु (व्रत० ४४१, मत्स्यपुराण १०१०१५-१६); हेमाद्रि (व्रत० १, ४८३, गरुडपुराण से उद्धरण); वर्षक्रियाकौमुदी (२९-३०, यहाँ 'लवणम्' के स्थान पर 'शयनम्' आया है); अग्निपुराण (१७८१२४-२५) में भी यही श्लोक है; (३) पंचमी पर चन्द्र का पूजक दीर्घायु, धन एवं यश पाता है ; हेमाद्रि (व्रत० १, ५७४, विष्णुधर्मोत्तरपुराण से उद्धरण)।
सौभाग्यशयन-व्रत : चैत्र शुक्ल ३ पर पंचगव्य एवं सुगंधित जल से गौरी एवं शिव की प्रतिमाओं का स्मान (इसी दिन गौरी का जन्म हुआ था) ; देवी एवं शिव के आपाद मस्तक एवं केश को प्रणाम ; प्रतिमाओं के सपक्ष सौभाग्याष्टक'; दूसरे दिन प्रातः स्वर्णिम प्रतिमाओं का दान; एक वर्ष तक प्रत्येक तृतीया पर यही विधि; चैत्र से आगे प्रत्येक मास में विभिन्न पदार्थों का सेवन, विभिन्न मन्त्रों का प्रयोग, देवी के विभिन्न नामों का उपयोग, विभिन्न पुष्पों का प्रयोग ; एक वर्ष तक एक फल का त्याग ; अन्त में सामग्री के साथ एक पलंग, एक स्वणिम गाय एवं बैल का दान; सौभाग्य, स्वास्थ्य, सौन्दर्य, दीर्घायु की प्राप्ति; मत्स्यपुराण (६०।१-४९); कृत्यकल्पतरु (व्रत० ५६-६०), मत्स्यपुराण ६०१४-४८ का उद्धरण); हेमाद्रि (व्रत० १,४४४-४४९, मत्स्यपुराण ६०।१४-४८ का उद्धरण); ये श्लोक पद्मपुराण (५।२४।२२२-२७८) एवं भविष्योत्तरपुराण (२५।१-४२) मे भी पाये जाते हैं।
सौभाग्यसंक्रान्ति : यह संक्रान्तिवत है; व्यतीपात वाले अयन या विषव दिन या संक्रान्ति दिन पर; एक भवत' ; सूर्य-पूजा; दो वस्त्रों एवं सौभाग्याष्टक का किसी सपत्नीक ब्राह्मण को दान ; एक वर्ष तक ; ब्रह्म-भोज; लवण-पर्वत, स्वर्णिम कमल एवं स्वर्णिम सूर्य-प्रतिमा का दान ; हेमाद्रि (बत० २, ७३५-७३६, स्कन्दपुराण रे उद्धरण)।
सौभाग्यसुन्दरी : मार्गशीर्ष या माघ कृष्ण की तृतीया पर; तिथिव्रत ; देवता उमा; उस दिन उपवास एक वर्ष तक प्रत्येक मास में उमा के विभिन्न माम; पुष्प, फल, नैवेद्य तथा कर्ता द्वारा खाये जाने वाले सामा
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