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________________ २३२ धर्मशास्त्र का इतिहास कृत्यदीपक में सोमवारव्रत एवं उसके उद्यापन का विस्तृत ब्यौरा उपस्थित किया गया है। अब भी श्रावण के सोमवार विशेष रूप से पवित्र माने जाते हैं। सोमवत : (१) जब किसी पक्ष में अष्टमी सोमवार को पड़े तो शिव-पूजा होनी चाहिए, शिव-प्रतिमा का दायाँ भाग शिव का तथा वायाँ भाग हरि एवं चन्द्र का होता है; पंचामृत से लिंगस्नान, दक्षिण भाग में चन्दन एवं कर्पूर का प्रयोग तथा वाम भाग में कुंकुम, अगुरु, उशीर, नीराजन का देव एवं देवी के २५ दीपों के साथ प्रयोग; सपत्नीक ब्राह्मणों को भोज; एक या पाँच वर्षों के लिए; कृत्यकल्पतरु (व्रत० २६९-२७१); हेमाद्रि (व्रत० १, ८२९-८३१, कालिकापुराण से उद्धरण); (२) वैशाख-पूर्णिमा पर एक ताम्रपात्र में जल भरकर उसमें शंकरप्रतिमा रखना और उसे वस्त्र से ढक देना तथा गन्ध एवं पुष्पों से पूजना तथा 'लोकस्वामी महादेव, जो चन्द्र का रूप धारण करते हैं, मुझ पर प्रसन्न हों' के साथ उसका दान ; कृत्यकल्पतरु (व्रत० ३५३); हेमाद्रि (व्रत० २, १७४-१७५); कृत्यरत्नाकर (१६६-१६७); सभी ने भविष्यपुराण को उद्धृत किया है; (३) शुक्ल २ को लवणपूर्ण पात्र का दान करना चाहिए; एक वर्ष क; अन्त में गोदान; शिवलोक प्राप्ति ; कृत्यकल्पतरु (व्रत०४५१, मत्स्यपुराण १०१।८१ में ५९वाँ षष्ठित्रत); हेमाद्रि (व्रत० १, ३८९, पद्मपुराण से उद्धरण); (४) जब अष्टमी रोहिणी नक्षत्र में पड़ती है तो इसका सम्पादन ; पंचामृत से शिव-स्नान तथा लिंग या प्रतिमा पर कर्पूर एवं चन्दन-लेप का प्रयोग तथा श्वेत पुष्पों से पूजा; एक घट श्वेत शर्करा के चूर्ण से मिश्रित दूध नैवेद्य के रूप में; जागर; इससे दीर्घ आयु, यश आदि की प्राप्ति ; हेमाद्रि (व्रत० १, ८६३, कालोत्तरपुराण से उद्धरण); (५) माघ शक्ल १४ पर उपवास तथा १५पर लिगको वेदी के साथ घत-यक्त कम्बल से आवत करना, दो काली गायों का दान; जागर तथा संगीत एवं नृत्य; हेमाद्रि (व्रत० २, २३९-२४०, भविष्यपुराण से उद्धरण); (६) मार्गशीर्ष शक्ल के प्रथम सोमवार या चैत्र के या किसी भी सोमवार को, जब कि पूजा करने की प्रेरणा बड़ी उद्दाम हो, शिवपूजा करनी चाहिए। श्वेत पुष्पों (मालती, वृन्द आदि) से शिव-पूजा, चन्दन लेप का प्रतिमा या लिंग पर प्रयोग; नैवेद्य; होम; हेमाद्रि (व्रत० २, ५५८-५६६, स्कन्दपुराण से उद्धरण) ने फलों का वर्णन किया है (७) एक वर्ष तक प्रति सोमवार को ८ ब्राह्मणों को भोज देना चाहिए; अन्त में शिव की एक रजतप्रतिमा का दान; 'तत्पुरुषाय विद्महे०' (मैत्रा० सं० २।९।१, ते० आरण्यक १०।४६) नामक मन्त्र के साथ शिव एवं उमा की पूजा; पद्मपुराण (४।१०८५८२-९०)।। सोमायन-व्रत : एक मास के लिए; सात दिनों तक एक गाय के चारों थनों के दूध पर निर्वाह करना; सात दिनों तक केवल तीन थनों के दूध पर, आगे के सात दिनों तक एक थन के दूध पर तथा तीन दिनों तक उपवास; इससे सभी पाप कट जाते हैं; मिताक्षरा (याज्ञवल्क्यस्मृति ३।३२४, मार्कण्डेयपुराण से उद्धरण)। सोमाष्टमीव्रत : तिथिव्रत ; देवता शिव एवं उमा; सोमवारयुक्त नवमी पर रात्रि में शिव एवं उमा की पूजा; पंचगव्य से प्रेतिमा-स्नान'; वामदेव तथा अन्य नामों से शिव-पूजा; प्रतिमा के दक्षिण भाग में चन्दन एवं कर्पूर का तथा वाम भाग में कुंकुम एवं तुरुष्क (लोबान) का प्रयोग; देवी के सिर पर नीलम तथा शिव के सिर पर मोती रखे जाते हैं और श्वेत एवं लाल पुष्पों से पूजा; सद्योजात नाम के साथ तिल का होम ; हेमाद्रि (व्रत० १, ८३३-८३५, स्कन्दपुराण से उद्धरण); भविष्योत्तरपुराण (५९।१-२३) ने इन्हीं शब्दों में इस व्रत का उल्लेख किया है; वामदेव, सद्योजात, अघोर, तत्पुरुष, ईशान शिव के पाँच मुख कहे जाते हैं; देखिए तै० आ० (९०।४३-४७)। सौख्यत्रत : माघ की अष्टमी या एकादशी या चतुर्दशी पर एकभक्त एवं श्वेत वस्त्रों, चप्पलों (पादुकाओं), कम्बल, छत्र, जल तथा पात्र का अभावग्रस्त व्यक्ति को दान; हेमाद्रि (व्रत० २, ४४०, भविष्यपुराण से उद्धरण)। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002792
Book TitleDharmshastra ka Itihas Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPandurang V Kane
PublisherHindi Bhavan Lakhnou
Publication Year1971
Total Pages526
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size18 MB
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