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व्रत-सूची
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कर नहीं करना चाहिए; सूर्य के रथ पर शूद्र नहीं चढ़ सकता । आषाढ़, कार्तिक एवं माघ की पूर्णिमाएँ इस यात्रा के लिए अत्यन्त पवित्र मानी जाती हैं, इसे रविवार को पड़ने वाली षष्ठी या सप्तमी पर भी किया जा सकता है।
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सूर्यव्रत : (१) पष्ठी पर उपवास तथा सप्तमी पर 'भास्कर प्रसन्न हों' के साथ सूर्य-पूजा; सभी रोगों से मुक्ति, कृत्यकल्पतरु ( व्रत० ३८८-३८९ ) ; ( २ ) माघ में प्रातःकाल स्नान तथा किसी गृहस्थ एवं उसकी पत्नी का पुष्पों, वस्त्रों, आभूषणों एवं भोज से सम्मान; सौभाग्य एवं स्वास्थ्य की प्राप्ति हेमाद्रि ( व्रत० २, ७९४, पद्मपुराण से उद्धरण), कृत्यकल्पतरु ( व्रत० ४४४, मत्स्यपुराण १०११३६-४७ के समान ही ); (३) आश्विन में आरम्भ, जब शुक्ल पक्ष के रविवार को चतुर्दशी हो; तिथिव्रत ; देवता शिव; शिवलिंग के लिए विशिष्ट स्नान, लेप रूप में रोचना का प्रयोग तथा लाल पुष्पों से पूजा ; कपिला गाय के घी एवं दूध से नैवेद्य; किसी शैव ब्राह्मण को दान ; कुंकुम से युक्त भोजन-दान; इससे पुत्रों की उत्पत्ति होती है; हेमाद्रि (व्रत० २, ६४-६५, कालोत्तरपुराण से उद्धरण) ; (४) रविवार को कर्ता और कर्म करता है तथा गुड़ एवं नमक से युक्त रोटियों से सूर्य की पूजा करता है और उस दिन नक्त रखता है; सभी कामनाओं की पूर्ति, सूर्य-लोक की प्राप्ति; हेमाद्रि ( व्रत० १, ७७९-७८०, विष्णुधर्मोत्तरपुराण से उद्धरण); (५) चैत्र शुक्ल ६ एवं ७ पर सूर्य पूजा; श्वेत मिट्टी से एक वेदिका का निर्माण, जिस पर रंगीन चूर्णों से आठ दल वाले एक कमल की आकृति; बीजकोष पर सूर्य - प्रतिमा का स्थापन, पूर्व दिशा से आरम्भ कर आठ दिशाओं में अर्ध देवों, देवियों एवं मुनियों का चित्र खींचना तथा वसन्त से आरम्भ कर सभी ६ ऋतुओं में ऐसे दो को रखना; घी की आहुतियाँ, १०८ बार सूर्य को तथा ८ बार अन्य लोगों को; एक वर्ष तक; अन्त में गोदान एवं रवर्ण-दान, सूर्यलोक की प्राप्ति; यदि १२ वर्षों तक किया जाय तो सायुज्य की प्राप्ति; हेमाद्रि ( व्रत० १, ७७०-७७४, विष्णुधर्मोत्तरपुराण १।१६७।११-१५, १६८1१-३० से उद्धरण); (६) मार्गशीर्ष में ( रविवार को ? ) आरम्भ कर १२ मासों के लिए; लाल चन्दन से किसी ताम्रपत्र पर बीजकोष के साथ १२ दलों वाले कमल का चित्र तथा उस पर सूर्य पूजा ; कतिपय मासों में देवता के विभिन्न नाम ( यथा - मार्गशीर्ष में मित्र, पौष में विष्णु, माघ में वरुण आदि ) ; नैवेद्य तथा कर्ता द्वारा खाये जाने वाला विशिष्ट पदार्थ; विभिन्न पाप मुक्ति एवं कामना(७) पूरे पौष भर नक्त तथा दोनों कृत्यरत्नाकर (४७५-४७६, भविष्य
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पूर्ति हेमाद्रि ( व्रत०२, ५५२-५५७, सौरधर्म से उद्धरण) ; यह वारव्रत है; सप्तमियों पर उपवास, पौष में सूर्य एवं अग्नि की प्रतिदिन तीन बार पूजा; पुराण से उद्धरण) ।
सूर्यषष्ठी : भाद्रपद शुक्ल में १ से ५ तक एकभक्त, ६ को उपवास एवं सूर्य-प्रतिमा की पूजा; एक वर्ष तक ; प्रत्येक मास में आदित्य के विभिन्न नाम; अन्त में विस्तृत उद्यापन; हेमाद्रि ( व्रत० १,६०८- ६१५, भविष्योत्तरपुराण से उद्धरण); निर्णयसिन्धु ( १३४ ) |
सूर्याष्टमी : देखिए ऊपर 'अर्काष्टमी' ।
सोमवती अमावास्या : सोमवार की अमावास्या अति पुनीत होती है; कालविवेक ( ४९२, भविष्यपुराण से); हेमाद्रि (काल, ६४३ ); वर्षक्रियाकौमुदी ( ९ ) ; आज के दिन लोग (विशेषतः नारियाँ) अश्वत्थ वृक्ष के पास जाती हैं, विष्णु-पूजा करती हैं तथा वृक्ष की १०८ बार प्रदक्षिणा करती हैं; व्रतार्क (पाण्डुलिपि, ३५० बी - ३५६ ) ; धर्मसिन्धु (२३) ; व्रतार्क का कथन है कि इसका उल्लेख निबन्धों में नहीं हुआ है, यह मात्र प्रचलन पर आधृत है। सोमवारव्रत : ( बहुवचन में ) ; हेमाद्रि ( व्रत० २, ५५७-५६६, केवल २ का उल्लेख ) ; व्रतार्क ( पाण्डुलिपि ३७९ बी-३८२बी); स्मृतिकौस्तुभ ( १४९ ); वर्षकृत्यदीपक ( ४३७-४४३) । सामान्य नियम यह है -- श्रावण, वैशाख, कार्तिक या मार्गशीर्ष के प्रथम सोमवार पर आरम्भ; शिव-पूजा; उस दिन पूर्ण उपवास या नक्त; वर्ष
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