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धर्मशास्त्र का इतिहास
उस दिन अपूपों (पू) के साथ श्राद्ध की अभिलाषा करते हैं; (२) राम की पत्नी सीता की पूजा, जो फाल्गुन कृष्ण ८ को उत्पन्न हुई थीं ; कृत्यरत्नाकर (५२६-५२९ एवं ५१८ ) । और देखिए 'फाल्गुनकृत्य' के अन्तर्गत । सीमोल्लंघन : देखिए 'विजयादशमी' के अन्तर्गत गत अध्याय १०; तिथितत्त्व ( १०३ ) ; पुरुषार्थचिन्तामणि ( १४५ - १४८) ।
सुकलत्रप्राप्तिव्रत : कुमारियों, सधवाओं एवं विधवाओं के लिए; नक्षत्रव्रत; देवता नारायण; कुमारी को तीन नक्षत्रों, यथा— उत्तराफाल्गुनी, उत्तराषाढ़ा एवं उत्तराभाद्रपदा को जगन्नाथ की पूजा करनी चाहिए तथा 'माधव' नाम लेना चाहिये, प्रियंगु एवं लाल पुष्पों का अर्पण करना चाहिये तथा कुंकुम का लेप करना चाहिये; 'माधव को प्रणाम' के साथ मधु एवं घी से होम; सुन्दर पति की प्राप्ति; हेमाद्रि ( व्रत०२, ६२८-६३०, विष्णुधर्मोत्तरपुराण से उद्धरण); शिव ने इस व्रत का वर्णन पार्वती से किया था ।
सुकुलत्रिरात्रव्रत : मार्गशीर्ष मास में उस तिथि को जो व्यहस्पृक हो, इसे किया जाता है; तीन दिनों तक उपवास, श्वेत, पीत एवं लाल पुष्पों, तीन लेपों तथा गुग्गुल, कुटुक ( कटुक ? ) एवं राल की धूप से त्रिविक्रम (विष्णु) की पूजा; त्रिमधुर का अर्पण ; तीन दीप; जौ, तिल एवं सरसों से होम; त्रिलोह ( सोना, रजत एवं ताम्र ) का दान हेमाद्रि ( व्रत० २, ३२२- ३२३, विष्णुधर्मोत्तरपुराण से उद्धरण) । 'त्रिमधुर' एवं 'त्र्यहस्पृक्' को इनके अन्तर्गत देखिए ।
सुकृततृतीया - व्रत : हस्त नक्षत्र में श्रावण शुक्ल ३ पर; तिथिव्रत नारायण एवं लक्ष्मी की पूजा; तीन वर्षों के लिए; मन्त्र ये हैं- 'विष्णोर्नु कम्' (ऋ० १११५४|१) एवं 'सक्तुमिव' (ऋ० १०।७२।२ ) ; व्रतराज ( १०१-१०३ ) ; कृष्ण ने इस व्रत का वर्णन अपनी बहिन सुभद्रा से किया है ।
सुकृतद्वादशी : तिथिव्रत; देवता विष्णु; फाल्गुन शुक्ल ११ पर उपवास एवं द्वादशी पर विष्णु-पूजा ; एकादशी को दिन एवं रात्रि में 'नमो नारायणाय' का जप कर्ता द्वारा क्रोध ईर्ष्या, लोभ, शठता आदि का त्याग ; 'यह संसार व्यर्थ है' का स्मरण करना; यही विधि द्वादशी को भी; एक वर्ष तक प्रतिभास; अन्त में हरि की स्वर्णप्रतिमा की पूजा एवं एक गाय के साथ उसका दान ; कर्ता नरक का दर्शन नहीं करता; हेमाद्रि ( व्रत० १, १०७९-१०८१, विष्णुधर्मोत्तरपुराण से उद्धरण) ।
सुखरात्रि या सुखरात्रिका : दीवाली (आश्विन अमावास्या) के लक्ष्मीपूजन को ऐसा कहा गया है; समयप्रदीप ( पाण्डुलिपि, ४१ बी०), कृत्यतत्त्व ( ४३१); वर्षत्रियाकौमुदी ( ४६७-४६९ ) ; कालविवेक ( ४०३-४०४); दे० गत अध्याय १० ।
सुखव्रत : (१) कृष्ण ७ पर उपवास तथा कृष्ण ८ पर नक्त; इहलोक में सुख एवं परलोक में स्वर्ग; हेमाद्रि ( ० २५०९, भविष्यपुराण से एक श्लोक ) ; कृत्यकल्पतरु ( व्रत० ३८७, यहाँ तिथियाँ ६ एवं ७ हैं ) ; (२) चतुर्दशी पर देवों की पूजा; शेष स्पष्ट नहीं है; हेमाद्रि ( व्रत० २, १५५, विष्णुधर्मोत्तरपुराण से उद्धरण) ; (३) अष्टमी पर ऋषियों की पूजा करने से सुख की प्राप्ति; हेमाद्रि ( व्रत० १, ६२८, विष्णुधर्मोत्तरपुराण से आधा श्लोक); (४) जब शुक्ल ४ को मंगलवार हो तो नक्त; चार चतुर्थियों पर किया जाने वाला; मंगल की पूजा (मंगल उमा के पुत्र कहे गये हैं); सिर पर मिट्टी रखना, उसे सारे शरीर पर लगाकर स्नान करना; दूर्वा, अश्वत्थ, शमी एवं गौ को छूना ; १०८ आहुतियों से मंगल के लिए होम; सोने या रजत या ताम्र या सरल काष्ठ या देवदारु या चन्दन के पात्र में मंगल की प्रतिमा को रखकर उसकी पूजा हेमाद्रि ( व्रत० १, ५१४-५१९, भविष्यपुराण से उद्धरण); पुरुषार्थचिन्तामणि (९५ ); (५) षष्टिव्रत ( मत्स्यपुराण १०१।७३ ) ; कृत्यकल्पतरु
( व्रत० ४५० ) ; स्पष्ट नहीं है।
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