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________________ व्रत-सूची २२५ सर्वमंगल त्रयोदशी : प्रति मास शुक्ल १३ पर एकभक्त या नक्त या उपवास तथा कृष्ण, बलभद्र एवं मंगला (दुर्गा) देवी (जिसे अंकाका कहा जाता है) की पूजा; इन तीनों के स्मरण या इन तीनों की प्रतिमाओं की पूजा एवं पुष्प, मांस एवं मंदिरा अर्पण से सभी कठिनाइयों पर विजय; हेमाद्रि ( व्रत० २,१६-१७, भविष्योत्तरपुराण से उद्धरण) ; कृष्ण ने युधिष्ठिर से कहा था कि उनके गुरु सान्दीपनि ने जब दक्षिणा के रूप में उनसे अपने मृत पुत्र को जीवित कर देने को कहा तो उन्होंने ( कृष्ण ने ) देवी का ध्यान किया और मृत पुत्र को पुनर्जीवित कर दिया । सर्वव्रत : शनिवार को पड़ने वाली शुक्ल १३ पर शिव पूजा तथा उपवास; महापातकों से मुक्ति ; हेमाद्रि ( व्रत० २ २४) । सर्वाप्ति व्रत : यह चतुर्मूतिव्रत है; एक वर्ष तक चार मासों की तीन अवधियों में; विष्णु के चार रूप है : बल, ज्ञान, ऐश्वर्य एवं शक्ति, वासुदेव, संकर्षण, रुद्र एवं अनिरुद्ध पूर्व, दक्षिण, पश्चिम एवं उत्तर की चार दिशाओं के चार मुख हैं जो बल, ज्ञान आदि रूपों के प्रतिनिधि हैं; चैत्र से आगे के चार मासों में पूर्व से उत्तर के रूपों की पूजा; किसी ब्राह्मण को दिये जाने वाले दान-पदार्थ चैत्र में गृहस्थी के लिए उपयोगी होते हैं, वैशाख में युद्ध - सामग्री के योग्य, ज्येष्ठ में कृषि के लिए उपयोगी तथा आषाढ़ में यज्ञ के लिए उपयोगी होते हैं; यही विधि आगे की अवधियों में, यथा श्रावण तथा मार्गशीर्ष से आरम्भ होने वाले मासों में लागू होती हैं; स्वर्ग की प्राप्ति, इन्द्रलोक एवं विष्णु से सालोक्य की उपलब्धि हेमाद्रि ( व्रत० २,५०२-५०३, विष्णुधर्मोत्तर० ३।१४०।१-१३ से उद्धरण) । सर्वाप्तिसप्तमी : माघ कृष्ण ७ पर; ध्यानपूर्वक सूर्य पूजा; एक वर्ष तक; वर्ष की दो अवधियों में; प्रथम ६ मासों में तिल का स्नान एवं भोजन में प्रयोग, इन मासों में सूर्य के नाम क्रम से माघ मास से ये हैं : मार्तण्ड, अर्क, चित्रभानु, विभावसु, भग एवं हंस, दूसरी अवधि के ६ मासों में स्नान एवं भोजन में पंचगव्य का प्रयोग; रात्रि में भोजन किन्तु नमक एवं तेल का त्याग; सभी इच्छाओं की पूर्ति; कृत्यकल्पतरु ( व्रत० १६८ - १६९ ) ; हेमाद्रि ( व्रत० १, ७३५-७३६, भविष्यपुराण १।१०८।१-१२ से उद्धरण) । सर्वोषधि : मुख्य ओषधियाँ, यथा-मुरा, मांसी, वचा, कुष्ठ, शैलज, दो हरिद्राएँ, शुण्ठी (सूखी अदरख ), चम्पक एवं मुस्ता; अग्निपुराण ( १७७|१३ ) ; मदनरत्न (शान्ति पर ) ; कृत्यकल्पतरु (शान्तिक) ; वर्ष क्रियाकीमुदी (२१२, दस नाम आये हैं); पुरुषार्थचिन्तामणि (३०७ ) ; व्रतराज ( १६, दस नाम किन्तु विभिन्न रूप से ) ; हेमाद्रि ( व्रत० १, पृ० ४९ ) में आया है - 'कुष्ठ मांसी हरिद्वे द्वे मुरा शैलेयचन्दनम् । वचा चम्पक मुस्ते च सर्वोषध्यो दश स्मृताः ॥' सप सप्तमी : तिथिव्रत; देवता सूर्य सात सप्तमियों पर कर्ता सूर्याभिमुख हो अपनी हथेली पर पंचगव्य या अन्य द्रव पदार्थ रखता है तथा प्रथम से सातवीं सप्तमी तक क्रम से एक से आरम्भ कर सात सरसों रखकर उन्हें देखता है और अपने मन में कोई कामना करता है तथा सरसों से सम्बन्धित मन्त्र का उच्चारण कर बिना दाँत मिलाये पी जाता है; होम एवं जप, पुत्रों, धन एवं कामनाओं की प्राप्ति; हेमाद्रि ( व्रत० १, ६८६ - ६८७, भविष्यपुराण से उद्धरण), कृत्यकल्पतरु ( व्रत० १८७ - १८८ ) । सस्योत्सव : ( तैयार हो गये अनाजों का उत्सव ) शुक्ल पक्ष में किसी शुभ तिथि, नक्षत्र एवं मुहूर्त पर खेत में संगीत, गान के साथ जाना, अग्नि जलाकर होम करना, कुछ पके अनाज लेकर वैदिक मन्त्रों के साथ देवो एवं पितरों को अर्पित करना; कर्ता दही से मिलाकर पका अन्न खाता है और उत्सव करता है; हेमाद्रि ( व्रत २, ९१४, ब्रह्मपुराण) 1 c २९ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002792
Book TitleDharmshastra ka Itihas Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPandurang V Kane
PublisherHindi Bhavan Lakhnou
Publication Year1971
Total Pages526
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size18 MB
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