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धर्मशास्त्र का इतिहास
सरस्वतीस्थापन : आश्विन शुक्ल नवमी पर सरस्वती को पुस्तकों में स्थापित किया जाता है; वर्षकृत्य दीपक
( ९२-९३ एवं २६८-२६९ ) । तमिल देशों में एक विशिष्ट सरस्वती-पूजा होती है, जिसमें बड़े-बूढ़ों एवं छोटों की पुस्तकें एकत्र की जाती हैं, कन्याएँ एवं विवाहित नारियाँ अपनी संगीत-पुस्तकें एवं वीणा लाती हैं और सब की पूजा सरस्वती के रूप में की जाती है। शिल्पकारों एवं श्रमिकों में आज के दिन आयुधपूजा ( उनके व्यापारिक यन्त्रों की पूजा) होती है ।
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सरित: मनोनुकूल नदी की पूजा; पुण्य प्राप्त होता है; हेमाद्रि ( व्रत० १, ७९०, विष्णुधर्मोत्तरपुराण से उद्धरण); कुछ लोग इसे सप्तमी - व्रतों के अन्तर्गत रखते हैं।
सर्पपंचमी : पंचमी को पयोव्रत करना चाहिए, किसी ब्राह्मण को एक स्वर्ण- सर्प का दान करना चाहिए; इससे सर्पों से भय नहीं होता, हेमाद्रि ( व्रत० १, ५६७, भविष्यपुराण से उद्धरण) ।
सर्पबलि : देखिए स्मृतिकौस्तुभ ( १७० - १७१ ) ।
सर्पविषापह पंचमी : श्रावण कृष्ण ५ पर; द्वार के दोनों ओर गोबर से सर्पों की आकृति बनाना; गेहूँ, दूध, भुने अन्नों, दही, दूर्वाशाखाओं, पुष्पों आदि से उनकी पूजा; सर्प प्रसन्न हो जाते हैं, सात पीढ़ियों तक सर्पों का भय नहीं रहता; हेमाद्रि ( व्रत० १,५६४-५६५, स्कन्दपुराण के प्रभास खण्ड से उद्धरण ) ; कृत्यकल्पतरु (९४, भविष्यपुराण १।३२।६२-६४ से उद्धरण ) ; हेमाद्रि ( ० १,५६४ ) ।
सर्वकामव्रत : (१) माघ कृष्ण १४ पर पितरों की पूजा; यज्ञ करने का पुण्य; हेमाद्रि ( व्रत०२, १५५, विष्णुधर्मोत्तरपुराण से उद्धरण); (२) मार्गशीर्ष ११ पर उपवास, चन्द्र तथा मंगल, सूर्य, निर्ऋति ( मृत्यु एवं विपत्ति की देवी ), वरुण, अग्नि, रुद्र, मृत्यु, दुर्गा आदि ११ देवी-देवताओं की पूजा; एक वर्ष तक; अन्त में एक गोदान; रुद्रलोके की प्राप्ति हेमाद्रि ( व्रत० १ ११५१, विष्णुधर्मोत्तरपुराण से उद्धरण) । सर्व कामावातिव्रत : इसमें कार्तिक से १२ मालाएँ (सरणियाँ) होती हैं; कार्तिक पूर्णिमा पर पड़ने वाली कृत्तिका पर उपवास एवं एक वर्ष तक गन्ध, पुष्पों आदि से नरसिंह - पूजा वर्ष के अन्त में श्वेत बछड़े के साथ एक श्वेत गाय एवं चाँदी का दान; शत्रुओं से मुक्ति; मार्गशीर्ष से आगे आश्विन तक, उस नक्षत्र पर उपवास जिसके उपरान्त पूर्णिमाएँ ज्ञापित होती हैं तथा कृष्ण, उनके रूपों एवं अवतारों की विभिन्न नामों से ( मार्गशीर्ष में अनन्त, पौष में बलदेव, माघ में वराह . 1) पूजा; वर्ष के अन्त में किये गये दान विभिन्न होते हैं; इससे सभी कामनाएँ पूर्ण होती हैं, पाप नष्ट होते हैं और स्वर्ग-प्राप्ति होती है; हेमाद्रि ( व्रत० २,६५५-६५९, विष्णुधर्मोत्तरपुराण से उद्धरण) ।
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सर्वगन्ध (सभी सुगन्धित द्रव्य ) । ये विभिन्न ढंगों से उल्लिखित हैं । हेमाद्रि ( व्रत० १, ४४ ) ने दो रूप दिये हैं : (१) कर्पूर, चन्दन, कस्तूरी एवं कुंकुम को बराबर मात्रा में सर्वगन्ध कहा जाता है; (२) कर्पूर, अगुरु, कस्तूरी, चन्दन, कक्कोल ।
सर्वफलत्याग : मार्गशीर्ष शुक्ल ३, ८, १२ या १४ पर या अन्य भासों की इन्हीं तिथियों पर ; ब्राह्मणों को पायस का भोज; एक वर्ष तक १८ धान्यों में कोई एक धान्य, सभी फलों एवं कन्दों का त्याग, किन्तु ओषधि के रूप में इनका ग्रहण हो सकता है; रुद्र, उनके बैल एवं धर्मराज (यम) की स्वर्ण - प्रतिमाओं का निर्माण; स्वर्ण, रजत एवं ताम्र के १६ चित्र, प्रत्येक दल में बड़े-बड़े फल ( यथा बेल आदि), छोटे-छोटे फल ( उदुम्बर, नारियल), कन्द ( सुवर्णकन्द आदि ) ; अनराशि पर दो जलपूर्ण कलश; एक पलंग; ये सभी पदार्थ एक गाय के साथ किसी गृहस्थ ब्राह्मण को दे दिये जाते हैं; 'मुझे अक्षय फल प्राप्त हो का कथन; मत्स्यपुराण (९६।१-२५) ।
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