SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 239
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ धर्मशास्त्र का इतिहास २२२ एवं घृत की १०८ आहुतियाँ; चार दिशाओं में चार कलश, मध्य में पाँचवाँ कलश, सभी कलशों में रत्न, सर्वोषधियाँ, कई स्थानों की मिट्टी डाली जाती है, सात विवाहित स्त्रियाँ नष्ट- सन्तान नारी के ऊपर जल का मार्जन करती हैं तथा सूर्य, चन्द्र एवं देवों का आवाहन बच्चे की सुरक्षा के लिए करती हैं; आचार्य को यम की स्वर्णप्रतिमा दी जाती है; सूर्य एवं कपिला गाय की पूजा; कर्ता देवों को अर्पित किये गये भोजन को प्रसाद रूप में ग्रहण करता है । सप्तमूर्ति : ( बहुवचन में ) विष्णुधर्मोत्तरपुराण ( ३।१५७-१६६)। सप्तर्षिव्रत : ( १ ) सप्तर्षियों की पूजा से उन ऋषियों तक पहुँच एवं ऋषिस्थिति प्राप्त होती है; हेमाद्रि ( व्रत० १, ७९१, विष्णुधर्मोत्तरपुराण से उद्धरण); (२) चैत्र शुक्ल से सात दिनों के लिए सात ऋषियों, यथा - मरीचि, अत्रि, अंगिरा, पुलस्त्य, पुलह, ऋतु एवं वसिष्ठ की फलों, पुष्पों, गाय के दूध से पूज; उन दिनों नक्तविधि; तिल एवं महाव्याहृतियों से होम, एक वर्ष तक; अन्त में अग्निहोत्री को कृष्ण हरिण का चर्म देना; मोक्ष प्राप्ति; हेमाद्रि ( व्रत० २,५०८, विष्णुधर्मोत्तरपुराण ३।१६५।१-७ से उद्धरण) । सप्तवारव्रत : कृत्यकल्पतरु ( व्रत० २५-२७ ) ; हेमाद्रि ( व्रत०२, ५२० - ५९२ ) ; कृत्यरत्नाकर (५९३-६०४)। सप्तम्यर्क व्रत : राजमार्तण्ड ( श्लोक ११७२-११७३) । सप्त सप्तमीकल्प : शुक्ल पक्ष में किसी रविवार को; जब सूर्य उत्तरायण का आरम्भ करता है और जब कोई पुरुष नक्षत्र होता है; सभी सात सप्तमियों पर ब्रह्मचर्य पालन, नक्त विधि; ७ सप्तमियाँ इस प्रकार हैंअर्कसम्पुट, मरिच, निम्ब, फल, अनोदना, विजया एवं कामिकी; पाँचवीं पर एकभक्त तथा छठी पर संभोग - वर्जन एवं मधु तथा मांस का त्याग पत्तों पर सात नाम लिखकर एक घट में डालकर किसी बच्चे से (जो इन सात नामों के अर्थ को नहीं जानता ) एक पत्ता निकलवाना और उसे सातवीं सप्तमी मानना; एक वर्ष तक; सभी आकांक्षाओं की पूर्ति एवं सूर्यलोक तक पहुँच; कृत्यकल्पतरु ( व्रत० १८९ - १९१ ) ; हेमाद्रि ( व्रत० १, ६८७-६८९, भविष्यपुराण ११२०८।२ - ३२ से उद्धरण) । सप्तसागर व्रत या सप्त समुद्र-व्रत : चैत्र शुक्ल १ से प्रारम्भ क्रम से सुप्रभा, कांचनाक्षा, विशाला, मानसोद्भवा, मेघनादा, सुवेणु एवं विमलोदका की पूजा; उनके नाम पर दही से होम; ब्राह्मणों को दही से युक्त भोज एक वर्ष तक तीर्थस्थान पर किसी ब्राह्मण को सात वस्त्रों का दान; इसे सारस्वत व्रत भी कहा जाता है; हेमाद्रि (व्रत० २, ५०७, विष्णुधर्मोत्तरपुराण से उद्धरण) । उपर्युक्त सरस्वती नदी की संज्ञाएँ या उसकी सहायक नदियों के नाम हैं, अतः 'सारस्वत' नाम अधिक उपयुक्त लगता है । देखिए विष्णुधर्मोत्तर ० ( ३।१६४।१७) | सप्तसुन्दरक-व्रत : पार्वती की, उसके सात नामों, यथा - कुमुदा, माधवी, गौरी, भवानी, पार्वती, उमा एवं अम्बिका के साथ पूजा; सात दिनों तक सात कुमारियों (लगभग ८ वर्षीया ) को भोजन देना; ६ दिनों तक उपर्युक्त सात नामों में किसी एक का प्रयोग तथा 'कुमुदा प्रसन्न हों' ऐसा कहना सातवें दिन सातों का आवाहन तथा गन्ध, पुष्प आदि तथा पान, सिन्दूर, नारियल आदि से सम्मान करना; पूजा के उपरान्त प्रत्येक के सामने दर्पण दिखाना; इससे सौन्दर्य एवं सौभाग्य की प्राप्ति तथा पाप मुक्ति होती है; हेमाद्रि ( व्रत० २, ८८६८८७, भविष्योत्तरपुराण से उद्धरण) । ; समुद्रव्रत : चैत्र शुक्ल १ से प्रारम्भ; सात दिनों तक प्रतिदिन; लवण, दूध, घी, दधिमण्ड, जलमिश्रित मदिरा, गन्ना के रस एवं मीठे दही से पूजा ; रात्रि में हविष्य-भोजन; घी से होम; एक वर्ष तक; अन्त में एक दुधारू गाय का दान ; राजा सम्पूर्ण विश्व का अधिपति हो जाता है; स्वास्थ्य, धन एवं स्वर्ग की Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002792
Book TitleDharmshastra ka Itihas Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPandurang V Kane
PublisherHindi Bhavan Lakhnou
Publication Year1971
Total Pages526
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size18 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy