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धर्मशास्त्र का इतिहास श्रीप्राप्तिवत : (१) हेमाद्रि (व्रत० १, ५७५, विष्णुधर्मोत्तरपुराण से उद्धरण) के मत से जो कमल में रख कर लक्ष्मी-प्रतिमा का पूजन करता है, वह एक यज्ञ का फल प्राप्त करता है; (२) वैशाख पूर्णिमा के उपरान्त पहली तिथि पर प्रारम्भ ; एक मास तक पुष्पों-फलों आदि से नारायण एवं लक्ष्मी की पूजा; धान एवं बिल्व फल से होम ; दूध एवं दूध से बने पदार्थों से ब्रह्म-भोज; ज्येष्ट में तीन दिनों तक उपवास ; सोने एवं दो वस्त्रों का दान ; हेमाद्रि (व्रत० २, ७५१, विष्णुधर्मोत्तरपुराण ३।२११।१-५ से उद्धरण)।
श्रीवृक्षनवमी : भाद्रपद शुक्ल नवमी पर ; सूर्योदय पर तिल, गेहूँ से बने पदार्थों आदि से बिल्व पेड़ की सात बार पूजा; उससे प्रार्थना करना एवं उसे प्रणाम करना; उस दिन बिना आग पर पके भोजन (यथा दही, फल आदि) को भूमि पर रख कर खाना, तेल एवं नमक न खाना; तिथिव्रत ; देवता लक्ष्मी का निवास बिल्व ; पीड़ा-क्लेश से मुक्ति एवं धन-प्राप्ति का लाभ; हेमाद्रि (व्रत० १, ८८७-८८८; भविष्योत्तरपुराण ६०११-१० से उद्धरण)।
श्रीवत : (१) चैत्र शुक्ल पंचमी तिथि पर केवल एक बार लक्ष्मी-पूजन से एक वर्ष के पूजन के लाभ प्राप्त होते हैं ; हेमाद्रि (व्रत० १, ५७५, विष्णुधर्मोत्तरपुराण से एक श्लोक); (२) चैत्र शुक्ल तृतीया पर भात एवं घृत का सेवन, एवं रात्रि में भूमि-शयन ; चतुर्थी पर घर के बाहर (नदी आदि में) स्नान, पंचमी पर वास्तविक या निर्मित कमल पर घृत-दीप से लक्ष्मी-पूजन, श्रीसूक्त से कमल के दलों तथा बिल्वपत्रों के साथ होम ; पर्याप्त दूध एवं घृत से ब्रह्म-भोज; हविष्य भोजन ; एक वर्ष तक ; शौर्य, सौन्दर्य एवं स्वास्थ्य की प्राप्ति ; हेमाद्रि (व्रत० २, ४६६-४६८, विष्णुधर्मोत्तरपुराण ३।१५४।१-१५ से उद्धरण)।
षट्-तिला-द्वादशी : फाल्गुन कृष्ण १२ पर जब श्रवण-नक्षत्र हो तिल से देवों की पूजा; तिल का होम, मन्दिरों में तिल से दीप जलाना, तिल-दान, पितरों को तिल-युक्त जल से तर्पण देना तथा तिल खाना; विष्णु ने इस तिथि पर उपवास किया था तथा अपने पितरों को तिल एवं पिण्ड दिये थे; कृत्यरत्नाकर (५१९)।।
षट्-तिली : जो माघ शुक्ल एकादशी पर, जब कि चन्द्र मृगशिरा नक्षत्र में हो, उपवास करता है तथा द्वादशी को तिल-सम्बन्धी ६ क्रियाएँ करता है वह पापों से मुक्त हो जाता है। वर्ष क्रियाकौमुदी (५०५); तिथितत्त्व (११३-११४); गदाधरपद्धति (कालसार, १५१)। तिल के ६ कृत्यं ये हैं—शरीर पर तिल उवटना; तिलयुक्त जल से स्नान, तिल से होम, तिल-दान, तिल-जल से पितृ-तर्पण एवं तिल-भोजन ; मिलाइए कृत्यरत्नाकर (५१९)।
षडक्षर-मन्त्र : महाश्वेता मन्त्र में ६ अक्षर हैं, हेमाद्रि (व्रत० २, ५२१); दूसरा है 'खखोल्काय नमः' कृत्यकल्पतरु (व्रत० ९)।
षणमूतिव्रत : चैत्र शुक्ल ६ पर ६ ऋतुओं की पूजा का आरम्भ ; ऋतु-व्रत; देवता ऋतुएँ; क्रम से फलों एवं पुष्पों, रूक्ष वस्तुओं (ग्रीष्म में), मीठी वस्तुओं (वर्षा में), भोजन एवं लवण (शरद में), कटु (तिक्त) एवं अम्ल (खट्टे) पदार्थों (हेमन्त में), तीक्ष्ण पदार्थों (शिशिर में) से ६ ऋतुओं का सम्मान करना ; प्रत्येक षष्ठी पर उपवास, नक्त-विधि (५ प्रकार के पदार्थों का त्याग, केवल ऋतु-सम्बन्धी पदार्थों का ही सेवन); एक वर्ष तक ; हेमाद्रि (व्रत० २, ८५८-८५९, विष्णुधर्मोत्तरपुराण ३११५६।१-७ से उद्धरण)।
षष्टिवत : मत्स्यपुराण (१०१।१-८३) में ६० व्रतों का उल्लेख है; कृत्यकल्पतरु (व्रत० ४३९-४५१); इन्हें रुद्र ने अपनी पत्नी को बताया है।
षष्ठीदेवी : ब्रह्मवैवर्त (२।४३।३-७२) में आया है कि षष्ठी, मंगलचण्डी एवं मनसा प्रकृति के अंश हैं, षष्ठी बच्चों की देवी हैं, उन्हें माताओं में देवसेना कहा गया है, वे स्कन्द की पत्नी हैं, वे बच्चों की रक्षा करती हैं,
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